प्यारे बच्चों,
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ये पत्र उन सभी बच्चों के नाम है जो मेरे विद्यार्थी हैं और रहे हैं। ये पत्र उन बच्चों के भी नाम है, जिन्होंने मुझसे पढ़ा तो नहीं किन्तु वे किसी न किसी विद्यालय के विद्यार्थी हैं।
बोर्ड के परीक्षा परिणाम घोषित किये जा रहे हैं। कुछ के घोषित हो गए हैं और कुछ के अभी होने बाक़ी हैं। सबसे पहले जो बच्चे परीक्षा में सम्मिलित हुए उन सभी को ढेर सारी शुभकामनाएँ।
शुभकामनाएँ इसलिए क्योंकि मेरा मानना है कि किसी भी परीक्षा में सम्मिलित होना भी अपने आप में एक तरह का सीखना है। कुछ भी अच्छा सीखना अच्छी बात होती है। और हर अच्छी बात के लिए शुभकामनाएँ तो दी ही जाती हैं ना।
परीक्षा का फ़ार्म भरने से लेकर परीक्षा कक्ष में बैठकर परीक्षा देने तक अनेकों बातें सीखने को मिलती हैं। तुमने महसूस किया होगा कि जितनी भी बातें परीक्षा देने के दौरान सीखीं उनमें से कोई भी बात, न किसी कक्षा में बताई गई और न ही किसी पुस्तक में पढ़ाई गई। वहाँ जो कुछ भी तुमने सीखा अपने अनुभवों से सीखा।
वास्तव में इन्हीं अनुभवों द्वारा सीखने को ही वास्तविक ज्ञान कहते हैं। मैं ये नहीं कह रही कि विद्यालयों मे दी जाने वाली शिक्षाओं से ज्ञान प्राप्त नहीं होता। वहाँ से भी ज्ञान प्राप्त होता है लेकिन सम्पूर्ण नहीं। जो शिक्षा तुम विद्यालय में प्राप्त कर रहे हो वो औपचारिक शिक्षा है। वहाँ किसी विषय विशेष की ही शिक्षा प्राप्त की जा सकती है जिसका जीवन में योगदान मात्र बीस प्रतिशत (20%) बल्कि उससे भी कम ही है। बाक़ी की अस्सी प्रतिशत (80%) शिक्षा हम अपने रोज़ाना के अनुभवों से प्राप्त करते हैं।
याद रखो, यही अस्सी प्रतिशत वाली शिक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, जो जीवन में सबसे अधिक काम आती है। जिसके लिए न किसी विद्यालय में जाना होता है, न कोई पुस्तक पढ़नी होती है और न ही इसका कोई परीक्षा परिणाम घोषित होता है।
तो बच्चों, जब वो 80% वाली शिक्षा, जिसका हमारे जीवन में सबसे अधिक महत्व है उसे पाकर ख़ुश होना चाहिए ना। बाक़ी की 20% प्रतिशत वाली शिक्षा के परीक्षा परिणाम चाहे जो भी आये, उसके लिए निराश क्यों होना। अंक कम हों या अधिक कुछ समय बाद याद भी नहीं रहते। वे केवल रिपोर्ट कार्ड में ही चिपके रह जाते हैं। इनका जीवन में कोई महत्व नहीं।
मैं स्वयं जो भी हूँ अपने अनुभव और प्रयास से हूँ न कि विद्यालयी शिक्षा से। तुम्हें बताऊं कक्षा 3 के बाद मेरे कभी अच्छे अंक नहीं आये। रिपोर्ट कार्ड लाल निशानों से भरा रहता था। 12 वीं और ग्रेजुएशन में एक-एक बार असफल भी रही। लेकिन इन सबके बावजूद जो भी हूँ तुमने मुझसे पढ़ते हुए देखा-सुना ही है।