रविवार, 1 मार्च 2015

‘अर्जुन का अंगूठा’

एक नन्हा कबूतर  जिसे अभी ठीक से उड़ना नहीं आता था, भटक कर एक बाग़ में पहुँच गया । वहाँ उसने देखा कि एक हंस अन्य पक्षियों को उड़ने के गुर सिखा रहा है। कबूतर ने भी आग्रह किया और उड़ना सीखने लगा । धीरे-धीरे कबूतर ऊँचे-ऊँचे पेड़ों तक उड़ान भरने लगा , ये देख हंस को उस पर बहुत गर्व होता था। बाग़ में एक बहुत ऊँचा वृक्ष था जिसके शीर्ष पर नन्हें फूल खिले थे जो कभी झड़ते नहीं थे। एक दिन हंस ने एक प्रतियोगिता रखी कि जो उन फूलों को तोड़कर लायेगा वह विजयी होगा। सभी पक्षियों ने उड़ानें भरीं परन्तु कोई भी शीर्ष तक नहीं पहुँच सका तभी हंस ने देखा कि नन्हा कबूतर अपनी चोंच में फूल लेकर सामने खड़ा है। यह देखकर हंस को अत्यंत प्रसन्नता हुई और हैरानी भी क्योंकि अभी तक सिर्फ वही उन फूलों को छू पाया था।
कुछ दिन बीतने पर हंस ने सभी पक्षियों की परीक्षा लेने की सोची। पास ही एक पहाड़ी थी जिसकी चोटी पर अद्भुत फल लगे थे, उसने सभी पक्षियों से कहा कि जो उस पहाड़ी से फल तोड़कर लाएगा वो इस परीक्षा में उत्तीर्ण माना जायेगा और उसे ही सर्वश्रेष्ठ उड़ाका का पुरस्कार दिया जाएगा। प्रातः सभी पक्षी उड़े किंतु पहाड़ी की चोटी इतनी ऊँची थी कि बेचारे थक कर वापस आ गए, धीरे-धीरे शाम होने लगी सबने देखा वो कबूतर अभी तक वापस नहीं लौटा था, पक्षियों को चिंता होने लगी किंतु हंस के मुख पर अपूर्व संतोष झलक रहा था, उस पहाड़ी के फल ज़हरीले थे।

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