“हेलो ऋतु ! मैं पार्क में तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ, तुम आ रही हो
ना ?”
“आ रही हूँ ! माय फुट ! मैं तो तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती !”
“इतनी नाराज़गी ! “देखो, हम लिव इन रिलेशनशिप तो रख ही सकते हैं, और अब
तो इसका चलन भी है।”
“लिव इन रिलेशनशिप ! शिशिर, तुमने मुझे धोखा दिया, मेरा तुमसे कोई
वास्ता नहीं, अब मेरी जिंदगी के पीले पत्ते गिर चुके हैं, मैं वसंत से शादी करने
जा रही हूँ, और खबरदार ! जो अब मुझे कॉल किया तो !”
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (30.01.2015) को ""कन्या भ्रूण हत्या" (चर्चा अंक-1873)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद |
हटाएंबहुत संवेदनशील..... मन के सच्चे भावों की प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंसंजय जी बहुत-बहुत धन्यवाद |
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंपेम और मौसम ... क्या आज की दास्ताँ कह रहा है ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी बहुत-बहुत आभार |
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