गुरुवार, 3 अप्रैल 2008


कहती हैं लम्बी सूनसान राहें
हर पल राहों पे आते-जाते
दिखाती हूँ भटकते मुसाफिरों को मंजिल का
रास्ता
करके
खुद की गुमराह राहें
कहती हैं लम्बी .....
साथ देती हूँ राही का हर मोड़ पे पर
वो भूल जातें हैं खुद की मंजिलों को पा के
कहती हैं लम्बी.....
शिकवा नहीं है किसी से ना कोई गिला है
पर क्या कोई चलेगा ता उम्र साथ उसके
कहती हैं लम्बी......................

8 टिप्‍पणियां:

  1. [b] di , you have wonderful sense ...n really the poems u denoted here for the ppls are really appreciable ....thanks a lot

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  2. बढिया है....... जारी रखें

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  3. bahut dino baaad computer ko haath lagya hai archna ji aur sab se pehle aapko padha. samvedna bharpur hai..likhti rahiye main bhi jald hi lotunga apneblog par..
    dr.ajeet
    www.shesh-fir.blogspot.com

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  4. aapne ekaakipan par bahut achi rachna likhi hai ..
    bhavnaao ka sundar mishran hai .

    badhai ..


    vijay
    Pls visit my blog for new poems:
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

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