सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

टिप्स : लघुकथा

आज निक्की की हल्दी है। कमरे में साड़ियों के पैकेट बिखरे पड़े हैं। कुछ औरतें उन पर नामों की पर्चियाँ लगा रही हैं कि कौन सी साड़ी किसे देनी है। कुछ औरतें जो रिश्ते से निक्की की भाभी लगती हैं वे बीच-बीच में उसको ससुराल के नाम से छेड़ती भी जा रही हैं।

एक ने निक्की के गाल पर हल्दी लगाते हुए कहा, “ससुराल में क्या करना है क्या नहीं हमसे टिप्स लेती जाओ बन्नो रानी, फिर देखना राज करोगी राज।”
“टिप्स नम्बर एक, पहले दिन से ही काम करके अपनी सुघड़ता का परिचय मत देने लग जाना, वरना कामवाली ही बनकर रह जाओगी।” एक ने कहा।
“हाथ में मेहँदी चढ़ी रहने तक बिना कहे एक चम्मच भी ना धोना, वरना जिन्दगी भर के लिए हाथों से बर्तन मांजने का जूना लिपटा रहेगा...टिप्स नम्बर दो।” दूसरी बोली।
“शुरू में ही सास को पैर दबाकर सुलाने की आदत तो मती डारियो...बता देते हैं हाँ।” यह तीसरी बोली।
“और अगर ननदों को अपना मेकप-शेकप सिर चढ़ाया तो समझ लो हाथ से गयी सिंगार पेटी।” चौथी ने बात जोड़ी।
“एक बात और जो तेरी खास साड़ियाँ हैं उन्हें अभी मत ले जा, कहीं सासू माँ का दिल आ गया तो उनसे हाथ धो बैठेगी सो अलग, उम्र भर नया पहनने को तरस जाओगी।” पाँचवी ने नज़दीक आकर कहा।
निक्की उनकी बातें सुनकर पहले तो मुस्कुराई। फिर बोली, “भाभी, आप लोग तो मुझे ऐसे समझा रही हो जैसे मुझे ससुराल नहीं किसी जंग में जाना है।”
“ये लो कर लो बात, ये जो ससुराल के खबसूरत खाब सजाए बैठी हो न बिल्लो, पहुँचोगी तो पता चलेगा।”
“मुझे डरवा रही हो भाभी।”
“अरे हम क्यों डरवाने लगे, होता ही ऐसा है, सो वही समझा रहे हैं।”
“भाभी अभी जिसको ठीक से जाना नहीं उसके लिए ऐसी राय बना लेना क्या ठीक है?”
“ओहो, बन्नो रानी तो अभी से ससुराल के सुर में बोलने लगीं।”
“क्यों भाभी, आख़िर वह भी तो मेरा ही घर होने वाला है।”
तभी पास पड़े निक्की के मोबाइल पर एक नम्बर चमका। उसे देख निक्की के चेहरे पर लालिमा युक्त मुस्कान तिर आयी। उसने पास बैठी उन औरतों में से एक को हाथ में लगी हल्दी दिखाते हुए फ़ोन रिसीव कर उसके कान से लगाने को कहा। हाव-भाव देखकर वह औरत शायद समझ गई कि फ़ोन निक्की के ससुराल से है। इसलिए उसने फ़ोन रिसीव कर स्पीकर ऑन कर दिया।
पहले तो निक्की थोड़ा सकपकाई फिर स्पीकर ऑन पर ही बोलने लगी, “हेलो माँ! प्रणाम!”
“खुश रहो, क्या हो रहा है?”
“बस अभी हल्दी लग रही है...तो...”
“ओह्हो, गलत समय फ़ोन कर दिया...अच्छा सुन कुछ वेस्टर्न ड्रेसेज़ भिजवा रही हूँ ट्रायल के लिए जो-जो पसंद आये रख लेना...ठीक है...फ़िर बाद में फ़ोन करती हूँ...”
“जी माँ...!”
फ़ोन कट गया। निक्की ने कमरे में बैठी औरतों पर एक सरसरी निगाह डाली। थोड़ी देर पहले जहाँ टिप्स का शोर गूँज रहा था, अब वहाँ सुई पटक सन्नाटा छाया हुआ था।
उसने माहौल को थोड़ा हल्का बनाने के लिए चुटकी ली और मुस्कुराते हुए बोली, “हाँ भाभियों, तो अगली टिप्स?”

('क्षितिज' 2018, अंक - 9 में प्रकाशित ) 
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(चित्र गूगल इमेज से)