******************************************************
गिरते-पड़ते दोनों परिवार उसी में चढ़ गए। डब्बा खचाखच भरा था। अंदर कदम रखते ही पसीने के भभके ने उनका स्वागत किया। ट्रेन रफ़्तार पकड़ चुकी थी। वे कातर निगाहों से जगह के लिए सवारियों का मुँह ताकने लगे। थोड़ी देर बाद उनकी पत्नियों को बैठने की जगह मिल गई। दोनों के बच्चों को ऊपर की बर्थ पर बैठा दिया। वहाँ दो बच्चे पहले से बैठे थे। शास्त्री और सेठ पसीना पोंछते किनारे खड़े हो लिए। दोनों की पत्नियाँ नाक पर रुमाल लगाए आपस में भुनभुनाने लगीं।
“मईनो पल्ले एसी में रिजर्वेशन करवायो, फायदा को नी।” सेठ की पत्नी भन्नाई।
“वई तो, मैं बोली कि गाड़ी का टेम हो गया, लेकिन शास्त्री जी बोले कि निकलने का टेम अभी नहीं आया।” शास्त्री की पत्नी ने उलाहना दिया।
“मआम्मी, एसी क्यों नई चल्ला ?” सेठ का बच्चा कुनमुनाया।
“बेटा, अगले टेस्सन पर एसी में चलांगे।”
“माम्मी, पानी चाइए !” अब शास्त्री का बच्चा कसमसाया।
“बेटा, स्टेसन आन दो, फिर एसी में चलेंगे वहां पानी पीना। अभी अपनी चाकलेट खाओ।” शास्त्री की पत्नी ने फुसलाया।
“नोय...अब्बी पानी चईये !” बच्चा ठुनकने लगा।
“भेनजी, बच्चे को पानी पिला दो।” एक औरत अपनी पानी की बोतल बढ़ाते हुए बोली।
“ना, हम ये पानी नहीं पीते।”
“भेनजी, ये बीसलरी है, देखिये अभी तक खोला भी नहीं।”
“वो तो ठीक है लेकिन हम थोड़ा धरम-करम वाले हैं।” बीच में शास्त्री बोल पड़ा।
“साब जी, एत्ती देर से आप लोग एससी-एससी का गुणगान कर रहे हो। फिर बच्चे को एक एससी आदमी का पानी पीने से क्यों रोकते हो ?” एक मजदूर यात्री ने चुटकी ली।
“देख भाई, तू अपनी सीख अपने पास रख।'' सेठ ने शास्त्री की बात का समर्थन किया।
ऊपर बैठे बच्चे इन सब बातों से बेखबर थे। एक बच्चा शास्त्री के बच्चे को बोतल से पानी पिला रहा था। सेठ का बच्चा दूसरे बच्चे को अपनी चॉकलेट खिला रहा था। और खुद उसकी गुड़पट्टी मुँह में दबाए आनंद से सिर हिला रहा था। अपने अंदर सबको समेटे ट्रेन रफ़्तार में चली जा रही थी।
*****************************************************
(चित्र गूगल साभार)
शानदार...! शब्दों के हेर फेर से बच्चों के गणतंत्र का बहुत खूबसूरत चित्रण! मज़ा आ गया!!
जवाब देंहटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन - पुण्यतिथि ~ चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लघुकथा ...बच्चों का बचपन ऐसा ही होता है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रोचक लघुकथा .
जवाब देंहटाएंसुन्दर लघुकथा
जवाब देंहटाएंबच्चे भगवान के स्वरुप होते हैं ! अमीरी गरीबी, ऊंच नीच, यह सब बड़े उन्हें सिखाते हैं !
जवाब देंहटाएंJAI HIND