रविवार, 5 अप्रैल 2015

'महत्वाकांक्षा'

बुलंदियों पर पहुँचने के जुनून में, उसके क़दम जल्दी-जल्दी आकाश में लगी सीढ़ी पर बढ़ते जा रहे थे । उसने देखा, मंज़िल और उसके बीच बस एक क़दम की दूरी बची है । जैसे ही उसने अपना पाँव अंतिम सोपान पर रखा, तो देखा मंज़िल अंगारों सी दहक रही थी । वह घबरा गया और वापस उतरने के लिए मुड़ा तो सोपानों को देख उसके मुँह से भयंकर चीख निकल गयी, पाँव फिसला और उसकी आँखें खुल गयीं । वह एक भयानक स्वप्न की गिरफ्त से तो बाहर आ गया था किंतु, सोपानों में उभरे वो रक्तरंजित चेहरे अब भी उसकी रूह को कँपा रहे थे, जिनमें से एक चेहरा उसका खुद का था ।
 

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