रविवार, 20 जनवरी 2008

हाय रे! हिन्दी.... अपने देश में हमारी राष्ट्र-भाषा का जो हाल देखा तो मेरा अंतर्मन रो पड़ा अपनी उसी भावना को मैं यहाँ व्यक्त कर रही हूँ




हाय रे! हिंदी तू अपनों में ही पराई हुई......

तेरे देश में तेरे ही अपने तुझे बोलने पर शर्माते हैं

तुझे बोलने पर तेरे अपनों पर जुर्माना लगता है

तेरे नौनिहाल तुझे बोलने पर अपराधी बनते हैं

तुझे बोलने वाले जीविका के लिए भटकते
हैं

क्यों किया तुझे पराया अपनों ने

तू महासागर है हिंद
का

फिर भीहम दूसरों का पानी क्यों भरते हैं

हाय रे! हिंदी तू ........



15 टिप्‍पणियां:

  1. archana ji,
    aap itna sunder likhti hain mujhe aaj pata chala.chaliye aapke antarmann ke bhav computer ke madhyam se yahaan prakat to huye.
    sach hai hindi ki aisi durdasha ho rahi hai ki jaldi hi iske liye samast deshwasiyon ko kuch karna hoga warna iska astitva hi mit jaayega.
    aap jaise lekhakon ka is disha men yogdaan chaahiye hoga
    shubhkaamnaaon sahit
    mitali

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  2. अर्चना जी,

    एक तो आपकी कविता का चयन देखकर मै बहुत खुश हूं. दिनकर की कर्मवीर कविता आप्के जीवन के लिए प्रेरणा बनी, बहुत अच्छी बात है. दूसरी बात, illiterate बच्चो‍ को पढाना, हिम्म्त वाल काम है. बधाई हो जो इसमे‍ अपने जीवन की सार्थकता ढूंढ रही हो!. मॊरीशस से एक शुभचिन्तक. ईश्वर अपको सम्बल दे‍.

    विनय
    vinaye08@gmail.com
    vinayegoodary.blogspot.com
    goodary.wordpress.com

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  3. अभूतपूर्व,एक ही शब्द आपकी कविता के लिए मैं कह सकता हूँ सीधे ह्रदय तक पहुचती है आपकी वाणी. सहस्त्रकोती धन्यवाद आपको.एक अच्छी समाज सेविका, एक अच्छी अध्यापिका होने के साथ साथ आप एक अच्छी कवियत्री भी हैं | ऐसे ही लिखते रहिये. एक बार फिर से धन्यवाद जो आज के इस स्वार्थ और घ्रिन्ना के समय में आपके विचार आज भी पावन है.

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  4. Hi c ur profile and came here to c ur blog.I like it and ur eforts to education, dont know how i can msg in hindi. with regards

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  5. अंतर्मन के विचारों को वाणी देना वास्तव में अत्यंत दुष्कर कार्य है, परन्तु आप इस कार्य को सफलता पूर्वक कर रही हैं इसके लिए आप बधाई की पात्रा हैं.

    न केवल आशा अपितु विश्वास भी है कि आप सामाजिक विखंडन के इस दौर में भी कविता लेखन कर रही हैं आपको शुभकामनाएं प्रेषित हैं.

    स्वीकारें

    धन्यवाद.

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  6. बहुत अच्छा लगा यह देखकर कि आप
    लखनऊ की हैं !

    चिंतन को बाध्य करती हुयी भावपूर्ण कविता
    लिखी है आपने !

    हिंदी की हालत उस बूढ़े पिता के समान हो गई है जिसका करोड़पति बेटा वृद्धाश्रम भेजने पर तुला है, जबकि सारी धन-दौलत पिता की कमाई हुई है। अपने बच्चों को अंग्रेजी के आश्रम में भेजने वाले अंत समय में खुद को वृद्धाश्रम में पाएं तो उन्हें बुरा नहीं मानना चाहिए।

    हिंदी की ऐसी दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है ??
    आखिर अंग्रेजी में ऐसा क्या है कि मुश्किल से आधा दर्जन देशों में बोली जाने वाली इस भाषा के बिना बाकी दुनिया आगे ही नहीं बढ पा रही है ? हिंदी के अतुल और अकूत शब्दकोष के आगे न सिर्फ अंग्रेजी, बल्कि दुनिया की कोई भी भाषा बौनी ही है।
    इसके बावजूद बच्चे के बोलना शुरू करने से पहले ही उसे मम्मी-डैडी रटा दिए जाते हैं। बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो `नॉलेज´ और नौकरी का डर दिखाकर अंग्रेजी के अंगने में डाल दिया जाता है।

    आज की आवाज

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  7. कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की कष्टकारी एवं उबाऊ प्रक्रिया हटा दें ! यूँ लगता है मानो शुभेच्छा
    का भी सार्टिफिकेट माँगा जा रहा हो । इसकी वजह से पाठक प्रतिक्रिया देने में कतराते हैं !

    बहुत ही आसान तरीका :-
    ब्लॉग के डेशबोर्ड पर जाएँ > सेटिंग पर क्लिक करें > कमेंट्स पर क्लिक करें >
    शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > यहाँ दो आप्शन होंगे 'यस' और 'नो' बस आप "नो" पर टिक
    कर दें >नीचे जाकर सेव सेटिंग्स कर दें !

    देखा ***** कितना आसान ***** हो गया !

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  8. लानतें, रोना धोना तो अच्छा हो गया।

    अब अन्दर भी झांके और देखें कि इस हेतु असल में क्या किया जाना चाहिए, और हम कर क्या-क्या रहे हैं।

    अन्यथा ना लें, दिल पर पडी ऐसी ही चोटें हमारे विचारों और व्यवहार के परिष्कार का वाइस बनती हैं।

    सुस्वागतम्........

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  9. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
    गार्गी

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  10. अर्चना जी ;
    स्वागत है आपका इस ब्लॉग की दुनिया में ; आप यूँ ही कर्म (लेखन) करतीं रहें ....शुभकामनाओं सहित....
    आपका एक प्रशंसक

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  11. ब्लाग जगत में आपका स्वागत है । हिंदी को लेकर जो चिंता आपने जताई है वह आपके हिंदी प्रेम को रेखांकित करती है । कविता भव के स्तर पर प्रभावित करती है ।

    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है- फेल होने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढें और प्रतिक्रिया भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  12. हां ये सच है कि हिंदी भाषा के प्रयोग से अक्सर कई जगह नीचा देखना पड़ता है

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