राजा सूर्यप्रताप के शासन का डंका स्वर्ग तक गूँजने लगा तो देवताओं ने प्रभु से राजा सूर्यप्रताप के शासन पर अंकुश लगाने की प्रार्थना की। प्रभु ने आश्वासन दिया कि वे स्वयं इसकी जाँच करेंगे। वे अपने एक गण को लेकर राजा सूर्यप्रताप के राज्य की ओर चल दिए।
वहाँ उन्होंने देखा कि कुछ लोग युद्ध के नगाड़े बजा रहे हैं। कुछ लोग मदिरा और रास-रंग में लिप्त हैं और कुछ लोग अपने खेतों के किनारे बैठकर रस्सियाँ बट रहे हैं।
अब प्रभु का धैर्य जाता रहा। उन्होंने तुरंत अपने गण को वास्तविकता का पता लगाने के लिए वापस भेजा।
गण के वापस आते ही प्रभु ने अविलंब प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
“वे लोग कौन थे, जो बिना युद्ध के नगाड़े बजा रहे थे?”
“सैनिक थे प्रभु!”
“और वे, जो मदिरा और रास-रंग में लिप्त थे?
“वे चौकीदार थे प्रभु।”
“अर्थात्!”
“प्रभु, नगाड़ों की गूँज से प्रजा हरदम आतंकित और चौकन्नी रहती है इसलिए चौकीदारों का काम प्रजा स्वयं कर देती है। इससे उनके पास समय ही समय रहता है, जिसे वे रास-रंग में व्यतीत करते हैं।
“और जो इतनी सारी रस्सियाँ बट रहे थे वे कौन थे?
“वे किसान थे प्रभु!”
“अर्थात्!”
“मदिरा और रास-रंग की आपूर्ति के बदले चौकीदारों ने व्यापारियों को खेतों का मालिक बना दिया।”
“आगे कहो!”
“और प्रभु, वे किसान अपनी इहलीला समाप्त करने के लिए रस्सियाँ बट रहे थे।“
“अर्थात्, वास्तव में राजा सूर्यप्रताप दीर्घ शासन के योग्य हैं।“