नये साल के स्वागत में मॉल की रौनक चरम पर थी। ठीक उसके सामने रेहड़ी-खोमचे वाले खड़े थे। उनके बीच कुछ खिलौने-गुब्बारे बेचने वाले बच्चे भी थे जो मॉल के अंदर आने-जाने वालों से अपना सामान खरीदने की मिन्नतें करते घूम रहे थे।
निशा मॉल से निकल कर टैक्सी की प्रतीक्षा करने लगी तभी, “ओ दीदी जी! खिलौना ले लो!” एक बच्चे ने आग्रह किया।
“पर मेरे यहाँ तो कोई बच्चा ही नहीं है?” निशा ने उसके गाल को सहलाते हुए कहा।
“ले लीजिये, घर में सजा दीजियेगा!”
“लेकिन बच्चेँ...” जब तक निशा कुछ और कहती, वह बच्चा एक दूसरे आदमी की ओर लपका, “ओ अंकल जी, खिलौना ले लीजिए!”
“हमें नहीं लेने तेरे ये खिलौने!”
“ले लीजिये...कम का लग जाएगा!” अब बच्चे की नजर आदमी के साथ वाले बच्चे पर थी।
“बोला ना, नहीं चाहिए!” आदमी ने झिड़कते हुआ कहा।
“पापा, मुझे वो वाला जोकर चाहिए!” आदमी की उँगली पकड़े हुए बच्चे ने डंडे से लटके मुखौटों की ओर इशारा किया।
”नहीं बेटा...ये खिलौने अच्छे नहीं हैं, चलो अभी अंदर से दिला देंगे!”
“नहीं साब जी जे खिलौने भी अच्छे हैं...एकदम नए!”
“छोरे, ये तू जो बेच रहा है ना ये सब कचरा माल है, जो हमारे दुश्मन देश से आया है!”
“जे कचरा नहीं है साब जी...सारा माल दाम देकर उठाया है!” बच्चे की आवाज भर्रा गयी।
“इधर लाओ, देखूँ क्या-क्या है तुम्हारे पास!”
“हाँ दीदी!...जे देखो चिड़िया! जे मुखौटे वाला जोकर और जे दीवार पर चिपकाने वाली तितलियाँ...” बच्चा हुलसकर निशा को खिलौने दिखाने लगा।
जाते-जाते वह आदमी निशा की प्रतिक्रिया से ठिठक गया था। उसे तितलियॉं खरीदते देखकर वह बड़बड़ाया, “हुँह, इन्हीं लोगों ने देश का बेड़ा गर्क कर रखा है!” और अपने बच्चे को खींचता हुआ मॉल के अंदर घुस गया।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व मलेरिया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंमार्मिक कहानी है, आजकल का नज़ारा कुछ ऐसा ही होता जा रहा है
जवाब देंहटाएंविडंबना !
जवाब देंहटाएं