रविवार, 20 जनवरी 2008

लक्ष्य



मैंने देखा सुबह-सुबह


अपनी नन्ही सी बगिया में

नन्हें से पौधे पर

एक नन्हा सा फूल मुस्कुराता

समां रखा था अपने अन्दर

अनेक रंग, खुशियाँ और मुस्कान

नन्हें जीवन-काल में भी

गम न था मिट जाने का

वह नन्हा सा कोमल

सिखा रहा था हमें

रखना लक्ष्य जीवन का

बिखेरना मुस्कान सदा

हाय रे! हिन्दी.... अपने देश में हमारी राष्ट्र-भाषा का जो हाल देखा तो मेरा अंतर्मन रो पड़ा अपनी उसी भावना को मैं यहाँ व्यक्त कर रही हूँ




हाय रे! हिंदी तू अपनों में ही पराई हुई......

तेरे देश में तेरे ही अपने तुझे बोलने पर शर्माते हैं

तुझे बोलने पर तेरे अपनों पर जुर्माना लगता है

तेरे नौनिहाल तुझे बोलने पर अपराधी बनते हैं

तुझे बोलने वाले जीविका के लिए भटकते
हैं

क्यों किया तुझे पराया अपनों ने

तू महासागर है हिंद
का

फिर भीहम दूसरों का पानी क्यों भरते हैं

हाय रे! हिंदी तू ........