रविवार, 22 जनवरी 2017

कोहरा : लघुकथा

कोहरा छंट गया था। वातावरण में ठण्ड की चुभन बरकरार थी। रफ़्ता-रफ़्ता नुक्कड़ पर लोगों की आवा-जाही शुरू हो गई थी। हमेशा की तरह भोला के ढाबे पर चाय के तलबगारों का जमावड़ा जुटने लगा था। उसके सामने लैंपपोस्ट के खम्भे के नीचे बेरवाली भी आकर बैठ गई थी। अपने आस-पास पड़े रैपरों व पोलीथीन की थैलियों को जलाकर वह अपनी ठिठुरती उंगलियाँ सेंकने की कोशिश कर रही थी।
उधर सुरतिया चार-पाँच रोज़ से बुखार में बेसुध पड़ी थी। आज थोड़ा होश आया तो नंदू की चिंता सताने लगी। खटोले पर लेटे-लेटे धोती के पल्ले से पाँच का सिक्का खोल कर नंदू को थमाते हुए कहा, “जा नुक्कड़ से कुछ खरीदकर खा ले।”
“अम्मा थोड़े और पैसे दे ना, आज इमरती खाने का बड़ा मन कर रहा है।” नंदू ठुनका।
“अकेल्ली यही पंजी बची है बिटवा...एतने रोज से काम पर नहीं गए...” आँखों को ढपते हुए सुरतिया ने समझाया।
नंदू साइकिल का टायर लुढ़काते नुक्कड़ की ओर चल पड़ा। बेरवाली की अभी तक बोहनी नहीं हुई थी। वह अभी भी पोलीथिन सुलगा रही थी। बीच-बीच में आवाज़ भी लगाती जा रही थी।
“चचा, हमको समोसा चाहिए।” नंदू ने पाँच का सिक्का भोला की ओर बढ़ाते हुए कहा।
“पाँच में समोसा नहीं मिलता...क्यों सुबह-सुबह बोहनी का टाइम खराब करता है।” भोला ने नंदू को प्या‍र से डपटा। नंदू रुआँसा हो गया। वह ढाबे में तले जा रहे समोसे और जलेबियों को बड़ी हसरत से देखने लगा।
“लेओ मीठे-मीठे बेर!” बेरवाली ने फिर आवाज़ लगाई।
उसकी आवाज़ सुनकर नंदू उसे देखने लगा। उसकी नज़र सुलगते रैपरों पर पड़ी। वह उसके पास जाकर खड़ा हो गया। चिट-चिट कर जलते रैपरों को देख कर वह मुस्कुराने लगा। शायद उससे उठने वाली रंगीन लपटों के आकर्षण ने थोड़ी देर के लिए उसकी समोसा खाने की इच्छा को भटका दिया था। नंदू ने अपना टायर लपट के ऊपर कर दिया। टायर जलने लगा। आग तेज होने लगी। बेरवाली उसमें अपने हाथ-पैर सेंकने लगी। उसने मुस्कुराकर नंदू को देखा। फिर डलिया से कुछ बेर लेकर नंदू के हाथ में थमा दिया। धीरे-धीरे टायर आग के गोले में बदल गया।
समय की आग में बहुत कुछ बदल गया। भोला का ढाबा काँच के केबिन में बदल गया। उसकी कुर्सी गद्देदार हो गई है। अब वहाँ उसका बेटा बैठता है। लैंपपोस्ट के खम्भे के नीचे अब नंदू सिंघाड़े का ठेला लगाता है। ठेले के ठीक नीचे एक बूढ़ी औरत सिंघाड़ा उबालती है। और कोहरा है कि फिर छा जाता है।

रविवार, 8 जनवरी 2017

बर्फ़ीले दरम्यान :लघुकथा

तुषार ने अचानक एलान किया कि इस बार न्यू इयर पार्टी के लिए उसने अपने बॉस को सपत्नीक निमंत्रित किया है।
“अंकिता, मैं बताना भूल गया था, खाना मैंने होटल से ऑर्डर कर दिया है।’’ सुबह-सुबह तुषार ने कहा।
अंकिता ने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली, जैसे पूछ रही हो, ‘क्यों?’
“वो क्या है कि...बॉस की बीवी थोड़ा...मतलब ये कि घर-वर का खाना उन्हें सुहाता नहीं है न।’’
“तो उन्हें किसी होटल में ही पार्टी दे देते ? ’’
“हाँ, पर होटल में पार्टी देना जेब को भारी पड़ सकता था।’’
“ठीक है, तो मैं घर व्यवस्थित कर लेती हूँ।’’
“अरे नहीं, तुम रहने दो, मैंने ऑफ़िस के दो वर्कर्स को बुला लिया है, वे आधुनिक साज-सज्जा करने में निपुण हैं, और बॉस की बीवी का मिजाज़ भी खूब समझते हैं।’’
“अच्छा तो फिर मुझे आज क्या करना है,यह बता दो।’’अंकिता ने खीझकर कहा।
“तुम अभी बस चाय बनाओ, और फिर किसी पार्लर में जा कर थोड़ा मेकअप-शेकअप करवा लो...वो..क्या है न कि...।’’
“कि बॉस की बीवी को तुम्हारी देहातन बीवी सुहाती नहीं है न।’’ तुषार की बात पूरी होने से पहले ही अंकिता चिढ़ कर बोली।
“ऐसा नहीं है अंकिता, मैं चाहता हूँ कि तुम किसी बात में कम न लगो, और पहले भी तो तुम पार्लर जाती ही थीं।’’
रोज़मर्रा के काम निपटा कर अंकिता पार्लर पहुँची। शादी से पहले तो तुषार को अंकिता का सजना-संवरना, घर को मेंटेन करने का अंदाज़, उसके हाथ का बनाया खाना, सब कुछ अनूठा लगता था। वही अंकिता आज बॉस की बीवी के आगे फूहड़ लग रही है। लेकिन इसमें तुषार का क्या दोष।
माना कि तुषार की नौकरी के शुरुआती तीन-चार साल संघर्ष में गुज़रे। जिस वजह से उनका हाथ तंग था। किन्तु बाद में तो सब ठीक हो गया था। अपने ऊपर ध्यान देना उसने खुद ही तो छोड़ दिया था। जब कहीं बाहर जाना होता तो वह खुद बच्चों के या काम के बहाने टाल देती थी। तुषार कई बार उसके इस रवैये से दुखी हो जाता था।
“मैडम, आपका मेकअप कम्प्लीट हो गया।’’ पार्लर वाली की आवाज़ उसे वर्तमान में ले आई।
वह आईने के सामने आई तो चौंक पड़ी। उसके सामने जैसे बीस साल पहले वाली अंकिता खड़ी थी। ‘वही नैन-नक्श, वही अदा...कुछ भी तो नहीं बदला था...फिर क्यों वह..?’ अंकिता मन में निरुत्तरित प्रश्न लिए घर की ओर चल दी।
अंकिता घर के अन्दर दाखिल हुई। उसने देखा पूरे घर का नक्शा ही बदला हुआ है। एक बार तो उसे लगा वह किसी और के घर में आ गई है।
“अरे वाह, क्या बात है, आज तो जरूर किसी पर बिजली गिरेगी।’’ तुषार ने उसे देखते ही चुटकी ली।
अंकिता ने तिरछी निगाहों से तुषार को देखा। उसकी आँखों में शरारत थी। लाज से अंकिता के गालों की सुर्खी और बढ़ गई।
“अरे, आपने खाने का ऑर्डर दिया था, उसका क्या हुआ ?” अंकिता ने झेंपकर जैसे बात बदलने की कोशिश की।
“वो भी आ जाएगा, तुम बस इधर आकर बैठो।” तुषार ने उसे खींच कर अपने बाजू में सोफ़े पर बैठा लिया।
फिर वह हौले से उठा। उसने कमरे की सारी लाइट बंद कर दीं। अब मोमबत्तियों की रौशनी में कमरे का संगीतमय वातावरण किसी महँगे होटल की शानदार पार्टी सरीखा लगने लगा था।
तुषार हौले-हौले पास आया और फिर एक घुटने को फर्श पर टिकाते हुए बैठकर बोला, “लीजिए, मिलिए बॉस से! ”
“बॉस ! आ गए क्या !” कहते हुए अंकिता ने दरवाजे की ओर नज़र डाली।
“जी हाँ बिग बॉस मिसेज़ अंकिता। मैडम, आज की न्यू इयर पार्टी आपके नाम!”
“तुषार, यह सब क्या है!” अंकिता हतप्रभ थी।
तुषार ने उसे कांधे से पकड़कर उठाया और अपने हाथ में उसका हाथ लेते हुए बोला, “अंकिता, बस ये समझ लो कि आज हमारे बीस साल पहले वाले दिन वापस आ गए हैं।”
“सचमुच?” अंकिता ने तुषार की आँखों में जैसे अपनी आँखें डाल दीं।
“हाँ अंकिता और मैं इन्हें फिर कभी जाने नहीं दूँगा।” तुषार के हाथों की गर्मी ने उन दोनों के दरम्यान जमीं बर्फ़ को पिघला दिया था। अंकिता भावावेश में तुषार से लिपट गई ।