विश्वकर्मा को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और
ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। सोने की लंका और
द्वारिका जैसे प्रमुख नगरों का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था | कर्ण का 'कुण्डल', विष्णु
भगवान का ‘सुदर्शन चक्र’, शंकर
भगवान का ‘त्रिशूल’ और यमराज का ‘कालदण्ड’ इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान
विश्वकर्मा ने ही किया था ।
हम सभी 'विश्वकर्मा'
हैं अपने चरित्र, अपने व्यक्तित्व, अपने
विचारों और अपनी
मानसिकताओं के | हमें दृढ इच्छा शक्ति जैसे सुदर्शन चक्र का निर्माण करना चाहिए जो
हमारे अंदर बुराइयों को आने से पहले ही काट दे | अपने ‘विचारों’, ‘मानसिकताओं’, और ‘कर्मों’ के ऐसे त्रिशूल का निर्माण करना चाहिए जो हमारे
चरित्र और व्यक्तित्व से अहंकार, ईर्ष्या,
द्वेष को नष्ट कर दे | वासना और व्यसन से बचने के लिए अपनी इन्द्रियों को
कालदंड बना लें तो समाज के व्यभिचार अपने आप दूर हो जायेंगे |
हमारे कर्म, हमारे विचार हमारे शरीर को लंका भी
बना सकते हैं और द्वारिका भी | सही मायने में यही विश्वकर्मा पूजा है जो हमे प्रत्येक
दिन करनी चाहिए |
सुंदर भावनायें और शब्द भी …बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें. आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
जवाब देंहटाएंbahut sunder vichar
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