शनिवार, 18 जुलाई 2009

प्रौढ़ बचपन



रास्ते पर मैंने देखा

नन्हा सा एक प्रौढ़ बचपन

नहीं था उसके जीवन में

माता-पिता का प्यार -दुलार

उठा रखा था उसने हाथों में

अपने ही जैसा इक बचपन

साल चार के इस जीवन में

सिखा दिया था जीना उसको

जूझ रहा था पर हिम्मत से

लिए जिम्मेदारियों का बोझ स्वयं

नहीं था उसे कोई ग़म

देख के उसको आती मुझमें

दया
नहीं

जोश और ताकत वरन

दुआ करती हूँ उसको मिले

आने वाले इस जीवन में

सुख-सफलता

और

प्रसिद्धी पराक्रम



(पुरानी पोस्ट से)
(चित्र गूगल सर्च से साभार )

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

तुलना



खिला फूल मदार का एक

मंदिर में हुई गुलाब से भेंट

बोला मदार गुलाब से नेक

होता तुमसे है अभिषेक

राजा हो या देवता अनेक

माली
रखता तुमको सहेज

करें प्रदर्शन अपना प्रेम

प्रेमी युगल हों या दोस्त विशेष

महके चमन तुमसे हर एक

गुलाब तुम हो अति विशेष

नहीं ठिकाना मेरा एक

देते सब मुझको उखाड़ के फ़ेंक

भटकता रहता हूँ पथ पे अनेक

लिए निराशा मन में समेट

हुई न मेरी प्रेम से भेंट

ली गुलाब ने फिर अंगड़ाई

बोला मदार से मेरे भाई

नहीं है जीवन कोई व्यर्थ

जिसका हो न कोई अर्थ

प्रकृति की है रचना जितनी

सबकी है विशेषता अपनी

तुम अपनी पहचान बनाओ

जीवन में कुछ नाम कमाओ

चढ़ते तुम हो उनके शीश

जो हैं सभी ईशों के ईश

तुमसे करते हैं उनका श्रंगार

फूल हो तुम भी विशेष मदार

करो न तुम किसी से तुलना

ढूंढो तुम भी वजूद अपना

जीवन में जिनके सुख होता है

काँटों पे उनको भी चलना होता है

मार्ग चिकने फिसलन लाते हैं

पथरीले मंजिल को पाते हैं

दो न तुम अपने को दोष

भरो जीवन में उमंग और जोश


(इस कविता को मैंने काफ़ी पहले पोस्ट किया था जब मैं चिट्ठा जगत से नही जुड़ी थी तब किसी ने नहीं पढ़ा था )

शनिवार, 4 जुलाई 2009

सावन के सुर मधुर सुन.....

अभी सावन आनें में चार दिन बाकी हैं, परन्तु जब वर्षा ऋतु आती है तो सावन के झूलों की याद बरबस हो आती है, सारा आलम मस्ती में गुनगुनानें लगता है.....................................





आया
मस्त मतवाला सावन
फुहारों की रिमझिम
बूंदों की गुनगुन
बरखा के सुर सुनाता मनभावन
आया मस्त मतवाला सावन

झर-झर झरती बूंदों की लड़ियाँ
पुलकित होती फूलों की पंखुडियाँ
उमड़-घुमड़ मेघों की गर्जन
वन-वन गुंजित मयूरों का क्रंदन

भर गए ताल-तलैये उपवन
आया मस्त मतवाला सावन

पड़ती फुहार झूलों पर जब-जब
सजे मेघ-मल्हार होठों पर तब-तब
झूमें तरुओं की शाखें चंचल
छनके पत्तों की पायल छन-छन

करते ता-ता धिन-धिन तरु गन
आया मस्त मतवाला सावन

आसमान के इन्द्रधनुषी रंगों का चोला
धारा ने अपने हरियाले आँचल को खोला
बिखरी बेल-बूटों की मतवाली लताएँ
निखरी हर पत्तों की हरियाली आभाएँ

गदराए हर सिंगार चंपा के उपवन
आया मस्त मतवाला सावन

पड़ती जब वारि की धारें कोमल तन
कण-कण की पुलकावलि करे निर्मल मन
दादुर टर-टर झींगुर तुन- तुन
बरखा की लय में गाए सुमधुर धुन

आया मस्त मतवाला सावन