शनिवार, 28 सितंबर 2013

इंकलाब जिंदाबाद !!!


    

    आज  शहीद-ए-आजम भगत सिंह की 107वीं जयंती  है | इनका जन्म सन्  28 सितम्बर 1907 में गाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था| पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।

    अमृतसर में 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। उस समय भगत सिंह करीब 12 वर्ष के थे जब जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गये। एक साधारण से परिवार में जन्म लेने वाले इस सपूत में असाधारण और दिव्य क्षमता थी | जब तक जिए, ब्रिटिश सरकार के छक्के छुड़ा दिए |

    भगत सिंह द्वारा व्यक्त विचारों और कार्यों की प्रासंगकिता आज भी बनी हुई है। भगत सिंह के विचार हिंसावादी न होकर  बल्कि परिवर्तन पर आधारित थे |  हमारी युवा पीढ़ी को भगत सिंह के जीवन और चरित्र से प्रेरणा लेनी चाहिए | आज के युवकों को अपने जीवन को भगत सिंह के जीवन से तुलना करनी चाहिए | 23  वर्ष की उम्र में इस भारत माँ के सपूत ने वह कर दिखाया जिसकी आज कल्पना भी नहीं  की जा सकती |

    देश का भविष्य सुनहरा हो या काला ये युवा पीढ़ी ही के द्वारा तय होता है | युवकों में जो भटकाव है उससे तो देश क्या खुद उनका भविष्य अंधकूप में चला जायेगा | पैसे कमाने की अंधी दौड़ ने युवकों को अपने कर्तव्यों से विमुख कर दिया है | यह विचार की बात है यदि भगत सिंह और उन जैसे अनेकों युवाओं ने देश की न सोच अपनी तिजोरी की सोची होती तो क्या होता ?

कमाले बुज़दिली है अपनी ही आंखों में पस्त होना, 

गर ज़रा सी जूरत हो तो क्या कुछ हो नहीं सकता।

उभरने ही नहीं देती यह बेमाइगियां दिल की, 

नहीं तो कौन सा कतरा है, जो दरिया हो नहीं सकता।

  ~~ भगत सिंह ~~


 वीरता और साहस का पर्याय कहे जाने वाले भगत सिंह हमारे दिलों में सदैव से हैं बस आवश्यकता है उनके विचारों को रगों में दौड़ाने की, एक इंकलाब की | 



मंगलवार, 17 सितंबर 2013

हम सभी विश्वकर्मा हैं

विश्वकर्मा को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। सोने की लंका और द्वारिका जैसे प्रमुख नगरों का निर्माण  विश्वकर्मा ने किया था |  कर्ण का 'कुण्डल', विष्णु भगवान का ‘सुदर्शन चक्र’, शंकर भगवान का ‘त्रिशूल’ और यमराज का ‘कालदण्ड’ इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था ।


हम सभी 'विश्वकर्मा' हैं  अपने चरित्रअपने व्यक्तित्व, अपने विचारों और अपनी मानसिकताओं के | हमें दृढ इच्छा शक्ति जैसे सुदर्शन चक्र का निर्माण करना चाहिए जो हमारे अंदर बुराइयों को आने से पहले ही काट दे  | अपने ‘विचारों’, ‘मानसिकताओं’, और ‘कर्मों’  के ऐसे त्रिशूल का निर्माण करना चाहिए जो हमारे चरित्र और व्यक्तित्व से  अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष  को नष्ट कर दे |  वासना और व्यसन से बचने के लिए अपनी  इन्द्रियों को कालदंड बना लें तो समाज के व्यभिचार अपने आप दूर हो जायेंगे | 

हमारे कर्म, हमारे विचार हमारे शरीर को लंका भी बना सकते हैं और द्वारिका भी | सही मायने में यही विश्वकर्मा पूजा है जो हमे प्रत्येक दिन करनी चाहिए | 

शनिवार, 14 सितंबर 2013

हिंदी ! तेरी यह कैसी कहानी ?



हिंदी ! तेरी यह  कैसी   कहानी ?
तू हिंद महासागर फिर भी 
हम भरते, गैरों  का पानी 

परदेसी भाषा जो बोलें 
सिर को  ऊँचा  करके चलते 
हिंदी भाषा के ज्ञानी जन  
आँखें अपनी क्यों  नीची रखते ?

देख विडम्बना ऐसी मेरे 
भर आए नयनों में पानी 

 हिंदी ! तेरी यह  कैसी  कहानी ?
तू हिंद महासागर फिर भी 
हम भरते, गैरों  का पानी 

विद्या के आँगन में करके  
तेरा नित अपमान सभी 
परदेसी  भाषा का करते  
 मुक्त गले गुणगान सभी 

ऐसे इतराते है जैसे  कि 
उन सा नहीं  कोई ज्ञानी 
 सालों बीते आज़ादी के फिर भी 
तू बन न सकी हिन्द  की रानी 

 हिंदी ! तेरी यह कैसी कहानी ?
तू हिंद महासागर फिर भी 
हम भरते, गैरों  का पानी ?

 क्या उन्नति अवरुद्ध हुई  ?
  है इनका  क्या कोई सानी ?
निज भाषा की पूजा करते 
 रूसी, चीनी और जापानी 

हिंदी ! तेरी यह कैसी कहानी ?
तू हिंद महासागर फिर भी 
हम भरते गैरों  का पानी