शनिवार, 4 मार्च 2017

काँटों में गुलाब : लघुकथा

गुलाब के पौधे पर कलियों के बीच एक फूल को झूमते देख मार्था के गुलाबी होठ लरज़ उठे। वह उसे बरबस निहारने लगी। तभी एक लड़का जो मार्था के यहाँ पेइंगगेस्ट था वहाँ आ पहुँचा।
“मैडम, क्या मैं यह गुलाब ले सकता हूँ?” मार्था अचकचा गई। उसने लड़के को ऊपर से नीचे तक देखा। फिर शरारत भरे अंदाज़ में पूछा, ‘‘गर्लफ़्रेण्ड के लिए?”
फिर थोड़ा ठहर कर बोली, “जा ले ले, और देखना कोई काँटा न साथ चला जाय।”
“जी, शुक्रिया!” लड़के ने फूल लेकर अपनी साइकिल के हेंडल में खोंसा और पैडल मारते हुए आगे बढ़ गया। मार्था स्नेहिल निगाहों से उसे जाता हुआ देखती रही।
“आंटी, आपने उसे गुलाब क्यों ले जाने दिया? कितने दिनों से आप उसके खिलने का इंतज़ार कर रही थीं?” यह दीपा थी, मार्था की दूसरी पेइंगगेस्ट।
“ गर्लफ़्रेण्ड के लिए ले जा रहा है ना।”
“तो खरीद कर ले जाता ना, कंजूस कहीं का!”
“नहीं दीपा, लगता है...यह भी पीटर की तरह...हालात से लड़ रहा है,” कहते हुए मार्था ने एक गहरी साँस छोड़ी।
“पीटर?” दीपा की निगाहों ने प्रश्न उछाला।
“मेरा बॉयफ़्रेण्ड। एक दिन जब उसने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो...”
** “मार्था, अभी मेरी ज़िंदगी में सिर्फ़ काँटे हैं...इस टहनी की तरह...संभव है उसमें कभी फूल न भी आएँ। क्या तुम मुझसे शादी करना चाहोगी?”
“पीटर, मैं तुमसे बेहद प्यार करती हूँ...पर क्या हम थोड़ा और इंतज़ार नहीं कर सकते, तुम्हारे सेटल होने तक?”
**
“दीपा यह गुलाब का पौधा वही टहनी है जिसे उस दिन पीटर ने यहीं डाल दिया था, लेकिन...”
“लेकिन क्या आंटी?”
“लेकिन उस दिन के बाद से पीटर मुझे कभी नहीं मिला। मैंने उसका बहुत इंतज़ार किया। फिर हेनरी से मेरी शादी हो गई। उसने मेरी ज़िंदगी को गुलाबों से भर दिया। लेकिन उनके बीच जो काँटे थे उन्हें मैं पहचान न सकी। शादी के कुछ साल बाद ही उसने मुझे डिवोर्स देकर एक बिजनेसमेन की बेटी से शादी रचा ली।”
“ओह...वेरी सेड, आंटी...” थोड़ा सोचकर दीपा बोली, “फिर तो उस लड़के को भी अपनी गर्लफ़्रेण्ड को गुलाब नहीं देना चाहिए?”
“दीपा, ये प्रपोज़ल का समय भी ना बहुत नाज़ुक होता है। एक हल्की सी धमक भी दिल को चकनाचूर कर देती है। मैंने पीटर से जो कहा वह ग़लत नहीं था, बस उसे कहने का वक़्त ग़लत था।”
“ह्म्म्म...लेकिन यह लड़का अगर संघर्ष में नाकामयाब रहा तो फिर तो उसकी गर्लफ़्रेण्ड के साथ धोखा हुआ ना?”
“ऐसा नहीं होगा दीपा, हमारा समय और था...आज की पीढ़ी में जूझने का जज़्बा है। अब तो लड़का-लड़की दोनों मिलकर अपने भावी जीवन की योजनाएँ बनाते हैं।”
“ओहो...थैंक यू आंटी!” दीपा थोड़ा सोचने लगी, फिर बोली, ”....अच्छा आंटी मुझे भी जाना है।”
“अरे आज तो छुट्टी थी...फिर तुझे कहाँ जाना है?”
“आंटी...आज प्रपोज़ल एक्सेप्ट करने का दिन है!” खिलखिलाती हुई दीपा भी उसी ओर चल पड़ी जिस ओर वह लड़का गया था।