रविवार, 26 जनवरी 2014

सरहदें अपनी मिटा कर देखो


सभी देशवासियों को 65वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ |

26 जनवरी का  दिन हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है | आज ही के दिन 64 वर्ष पहले सन् 1950 में  दुनिया की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक,  जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है,  और जिसने अनेक रीति-रिवाजों और परम्‍पराओं का संगम देखा है, जो दुनिया में  समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है, ऐसे हमारे देश भारत ने स्वयं को  अंग्रेजों की दासता की जंजीरों से मुक्त कराकर दुनिया के सबसे विस्तृत संविधान को आत्मसात किया था और एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की थी |  इसी के साथ सबसे पहले डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद ने  भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ली  और  उन्‍होंने राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्‍म की घो‍षणा की थी |

गणतंत्र यानि रिपब्लिक शब्द की उत्पत्ति  लेटिन भाषा के 'रेस पब्लिका' से हुई है,  जिसका अर्थ है “पब्लिक अफेयर्स” | इस तरह से गणतंत्र होने का मूल अर्थ है कि उस देश का शासक अनुवांशिक राजा नहीं बल्कि जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि होगा | यह ऐसी प्रणाली है जिसमें राष्ट्र के मामलों को सार्वजनिक माना जाता है। यह किसी शासक की निजी संपत्ति नहीं होती है। राष्ट्र का मुखिया वंशानुगत नहीं होता है। उसको प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित या नियुक्त किया जाता है।

26 जनवरी का दिन इतिहास में पहले से ही विशेष स्थान रखता था. इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1930 के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था और प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवसके रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई थी | इसीलिए इस दिन को यादगार बनाने के लिए चुना गया और इसी दिन संविधान लागू किया गया |

 किसी भी देश के नागरिक के लिए उसका संविधान उसे जीने और समाज में रहने की आजादी देता है इस तरह गणतंत्र दिवस और संविधान की उपलब्धता महत्वपूर्ण  है |   क्या हमने कभी सोचा ? कि हम जिस स्वतंत्र वातावरण में सांस ले रहे हैं, जिस संविधान ने हमें हमारे मूल अधिकार प्रदान किए, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के साथ-साथ अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा  और अवसर की समता दिलाई, उसको प्राप्त करने के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेज सरकार की कितनी यातनाएं सहीं, जाने कितनों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया ?  भगत सिंह और उनके साथी  63 दिनों तक भूखे रहे ? लाला लाजपत राय ने सिर पर लाठियां खायीं?  जालियां वाला बाग में अनगिनत लोगों को गोलियों से भून दिया गया ? क्या कभी हमने सोचा कि जब हम सर्दी, गर्मी, बरसात में अपने घरों में सुरक्षित चैन से सो रहे होते हैं उस समय  हमारे वीर सैनिक अपने जान की परवाह किए बिना देश की सीमा की निगरानी कर रहे होते हैं ?

एक बड़ी ही महत्वपूर्ण  घटना आप सभी के साथ बाँटना चाहूंगी –  यह घटना नेहरु जी के देहांत से सम्बंधित है | एक दिन काम करते-करते अचानक उनके सीने में दर्द उठा और उन्होंने अपने डेस्क पर अपना सिर रख लिया | जब उन्हें हटाया गया तो उनकी मृत्यु हो चुकी थी और उनकी  डेस्क पर लिखा था -

The woods are lovely, dark and deep, 
 But I have promises to keep, 
 And miles to go before I sleep, 
 And miles to go before I sleep.

इस कविता के माध्यम से उन्होंने सभी देशवासियों को  संदेश दिया कि हमें अपने जीवन में अंतिम समय तक  निरंतर कर्म करते हुए कर्तव्य के मार्ग पर चलते रहना चाहिए |

हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमने आज़ाद भारत में जन्म लिया | हमें उपने पूर्वजों द्वारा प्रदान किये इस आज़ादी के उपहार को सुरक्षित और सम्मानित रखना होगा | हमें अपने संविधान की नीतियों का पालन करना होगा | देश की प्रभुता, एकता, अखंडता की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहना होगा |  एक अच्छे नागरिक के कर्तव्यों को निभाना  होगा | अपने देश के संसाधनों को बर्बाद होने से बचाना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढियां भी उसका उपभोग कर सकें |  तभी सही मायने में हमारा देश एक गणतंत्र राज्य कहलाएगा |   

और मैं अंत में  अपनी एक गज़ल  कहना चाहूंगी –

कर्म को देव बना कर देखो
सत्य के मार्ग पे जा कर देखो

 साथ में होंगे करोड़ों इक दिन
 पाँव तो पहले बढ़ा कर देखो

 सारे इंसान हैं इस दुनिया में 
सरहदें अपनी मिटा कर देखो 

 क्या है नफरत, ये अदावत क्या है
 प्रेम का राग तो गा कर देखो 

 मंजिलें साफ़ नज़र आएंगी
 ज्ञान के दीप जला कर देखो    


 -    जय हिंद
   

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

कहानी – विकल्प

शाम को मानव ट्यूशन कर के अपने मित्र दीपक के घर पहुंचा तो  दीपक को लेपटॉप लेकर बैठे देखा | लोकसेवा आयोग की वेबसाईट खुली पड़ी थी, परीक्षा परिणाम आ चुका था दीपक लिस्ट में अपना नाम देख रहा था उसने चहक कर कहा –“अरे ! यार मेरा सेलेक्शन हो गया |” दीपक का सेलेक्शन विकलांग कोटे में हो गया था |

 मानव लपककर लिस्ट में अपना नाम ढूंढने लगा | उसने कई-कई बार जनरल केटेगरी की सारी लिस्ट शुरू से अंत तक देख डाली परन्तु उसका नाम लिस्ट से नदारद था, मानव की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा वह पास रखे तख़्त पर बैठ गया | उसका सारा शरीर काँपने लगा था,  सिर में  झनझनाहट महसूस हो रही थी जैसे किसी ने बिजली का नंगा तार छुआ दिया हो | दिसम्बर की ठण्ड में भी उसके माथे पर पसीने की बूँदें छलछला आईं थीं | कमरे में मानव को घुटन सी होने लगी  वह एक झटके से उठा और बाहर चला गया |

 किस दिशा में जा रहा था ? कहाँ जा रहा था ? उसे कुछ होश नहीं था | उसकी आँखों के सामने बीमार माँ और बहनों के चेहरे नाचने लगे | क्या होगा अब ? कैसे करेगा अपनी बहनों का ब्याह ? दो भांजियां भी तो हैं, क्या होगा उनका ? इन सबकी जिम्मेदारी पिता की मृत्यु के बाद मानव पर ही आ गई थी |

 मानव से छोटी दो बहने हैं | उससे  बड़ी एक और बहन थी जिसका विवाह हो चुका था |  विवाह के एक साल बाद दो बच्चियों को जन्म दिया तो लड़की जन्मने पर ससुराल वालों  की उपेक्षा और तानों ने बीमार कर दिया और अंत में इस संसार से विदा हो ली | उसका पति किसी दूसरी औरत के साथ मुंबई भाग गया |  बिन माँ की बच्चियों की देखभाल करने वाला कोई नहीं था इसलिए  मानव के पिता उनको घर ले आए | पिता  बेचारे बेटी के दुःख से बिलकुल टूट गए थे, सो उन्होंने ऐसे  बिस्तर पकड़ा कि फिर कभी उठ न सके |  मानव के पिता दीनानाथ मिश्र प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर थे | उनके पास जो भी जमा पूँजी थी वह सब एक-एक करके उनकी बीमारी में लगती गई | घर गिरवी हो गया था और कई लोगों से क़र्ज़ भी लेना पड़ा था |  घर की चिंता और बीमार ने उन्हें खोखला बना ही दिया था जिससे उनका प्राणांत हो गया  |

पिता के देहांत के बाद मानव के परिवार पर जैसे दुःख का पहाड़ टूट पड़ा |  माँ को जो पेंशन मिलती उसमें से लोगों के  क़र्ज़ उतारने के बाद इतना  नहीं बच पाता था कि घर का खर्चा चल पाता इसलिए माँ घर पर लोगों के कपड़े सिलने लगी थी, उसी से जो कुछ मिलता था उसमें किसी तरह से उन लोगों का जीवन निर्वाह हो रहा था |

 उस समय मानव हाईस्कूल में था | पिता के देहांत के बाद से उस 14 साल के लड़के पर 40 साल के प्रौढ़ की सी जिम्मेदारी आ गई थी | सुबह मानव पेपर बांटता फिर स्कूल जाता दोपहर लौटकर  किराने की दुकान से सामान उठाकर लोगों के घर पहुंचाने का काम करता था, इससे जो पैसे मिलते उनसे मानव  और उसकी  बहनों की पढ़ाई की फीस और कापी-किताबों का खर्च निकलता | इसी तरह से उसने इण्टरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की | प्राइवेट स्नातक की परीक्षा पास कर मानव प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने लगा |

एक दिन उसकी मुलाकात दीपक से एक बुकस्टाल  पर हो गई  | मानव को जो पत्रिका चाहिए थी उसकी  केवल एक ही प्रति थी जो दीपक खरीद  चुका था | मानव को परेशान देख दीपक ने वह पत्रिका मानव को दे दी और अपना पता देते हुए कहा कि पढ़ने के बाद वह उसे वापस कर दे |  दीपक का एक पैर खराब था उसने अपने एक हाथ में छड़ी पकड़ रखी थी | मानव ने दीपक को अपनी साईकिल पर बैठा कर उसके घर छोड़ने का आग्रह किया | दीपक उसकी साईकिल पर आकर बैठ गया | तभी से दोनों में गहरी मित्रता हो गई थी |  

 बढ़ती उम्र, दिन-रात की कड़ी मेहनत, परिवार की चिंता और आभावों ने मानव की माँ को कमज़ोर कर दिया था, वह भी अक्सर बीमार रहने लगी थी उसकी सिलाई का काम भी बंद हो गया था | कर्जदार अक्सर तगादा करने आ जाते थे जिनके आगे  हाथ-पैर जोड़कर मानव को थोड़ी और मोहलत के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता था |

आनंद नगर जैसे छोटे से शहर में मानव को कोई ढंग का काम भी न मिल सका था और कोई काम मिलता भी था तो उसके पैसे कम शोषण अधिक था | ट्यूशन में भी इतने पैसे नहीं मिल पाते थे जिससे घर का गुज़ारा हो पाता | उसने एक सर्राफ के यहाँ रात में गार्ड की नौकरी कर ली थी | वहीँ साथ में रात भर आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पढ़ता रहता था |

यह नौकरी मानव के लिए सब कुछ थी जिसको पाने के लिए उसने दिन-रात जी तोड़ मेहनत की थी | आज मानव के जीवन में मानो तूफ़ान आ गया था |
वह  मन में ही मन सोचता जा रहा था-
“अब अगली परीक्षा पता नहीं कब होगी ?” “हर साल होती भी तो नहीं हैं |”
 मानव विच्छिप्त सा चलता जा रहा था, वह कब मेन रोड के बीचोबीच आ गया पता नही | अचानक उसके सामने तेजी से ट्रक आता दिखा, उसका सिर चकराने लगा,  तेज़ रोशनी के साथ ज़ोरदार आवाज़ हुई और फिर अँधेरा छा गया |

मानव की आँख खुली तो वह अस्पताल में था | उसके सारे बदन में भयंकर दर्द था | सामने  दीपक और उसके पिता खड़े थे  | उसने उठने की कोशिश की पर वह उठ नहीं सका | उसके पैरों में भयंकर दर्द उठा दोनों पैर ऐसे जकड़े थे जैसे उनपर किसी ने कोई भारी सी चीज़ रख दी हो | दुर्घटना में उसके दोनों पैर बुरी तरह से घायल हो गए थे जिनमें से एक पैर को घुटनों तक   काटना पड़ा | जब उसे यह पता चला तो वह जोर से चीखा, मानव के जीवन संघर्ष में ये ऐसी घटना थी जिसने उसकी सारी आशाओं पर कुठाराघात कर दिया था | परिवार का सहारा आज खुद सहारे का मोहताज था |

 इस घटना को छः महीने बीत गए थे |  मानव को  अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी | दीपक अपनी ट्रेनिंग पर चला गया था | इस दौरान मानव के  घर की दशा बहुत ख़राब हो गई थी | माँ ने बिस्तर पकड़ लिया था उनकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी, सरकारी अस्पताल से सारी दवाएं नहीं मिल पाती थीं जिससे उनका सही से इलाज हो पाता | घर में फाके चल रहे थे | दोनों छोटी बहनों की पढ़ाई भी छूट गई थी | जब मानव को इन सबका  पता चला तो उसका ह्रदय चीत्कार उठा |

दीपक के पिता ने थोड़े पैसों से मदद कर दी थी पर कोई किसी को कितने दिन मदद करता और घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि मानव कुछ दिन आराम कर पाता | उसे अस्पताल से  ट्राईस्किल मिल गई थी  उसे लेकर काम की तलाश में चल दिया  | इस अवस्था में उसे कोई काम भी नहीं मिल पा रहा था | कुछ दिन भटकने के बाद  उसके छूटे हुए कुछ ट्यूशन फिर मिल गए, दीपक के पिता ने उसको किसी सेठ के यहाँ हिसाब-किताब देखने का काम भी दिला दिया था | जीवन की गाड़ी किसी तरह से रेंगने लगी |

 दीपक छुट्टी आया था उसने आने वाली परीक्षाओं के फार्म मानव के विरोध के बावजूद समझा-बुझाकर जबरदस्ती भरवा दिए थे | मानव ने धीरे-धीरे फिर से पढ़ाई शुरू कर दी और  एक-एक कर सभी परीक्षाएं देने लगा |

एक दिन पोस्टमैन ने  दस्तक दी | मानव ने लेटर रिसीव कर के खोला, उसका सेलेक्शन गोरखपुर के किसी कॉलेज में प्रवक्ता के पद पर हो गया था | वह ख़ुशी से चीख उठा था |  उसकी आँखों में आंसू आ गए थे | उसने माँ का पैर छूते हुए उसे यह खबर सुनाई तो माँ ने प्यार से उसका माथा चूम लिया | सारे घर में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी | वह जल्दी से दीपक को खबर देने के लिए पीसीओ की ओर चल पड़ा |

मानव ने कॉलेज के आफिस में जाकर सारी औपचारिकताएं पूरी की | कॉलेज के क्लर्क ने उसे लेटर लेने के लिए अगले दिन बुलाया |  अगले दिन मानव आफिस पहुंचा तो काफी देर बाद क्लर्क ने उसे बड़े बाबू के पास भेज दिया |

बड़े बाबू ने चश्में के ऊपर से उसे ऊपर से नीचे तक देखा और सामने बैठने का इशारा किया |  फिर उसने मानव से कहा  – “ देखिये आपको तो नौकरी मिल ही गई है, देख रहा हूँ आपको इसकी सख्त ज़रूरत भी है, बस आपको थोड़ा ‘चढ़ावा’ चढ़ाना होगा....देखिये कुछ औपचरिकतायें तो  पूरी करनी ही होंगी  बस आपका लेटर मिल जाएगा | “

मानव कुछ समझा नहीं |  बाबू ने  धीरे से पास आकर दांत फैलाते हुए कहा – “ देखिये बड़े लोगों को खुश करना पड़ता है, 5 लाख देने होंगे, बस आपका काम हुआ समझिये |” इतना सुनते ही मानव बौखला गया | उसने कहा – “ ऐसा कैसे हो सकता है ? मेरा सेलेक्शन हुआ है, मैं रिश्वत क्यूँ दूँ ? “

बाबू ने कहा – “ये रिश्वत नहीं है ये तो चढ़ावा है | भगवान को मनोकामना पूर्ति के लिए चढ़ावा तो चढ़ाते ही हैं न भाई, और हम आपकी स्थिति देखकर आपको  डिस्काउंट दे रहे हैं, लोग 10-15 तक ख़ुशी-खुशी से दे जाते है और निश्चिन्त होकर नौकरी करते हैं फिर उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती |” 
 “बिना रूकावट नौकरी करने के लिए कुछ तो चढ़ावा देवताओं को देना ही पड़ेगा |”

मानव को सारी बात समझ में आ गई | वह परेशानी और बौखलाहट में आफिस के बाहर आ गया | उसके सामने अब यह एक नई मुसीबत आ गई थी |  क्या करे क्या न करे, पांच लाख कहाँ से लाये ? इतने पैसे तो उसने कभी देखे तक नहीं थे | कैसे मिलेगी उसे यह नौकरी ? उसे अपनी यह नौकरी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नज़र आ रही थी |

 मानव का मन रोने को हो रहा था | “...दीपक से पैसे मांगे...” एक बार उसे यह ख्याल आया... उसने फिर अपना सिर झटक दिया ...वह उससे पैसे कैसे मांग सकता है ? ...उसकी भी तो नई-नई नौकरी है... अभी उसके पास इतने पैसे कहाँ होंगे...और फिर दीपक के पहले से ही उस पर इतने एहसान हैं, उसके एक्सीडेंट के समय उसके पिता ने कितनी मदद की थी |

  “उसे यह नौकरी हर हाल में पानी है, इस नौकरी के सिवा उसके पास और कोई 'विकल्प' भी तो नहीं है ।“ - यह सोचते हुए उसने दीपक को फोन किया | दीपक ने कहा कि उसके पास इतने पैसे तो नहीं हैं अगले महीने उसकी बहन की शादी भी है | 

 मानव के ऊपर मानों बिजली गिर पड़ी थी | उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था |  वह थका, परेशान, टूटा, असहाय एक मंदिर के निकट पंहुचा | वहीँ एक चबूतरे के पास उसने अपनी ट्राईस्किल रोक दी और पेड़ की छाँव में सुस्ताने के लिए चबूतरे पर सरक आया और पेड़ से टेक लगा कर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं | 

उस चबूतरे पर त्रिशूल-डमरू आदि लगे थे पास में इमली के पेड़ पर घंटियाँ भी बंधीं थीं | तभी उसके पैरों के पास कुलबुलाहट सी महसूस हुई उसने चौंक कर अपनी आँखें खोल दी, देखा कपड़े में लिपटा एक बच्चा पड़ा था और पास ही  गहनों से लदी हुई एक महिला अपनी आँखें बंद किए हाथ जोड़े बैठी थी | बच्चा सरकते हुए चबूतरे से गिरने ही वाला था तभी मानव ने लपक कर बच्चे को उठा लिया, बच्चा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा |
अचानक महिला ने आँखें खोली और जोर-जोर से जयकारा  लगाने लगी | “...इमला बाबा जी की जय....चमत्कार हो गया-चमत्कार हो गया...मेरा बच्चा ठीक हो गया....”|
 मानव ने सकपका कर  देखा  आसपास भीड़ जमा होने लगी उस औरत ने चिल्ला कर कहा – “...मेरे बच्चे ने कई दिनों से रोना बंद कर दिया था...बाबा के आशीर्वाद से फिर से रोने लगा ....” उस महिला ने अपनी पर्स से नोटों की एक पोटली निकाल कर मानव के सामने रख दी और मानव के पैरों में सिर नवा दिया और उठ कर चली गई |
थोड़ी देर में उस महिला के साथ दस-बारह लोग और आ गए | वे सब भी मानव के पैरों में अपना सिर नवाने लगे और जयकारा लगाने लगे ।  
जब तक मानव  कुछ बोलता  "....इमला बाबा की जय...”   का जयकारा सारे मंदिर में गूंजने लगा  | देखते-देखते भीग बढ़ गई लोग उसके ऊपर फूल-मालाएं चढ़ाने लगे | मानव को माज़रा समझ नहीं आया | वह उठने की कोशिश कर ही रहा था तब तक और कई लोग  उसके सामने माथा टेकने और नोट  चढ़ाने लगे | देखते ही देखते उसके सामने नोटों का अम्बार लग गया | 

समय ने करवट बदली । इस घटना को हुए एक साल बीत गया था |  मंदिर के निकट एक आलीशान कोठी के बाहर चमचमाती  कारें खड़ी थीं | बाहर लॉन में एक बड़ा सा पंडाल लगा था   उसके सामने लोगों  की  भीड़  जमा थी | मानव श्वेत-वस्त्र धारण किए हुए एक ऊँचे से भव्य आसान पर ध्यान की मुद्रा में आँखें बंद किए हुए बैठा था | लोग लाइन में एक-एक करके उसके आगे माथा टेकते जा रहे थे | आसन के पास में बहुत सारे कीमती चढ़ावे, कई दान-पेटियाँ पड़ी थीं | दो आदमी लोगों से दान लेकर दानपेटी में डालते जा रहे थे और दो आदमी उसकी रसीद काट रहे थे | सारा लॉन “...इमला बाबा की  जय...” के जयकारे से गूंज रहा था |


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मंगलवार, 7 जनवरी 2014

कौन है भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक का जन्मदाता ?

भारत ने रविवार को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाकर नया इतिहास रच दिया। परीक्षण में सौ फीसद खरे उतरे स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के बूते रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का कमाल कर दिखाया है। इसरो ने देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के जरिये रॉकेट जीएसएलवी डी-5 का सफल प्रक्षेपण कर यह बेमिसाल उपलब्धि हासिल की है। 

इस लंबी छलांग के पीछे असल में कौन है ? कौन है भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक का जन्मदाता ? आज इस पूरी खबर में कहीं भी उस वैज्ञानिक का जिक्र तक नहीं किया गया | 

उस वैज्ञानिक का नाम है 'प्रोफेसर  एस. नम्बी नारायण' | 

 सबसे पहले 1970 में  भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक लाने वाले वैज्ञानिक नम्बी नारायण हैं | 





प्रोफ़ेसर नम्बी नारायण 1994 में इसरो में क्रायोजनिक विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे| जब वे इस प्रोजेक्ट पर काम करने लगे तब 1996 उनके ऊपर झूठा आरोप लगाया गया था  कि उन्होंने डाटा सैटेलाईट और रॉकेट की लॉन्चिंग से सम्बंधित जानकारियाँ करोड़ों रुपये में बेची हैं| इस झूठे आरोप लगाने के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ था | उन्हें डर था कि कहीं भारत उनके इस क्रायोजनिक इंजन के एकाधिकार को समाप्त न कर दे | 

सीबीआई को जांच में कुछ भी नहीं मिला और 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रो.नम्बी नारायण को सभी आरोपों से बरी कर दिया |इस दौरान उनके परिवार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । गिरफ़्तारी के दौरान प्रो नारायण को बहुत मानसिक आघात झेलना पड़ा । 

अगर ऐसा न होता तो यह उपलब्धि हमें काफी पहले मिल जाती | हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जो लोग देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज़बा रखते हैं उनको किसी न किसी तरह से हतोत्साहित कर उनके कार्य को रोक दिया जाता है ।