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नई नवेली तू अजब वसुंधरा है
तेरे रूप में सौंदर्य बिखरा पड़ा है
माथे पे सूरज की बिंदिया सजाली
गालों पर उषा की लाली लगाली
नीला आसमानी आँचल उड़ा है
तेरे रूप में सौंदर्य बिखरा पड़ा है
पंछियों के कलरव सी पायल है बोली
चली कहाँ तू ओ सुन्दर सलोनी
घाघरे में धानी रत्नाकर उमड़ा पड़ा है
तेरे रूप में सौंदर्य बिखरा पड़ा है
काले घुंघराले केशों सी फैली है रजनी
नाजुक कमर पे नदियों की है करधनी
कंगन में चाँद तारों का नगीना जड़ा है
तेरे रूप में सौंदर्य बिखरा पड़ा है
(चित्र गूगल सर्च से साभार )