मंगलवार, 28 जून 2016

भूख का ईमान

चिलचिलाती धूप। पारा सैंतालिस पार कर चुका था। लगभग नौ-दस साल का एक लड़का थर्मोकोल के बक्से में पानी की थैलियाँ रखकर बेच रहा था। जब भी कोई ऑटो या बस बाईपास पर रूकती तो वह हाथों में थैलियाँ लिए ‘पानी ! पानी !’ की आवाज़ लगाता हुआ उनकी ओर दौड़ पड़ता। लोग पानी की थैलियों के बदले उसकी हथेली पर सिक्का रख देते। वह चहकता हुआ उन सिक्कों को एक डिब्बे में डाल देता। उस समय उसके चेहरे पर अपार संतोष दिखाई देता।

पास में एक छोटा सा मन्दिर था। जहाँ भिखारियों और साधुओं का मजमा लगा था। कुछ लोग उन्‍हें भोजन के पैकेट बाँट रहे थे। कुछ ऑटोवाले, रिक्शेवाले भी उन पैकेटों को लेने के लिए खड़े थे। एक रिक्शेवाला लड़के के पास बैठकर पैकेट से पूरियाँ निकाल कर खा रहा था। वातावरण में ताज़ी पूरियों की सुगंध फैल गई थी। लड़का रिक्शेवाले को एक टक देखे जा रहा था।

“जा के तुमहू लय लेव पाकिट !” रिक्शेवाले ने उसे घुड़का।

“नाह ! अम्मा घरे से रोटी लय के आवत होइहै।” लड़के ने इन्कार करते हुए बताया।

“ढेर सेखी न बघार, अबहिये चुक जाई त मुँह तकिहौ !” रिक्शेवाले ने चेताया।

लड़का उसको अनसुना कर सड़क से नीचे जाती पगडण्डी की ओर उचक-उचक कर देखने लगा। शायद माँ की राह देख रहा था। लेकिन ऐसा लग रहा था कि उससे अब भूख बर्दाश्त नहीं हो रही है। वह रह-रह कर सूखे होठों पर अपनी ज़ुबान फेर लेता था।

तभी एक व्यक्ति पैकेट बाँटते-बाँटते उस लड़के के पास आ गया। उसने लड़के की ओर पैकेट बढ़ाते हुए कहा, “लो बेटा !” बच्चे ने एक क्षण उस पैकेट को देखा। फिर धीरे से इन्कार में सिर हिला दिया।

“ले लो बच्चे, सबने लिया, तुम भी ले लो !” उस व्यक्ति ने प्यार से कहा। पैकेट से आती खाने की सुगंध और भूख से कुलबुलाती आँतों के आगे लड़के ने आखिरकार हार मान ली। लड़के ने हिचकते हुए पैकेट थाम लिया।

वह व्यक्ति लड़के को पैकेट थमा कर धीरे-धीरे अपनी कार की ओर वापस लौट रहा था। लड़के की निगाह उसके पीछे ही लगी थी। अचानक उसने पीछे से पुकारा, “बाउजी !” और बिजली की गति से नीचे झुका। व्‍यक्ति ने देखा थर्मोकोल के बक्से से पानी की दो थैलियाँ निकाल कर लड़का उसकी ओर दौड़ा आ रहा है।



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