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रास्ते पर मैंने देखा
नन्हा सा एक प्रौढ़ बचपन
नहीं था उसके जीवन में
माता-पिता का प्यार -दुलार
उठा रखा था उसने हाथों में
अपने ही जैसा इक बचपन
साल चार के इस जीवन में
सिखा दिया था जीना उसको
जूझ रहा था पर हिम्मत से
लिए जिम्मेदारियों का बोझ स्वयं
नहीं था उसे कोई ग़म
देख के उसको आती मुझमें
दया नहीं
जोश और ताकत वरन
दुआ करती हूँ उसको मिले
आने वाले इस जीवन में
सुख-सफलता
और
प्रसिद्धी पराक्रम
(पुरानी पोस्ट से)
(चित्र गूगल सर्च से साभार )