गुरुवार, 21 जनवरी 2010
आया महीना माघ और पूस
आया महीना माघ और पूस
आग भी तापे हरदम फूस
कोहरा ओढ़े सूरज निकले
उसको भी अब लगती सर्दी
पंद्रह दिन कि छुट्टी कर दी
सर्द हवाओं ने ली सब ऊर्जा चूस
आया महीना माघ और पूस
जब तापमान का पारा गिरता
ब्लोवर हीटर सब लग जाता
नहाने में मन करे आना-कानी
नल का देख के ठंडा पानी
लगे जवानी अब गई रूस
आया महीना माघ और पूस
निकली सलाई और ऊन के गोले
माँ स्वेटर बुनती हौले-हौले
पहने स्वेटर ओढ़े कम्बल रजाई
दांत कटकटाए फिर भी भाई
भरी चाय की प्याली को चूस
आया महीना माघ और पूस
(चित्र गूगल सर्च से साभार )
बुधवार, 20 जनवरी 2010
वसंत आया
शीत विदा कर धरती झूमी लो वसंत आया
नव सिंगार रूप का प्रकृति सुंदरी ने करवाया
उतार फेंकी धुंधली चादर भोर ने कोहरे की
ओढ़ लिए सुनहले पर सूरज के किरणों की
उमंग लिए धरती की दुल्हन ने ली अंगड़ाई
प्रेम गीत से भ्रमरों ने नव कलियाँ चटकाई
दृग भरे बलखाती आमों की बौराई डालों से
कर दिया पवन को सुवासित अपनी सुगंध से
नव कोपलें देती नन्ही तितलियों सा भान
पीत सरसों के खेत करते ऋतुराज का आवाहन
श्री कृष्ण के कंठ से माँ शारदे का उद्भूत हुआ
माघ शुक्ल पंचमी का दिन अति पावन हुआ
हे माँ ! दूर करो अज्ञानता के सारे तम
शत-शत करते आपको नमन हम सब जन
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
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