मोबाइल पर सन्देश चमका। कोई वीडियो था। साथ ही एक नोट था, “इसे अकेले में देखें।“
सन्देश देखते ही मेरी बाँछें खिल गईं। मैंने वीडियो चालू किया।
“पलट इसे, चेहरा देखना है!” एक अकड़दार आवाज कड़की। उसके साथ ही दिखा कि एक औरत औंधे मुँह जमीन पर पड़ी है। उसके शरीर पर कपड़े न के बराबर थे।
“औरत है साहेब, कोई चादर-वादर ऊपर डाल देते तो पलटते!” यह दूसरी आवाज थी।
“अरे पलट ना...वह मर चुकी है!” आवाज दोबारा कड़की।
“फिर भी साहेब...है तो औरत ही न... !”
“अरे बेवकूफ! पलट ना...पता तो चले कि यह है कौन....!”
कुछ हाथ औरत को सीधा करने लगे। मन हुआ कि वीडियो बंद कर दूँ। लेकिन फिर अजीब सी उत्सुकता ने ऐसा करने से रोक दिया। एकाएक वीडियो ब्लर होने लगा। मैं खिसिया गया।
कुछ देर बाद वीडियो साफ हुआ तो उत्सुकता फिर बढ़ी। कैमरा औरत के चेहरे को जूम करता हुआ आहिस्ता-आहिस्ता नीचे आने लगा। लेकिन कुछ ही क्षणों बाद वीडियो समाप्त हो गया।
"ओफ्फ़ोह !" मैं झुँझला उठा। झुँझलाहट में अकस्मात मोबाइल का कैमरा ऑन हो गया।
उसमें अपना चेहरा देखते हुए मैं चौंक गया। मुझे खुद पर घिन हो आई।
उसमें अपना चेहरा देखते हुए मैं चौंक गया। मुझे खुद पर घिन हो आई।