शनिवार, 26 दिसंबर 2015

'गुड मॉर्निंग' : लघुकथा

कोई भी मौसम हो, भोर के ठीक 5:00 बजे नहीं कि रमानाथ जी के योगासन की चटाई पार्क में बिछ जाती। मजाल है जो कभी घड़ी की सुई एक सेंकेड भी आगे गई हो। फिर पूरे घंटे भर तक उनका योग कार्यक्रम चलता। उसके बाद वे पार्क के कोने में बनी बेंचों पर विराजमान हमउम्र साथियों के साथ पंद्रह मिनट हाहा-हुहू करते। और फिर खरामां-खरामां घर की ओर रवाना हो जाते थे।

कॉलोनी में दो रमानाथ थे और दोनों के उपनाम भी एक ही थे। इसीलिए इन महाशय को सब ‘पाँच वाले रमानाथ जी’ कहकर पुकारने लगे। समय ने अपने कदम आगे बढ़ाए ‘पाँच वाले रमानाथ जी’ सेवानिवृत हो गए। लगभग दो-तीन साल तक उनकी पाँच बजे की योगासन वाली प्रक्रिया निर्बाध चली, फिर धीरे-धीरे उनका पार्क में आना कम होता गया। और इधर तो वे साल भर से पार्क में दिखाई ही नहीं दिए।

आज सुबह-सुबह उनके घर से आवाज़ सुनाई दी, “माघ उतरने को है, और एक आप हैं कि अभी भी रजाई में पड़े हुए हैं।“ पत्नी ने ताना कसा।

“तो अब एक रिटायर्ड आदमी इस उम्र में और क्या करे, क्या रंगबिरंगी शर्ट पहन सड़कों पर सीटी बजाए?“ रमानाथ जी ने भी पलटवार किया।

“अरे, तो पहले की तरह कम से कम थोड़ी देर पार्क में ही चले जाया करो, शरीर को थोड़ी हरकत तो मिल जाएगी।“ पत्नी ने कहा।

“नहीं-नहीं...बहुत ठण्ड है !” रमानाथ जी ने रजाई में दुबकते हुए जवाब दिया।
“तो गर्मी में ही कौन-सा जा रहे थे।“ पत्नी ने उलाहना दिया।

हारकर रमानाथ जी मुर्दनी आवाज़ में बोले, “अच्छा...तुम कहती हो तो चले जाते हैं, लाओ छड़ी, टोपी, मफ़लर दो।’’ इस तरह आज रमानाथ जी स्वेटर के ऊपर लम्बा कोट डाले, हाथों में दस्ताने, सिर पर मंकी कैप, उसके ऊपर मफ़लर लपेटे, पैरों में ऊनी ज़ुराबें चढ़ाए, छड़ी ठुक-ठुकाते हुए पार्क के लिए रवाना हुए।

अच्छी धूप खिली थी। सर्दी भी कुछ ख़ास नहीं थी। रविवार होने से पार्क में चहल-पहल भी कुछ अधिक थी। रमानाथ जी एक बेंच पर जा बैठे। उनकी नजरें पार्क के चारो कोनों को टटोलती हुई सामने खेल रहे बच्चों पर टिक गईं।

थोड़ी देर बाद एक युवती जॉगिंग करते हुए आई और उनकी बगल वाली बेंच पर बैठ गई। रमानाथ जी ने कनखियों से उसे देखा। युवती ने अपने जूते-मोज़े उतारकर किनारे रख दिए और बेंच पर पाँव मोड़कर ध्यान की मुद्रा में बैठ गई। थोड़ी देर बाद रमानाथ जी की नज़र उस पर फिर पड़ी तो उन्होंने भी अपने जूते उतार दिए और पाँव मोड़कर बैठ गए।

लगभग दस मिनट ध्यान करने के बाद युवती ने अपनी आँखें खोलीं। अपने पैरों को सीधा कर पंजे हिलाते हुए उसने रमानाथ जी की ओर देखा। उन्होंने भी दस्तानें और ऊनी ज़ुराबें उतार दीं और पैरों को सीधाकर पंजों को हिलाने लगे। अब युवती अपना जैकेट उतारकर अपनी दोनों बाहें सामने करके कलाई घुमा रही थी। उसने रमानाथ जी को देखा और मुस्कुरा दी।

धूप तेज होने लगी थी। उन्होंने अपने मफ़लर को सिर से उतारकर गर्दन में लपेट लिया। उनकी नजर उस युवती की तरफ गई। वह उनकी ओर देखते हुए अब भी मुस्कुरा रही थी। यह देख रमानाथ जी भी थोड़ा मुस्कुरा दिए। उसने रमानाथ जी के सिर की ओर इशारा कर टोपी उतारने को कहा। रमानाथ जी पहले तो अचकचाए फिर उन्होंने टोपी उतार दी, लेकिन मफ़लर को सिर से कान तक लपेट लिया। युवती ने मुँह बनाते हुए मफ़लर भी उतारने के लिए इशारा किया। रमानाथ जी ने जैसे उसके इशारे को अनदेखा करते हुए अपनी गर्दन दूसरी ओर फेर ली। फिर न जाने क्या सोच उन्होंने मफ़लर उतारा और कनखियों से युवती की ओर देखा। युवती ने अपने अंगूठे और तर्जनी को मिलाते हुए गोला बनाकर इशारा किया और एक आँख दबाते हुए मुस्कुरा दी। रमानाथ जी पहले तो कुछ असहज हुए लेकिन फिर जोर से हो-हो कर हँस दिए।

युवती उठी, अपना जैकेट कंधे पर डाला और उनके निकट आकर बोली, “खुल्ली हवा और हँसी हेल्थ विच गुड होंदीये, होर आप तो इन्ने हेण्डसम हो, बुड्ढों जैसे कपड़े क्यों पेने ओ?” युवती ने उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की और खिलखिलाती हुई पार्क से निकल गई।

रमानाथ जी उसे जाता देखते रहे, जब तक कि वह आँखों से ओझल नहीं हो गई। फिर वे झटके से खड़े हुए, छड़ी एक ओर फेंकी, कोट उतारकर बेंच पर रखा और पार्क में टहलने लगे। धीरे-धीरे उनकी गति बढ़ने लगी।
तभी बच्चों का समवेत स्वर गूँजा, “गुड मॉर्निंग अंकल !” रमानाथ जी हाथ हिलाते हुए तेज़ी से उस ओर बढ़ गए।
अब पिछले कुछ दिनों से बच्चों द्वारा दिया गया उनका नया नाम ‘गुड मॉर्निंग अंकल’ भी पहले वाले नाम की तरह ही लोकप्रिय हो गया है।

चित्र गूगल से साभार 

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