आया महीना माघ और पूस
आया महीना माघ और पूस
आग भी तापे हरदम फूस
कोहरा ओढ़े सूरज निकले
उसको भी अब लगती सर्दी
पंद्रह दिन कि छुट्टी कर दी सर्द हवाओं ने ली सब ऊर्जा चूस
आया महीना माघ और पूस
जब तापमान का पारा गिरता
ब्लोवर हीटर सब लग जाता
नहाने में मन करे आना-कानी
नल का देख के ठंडा पानी
लगे जवानी अब गई रूस
आया महीना माघ और पूस
निकली सलाई और ऊन के गोले
माँ स्वेटर बुनती हौले-हौले पहने स्वेटर ओढ़े कम्बल रजाई
दांत कटकटाए फिर भी भाईभरी चाय की प्याली को चूस
आया महीना माघ और पूस
(चित्र गूगल सर्च से साभार )
बहुत बढ़िया..यही हालात हैं!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर लगा - "आग भी तापे हरदम फूस’ ।
जवाब देंहटाएंप्रविष्टि का आभार ।
बेहद खूबसूरत व उम्दा भाव दिखा आपकी इस रचना में, बहुत-बहुत बधाई आपको इस लाजवाब रचना के लिए।
जवाब देंहटाएं... बहुत लाजवाब लिखा है......
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर कविता. शुभकामनाये .
जवाब देंहटाएंआदर्निय महोदया , शीत रितु को दर्शाति येह कविता पसन्द आयी.
जवाब देंहटाएं'साहित्य वही जो समय के साथ चले' आपने सार्थक कर दिया अपना रचनाकार होना. पूरे उत्तर भारत की शीत लहर का सचित्र वर्णन जैसा अक्स दिखा गया यह गीत.
जवाब देंहटाएंise to dabara padhne aan ahi pada.
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