मंगलवार, 23 सितंबर 2014

एक अनुभव - टीचर से राइडर, राइटर और फिर...

  मेरे भाई मयंक तिवारी की मोटर साईकिल से लेह-लद्दाख की यात्रा -वृत्तान्त का हिंदी अनुवाद                              
                                          
      इंसान अपने जीवन में अनगिनत सपने बुनता है, उनमें से कुछ पूरे भी होते हैं | इसी तरह से उसके जीवन में कभी-कभी  अचानक कुछ ऐसा घटता है जो इन सारे सपनों के ऊपर एक धुन, एक जूनून बनकर उसके व्यक्तित्व को एक अलग पहचान बना देता है |  ऐसे ही मेरे जीवन में एक ऐसा क्षण आया जिसने मेरे अपने काम, अपने व्यवसाय से हटकर कुछ अलग कर गुजरने  की प्रेरणा दी और वह क्षण था 20 जून 2013  का दिन, जब  मैं अपने 6 साथियों के साथ मोटर साईकिल से 4000 कि. मी. की लखनऊ से लेह तक 15  दिन की यात्रा करके वापस घर पहुँचा मैं शारीरिक रूप से तो घर आ गया था पर मानसिक रूप से लेह की बर्फीली पहाड़ियों, रास्तों में ही घूम रहा हूँ  | मुझे ऐसा लग रहा था जैसे 70 एम.एम. के परदे पर कोई रोमांचक फिल्म देख रहा था जिसका हीरो मैं खुद था |   गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं | दस दिन बाद कॉलेज खुलने वाला था |  

    अगले दिन सुबह उठने पर मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे कुछ खो गया है | मैं अपने को वापस समेटने की नाकाम कोशिश कर रहा था | लोगों ने मुझसे कहा कि मैं बदल गया हूँ | क्या वाकई ?? मैंने  अपने चेहरे को ध्यान से आईने में देखा, (फ्रोस्ट बाइट से रंगत बदल गई थी) मैं वही था लेकिन मुझमें कुछ बदल गया था | मैंने सुना था कि पहाड़ किसी को कुछ देना चाहते हैं तो उसे अपने पास बुलाते हैं |  मेरे अंदर जैसे कोई सैलाब उमड़ रहा था | मैंने अपने मन को किसी तरह स्थिर किया  और जो कुछ वहाँ देखा, अनुभव किया उसको लिखने बैठ गया |

    सबसे पहले,  मैंने यह क्यों किया ? जब मैं किशोरावस्था में था, मेरे पास बाइक नहीं थी, अरे बाइक तो दूर की बात स्कूल और कॉलेज के दिनों में  मेरे पास स्कूटर तक नहीं था (इसका मतलब यह नहीं कि मुझे टू-व्हीलर चलाना नहीं आता था ) हाँ मेरे पास एक साईकिल थी जो मेरे ग्रेजुएशन तक चली और मुझे इसका गर्व है | जब मेरा ग्रेजुएशन समाप्त होने वाला था तब अपने पिता जी की तरफ़ से उपहार स्वरुप मुझे एक बजाज चेतक स्कूटर मिली , बाइक फिर भी नहीं मिली कारण, पिता जी का (मेरे लिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से)  कहना था कि स्कूटर एक सभ्य और सुरक्षित गाड़ी है हालाँकि वे खुद अपने समय में मेरे जन्म से पहले तीन-तीन बुलेट ले चुके थे |

   मैंने अपनी नौकरी के शुरूआती चार साल उसी बजाज चेतक पर बिताए | नवम्बर 2010 में मैंने अपनी रॉयल एन्फील्ड इलेक्ट्रा 350 सी.सी. बुलेट खरीदी | शुरू में उसपर आस-पास की छोटी-मोटी दूरी तय की | पहली लम्बी यात्रा लखनऊ से मसूरी की, पर कुछ खास उपलब्धि नहीं मिली | बावजूद इसके मैं अपनी बुलेट के साथ हर मनपसंद काम करने में रूचि रखता था | एक बार सब्जी-मंडी सब्जी लेने गया तो सब्जी वाले बड़े ध्यान से मेरी बुलेट देख रहे थे, उनमे से एक बोला,  “ अरे ! ई राजा गाड़ी अहै “, सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई | सड़क पर, पेट्रोल पम्प पर और कॉलेज में  प्रायः सबकी नज़रें अपनी ओर पाता |

   मेरे मन में रह-रह कर सवाल उठता कि क्या मैं एक सशक्त, मजबूत राइडर हूँ ? मैंने पाया कि मेरे पास एक राइडर की फिटनेस और मिजाज़ दोनों हैं जो एक सबसे कठिन इलाके की एक सबसे कठिन यात्रा, जो ऊँचाई और बाधाओं की विभिन्नताओं दोनों दृष्टिकोण से कठिनतम है, को सफल और सुरक्षित पूरा करने की क्षमता है |    जी हाँ ! मैं बात कर रहा हूँ लेह-लद्दाख के इलाके की जो सामान्यतः “मोटरसाईकिल सवारों का मक्का” या यों कहें “मोटरसाईकिल सवारों का स्वर्ग “ के नाम से जाना जाता है | जहाँ बलुई कंकरीले-पथरीले-बर्फीले-कींचड़-पानी भरे  अँधेरे दुर्गम रास्ते, जहाँ बिना पूर्व सूचना के अचानक  मौसम में बदलाव आ जाता है यानि एक ऐसा क्षेत्र जहाँ अक्सर सड़कें भी बंद हो जाती हैं | वहाँ के बारे में लद्दाख के स्थानीय लोगों का कहना है कि – “ इस सबसे ऊँचे दुर्गम बंजर दर्रों में केवल दो ही तरह के लोग आना चाहते हैं - एक वह जो सच्चा दोस्त हो और एक वह जो कट्टर दुश्मन हो |”  

  अब, मैंने क्या किया ? मैंने यहाँ लखनऊ के स्थानीय राइडर्स से बात की जिनमें से एक मेरे स्कूल का दोस्त सोमेन्द्र बनर्जी भी था | और अंत में हमने विश्व के सबसे ऊँचाई पर स्थित ‘खर्दूंग-ला’ जाने का फैसला किया | 6  जून 2013  को लखनऊ से हम 6 मोटरसाईकिल सवारों ने अपनी सबसे रोमांचकारी यात्रा आरम्भ की | आम तौर पर राइडर्स दिल्ली-चंडीगढ़-मनाली मार्ग से खर्दुंग-ला जाते हैं पर  हमने अपनी  अधिक रोमांचक और कम ढलान वाले मार्ग को चुना जो -  लखनऊ-हरिद्वार-देहरादून-चकराता-रोहरू-नर्कुंडा-कुल्लू-मनाली-तांडी-केलोंग-जिस्पा-सरचू-रुम्प्त्से-लेह-पेंगोंग लेक-कारगिल-द्रास-सोनमर्ग-श्रीनगर-उधमपुर-जम्मू-लुधियाना-अम्बाला-पानीपत-सोनीपत-दिल्ली-आगरा-कानपुर-लखनऊ था |

   मैंने वहाँ जो कुछ भी देखा उसे शब्दों में बयान करना बहुत ही मुश्किल है | जलोरी पास- जिसे आम तौर पर पर्यटक नहीं जानते, जहाँ  राइड के लिए अपने कठिनतम तीखे ढलान मिलते हैं, रोहतांग पास-  जहाँ पर्यटकों का तांता लगा रहता है और हमेशा ट्रेफिक जाम मिलता है, खर्दुन्गला- 18380 फुट विश्व में सबसे ऊँचा और  तंगलांगला- विश्व में दूसरे स्थान पर  17800 फुट ऊँचा गाड़ी चलाने के लिए पास है | फोटूला- नाम के अनुरूप जहाँ सुन्दरतम दृश्य देखने को मिलते हैं, जोजिला- जिसका  हमने ‘गोडजिला’ नाम दिया जहाँ मोटरसाइकिल सवारों के लिए भयंकर चढ़ाई है | इन दर्रों के बीच छोटे-छोटे ढाबे मिले जहाँ हम छोटा विश्राम लेते थे और जहाँ हमें बर्फीली हाड़ तक कंपा देने वाली ठण्ड से राहत देने के लिए चाय पीने को मिल जाती थी | पहला मार्ग  चकराता से मिला जो उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों  से केलोंग और सरचू की ठंडी बर्फीली सड़कों की ओर ले जाता है जहाँ भव्य मूरी मैदान, कभी न खतम होने वाले गाता के मोड़, सुंदर रंगीन पहाड़ियों के बीच होती हुई डामरयुक्त सड़कें जो खारु और लेह को जाती हैं | जहाँ सड़कें समाप्त  हो जातीं हैं और जहाँ दिव्य, भव्य, शानदार मनोरम घाटियाँ हैं, वहाँ के तीखे ढलान, बर्फ़ से ढकी सफ़ेद दिव्य पहाड़ियां जो एक रक्षक की भांति तैनात हैं, उग्र सतलज नदी के साथ-साथ चलती घुमावदार सड़कें और फिर कश्मीर के हरे-भरे सुंदर पहाड़ों से होते हुए हम वापस गर्म उमस भरे लखनऊ के वातावरण में आ पहुँचे | इस दौरान हमने  लद्दाख के लज़ीज़ पकवान और ताज़गी भरी चाय और श्रीनगर के डल झील के स्वादिष्ट कबाब खाने का भी आनंद उठाया |  
  
   यात्रा के दौरान जब हम शारीरिक रूप से अत्यंत थके हुए अपने दुर्गम कठिनतम एक पड़ाव को समाप्त कर दूसरे तक पहुँच जाते तब हमें यह अनुभव होता कि वाकई में हममें  एक सशक्त राइडर छिपा हुआ था जिसका हमें ज्ञान नहीं था | जब हम वहाँ की सुन्दर वादियों के अत्यंत मनोरम दृश्य देखते तो हमें अपनी सारी थकान तुच्छ लगती | मैंने प्रायः देखा है कि जब कोई राइडर अपनी लेह-लद्दाख की यात्रा पूरी करता है तो उनमें से मुट्ठी भर हैं जो अपनी दुर्गम रोमंचक यात्रा को दूसरों के साथ बांटते हैं और ऐसी योजना बना पाते हैं  कि उनकी  मोटरसाइकिल उनकी यात्रा की सभी बाधाओं को किस प्रकार से दूर करके उनको सुरक्षित अपने पड़ाव तक पहुंचाए | यह यात्रा मनोरम दृश्यों के बीच किसी युद्ध के मैदान जैसा अनुभव देती है | मोटरसाइकिल आनंददायक सवारी  है अवश्य है इसमें कोई शंका नहीं परन्तु  हमने अपनी यात्रा के दौरान हमेशा  सभी छोटे से छोटे और बड़े से बड़े सारे सुरक्षा नियमों का कड़ाई से पालन किया जिसके कारण हमने अपनी इस रोमांचक यात्रा को सुरक्षित आनंददायक अंजाम दिया |

   इस यात्रा के बाद मैं रॉयल एन्फील्ड की दो पंक्तियों जो लेह-लद्दाख की यात्रा के लिए हैं से पूर्ण रूप से सहमत हूँ , एक - “Tiring-Testing-Tempting”  और दूसरी है -“The road to heaven is never a straight line”  जो वास्तविक और लाक्षणिक दोनों रूपों में सत्य है | कहते है वादे  स्वर्ग में किए जाते हैं इसलिए मैंने भी लेह-लद्दाख में एक वादा किया कि मै अपनी इस यात्रा की साथी मोटरसाइकिल के साथ  अगले साल दोबारा फिर आऊंगा |

                                                                      
                                   -मयंक तिवारी (हिंदी अनुवाद –अर्चना तिवारी )











          

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