रविवार, 13 दिसंबर 2015

चीयरअप : लघुकथा

हर शाम स्कूटर पर ऑफ़िस से घर लौटती अदिति के होठों पर कोई मधुर गीत होता। आँखें फ़्लाईओवर से नज़र आती दूर तक फैली बसाहट और आसमान के मिलन के अद्भुत नज़ारे के आनंद में डूबी होतीं। कभी कोई अनोखा दृश्य देख वह एक पल के लिए ठिठक जाती। फिर उससे मिलने वाली आनंदानुभूति अपने जेहन में भरकर जैसे दिन भर के तनाव से मुक्त हो जाती।

आज भी वह ऐसे ही आनंद के आगोश में थी कि एक साइकिल सवार उसे पीछे छोड़ते हुए तेज़ी से आगे निकल गया। अक्सर जब भी कोई स्कूटर या मोटरसाइकिल अदिति को पीछे छोड़ते हुए आगे निकलती है तो वह अपने स्कूटर की रफ्तार बढ़ाकर उसे पीछे छोड़ देती है। पर आज न जाने क्यों उसने स्कूटर आगे न बढ़ाकर उस साइकिल सवार के पीछे लगा दिया। साइकिल सवार ने जैकेट पहन रखी थी। जैकेट के हुड से उसका सिर ढका था। उसके चौड़े कंधे साइकिल पर पैडल मारने की जद्दोजहद में हलके से दाएँ-बाएँ झुककर अपना आकर्षण और बढ़ा रहे थे। कुछ देर बाद जब फ़्लाईओवर की सीधी चढ़ाई शुरू हुई तो अदिति स्कूटर की रफ्तार बढ़ाकर आगे निकल गई। साइकिल सवार स्कूटर के साइड मिरर में नज़र आ रहा था। अदिति स्कूटर की रफ्तार धीमी कर उसका चेहरा देखने की कोशिश करने लगी।

उसने देखा साइकिल सवार साइकिल रोककर फ़्लाईओवर के किनारे बैठी एक बूढ़ी औरत से साइकिल के पीछे इशारा करते हुए कुछ कह रहा है। बूढ़ी औरत के साथ एक सात-आठ साल का बच्चा और एक बड़ा झोला भी था। कुछ क्षणों बाद उसने देखा बूढ़ी औरत साइकिल के पीछे बैठ गई। उसने झोले को साइकिल के हेंडल में फँसा दिया। बच्चे को आगे के डंडे पर बिठाया और खुद पैदल साइकिल खींचते हुए फ़्लाईओवर चढ़ने लगा। अदिति ने स्कूटर रोक दिया।

ऑफ़िस आते-जाते रास्ते में बस या ऑटोरिक्शा की प्रतीक्षा में खड़े लोगों को उनके गंतव्‍य तक छोड़ना तो अदिति की आदत में शुमार है। कई बार तो वह बस के इंतज़ार में खड़े स्कूल के बच्चों को उनके स्कूल तक छोड़ने चली जाती है। ऐसे में उसको ऑफ़िस के लिए देर भी हो जाया करती है। पर आज न जाने कैसे वह इस बूढ़ी औरत को देखने से चूक गई। असल में उसका सारा ध्यान साइकिल सवार पर था। शायद इसीलिए उसने उस बूढ़ी औरत को नहीं देखा। बहरहाल अब बड़ी बेताबी से वह साइकिल सवार और उस बूढ़ी औरत की प्रतीक्षा कर रही थी।

उसने पलटकर देखा। वह निकट आ गया था। अदिति साइकिल सवार को देखकर अवाक़ रह गई। वह उसकी कल्पना के विपरीत कोई साठ-पैंसठ साल का एक बुज़ुर्ग था। अदिति अपलक उसे देखे जा रही थी। साइकिल खींचने से उसका चेहरा लाल हो आया था। ढलते सूरज की किरणों में उसके माथे पर उभरी पसीने की बूँदें सुनहरे मोतियों सी चमक रहीं थीं। उसने अपना सिर बाईं ओर घुमाकर अदिति की ओर देखा। अदिति ने अपना हेलमेट उतार दिया और बरबस उसका दायाँ हाथ सलाम की मुद्रा में उठ गया। फिर वह अँगूठे से चीयरअप करती हुई मुस्करा दी। साइकिल सवार भी चीयरअप करता मुस्करा दिया।

अदिति उससे कुछ कहती इसके पहले ही वह सावधानी से साइकिल पर चढ़ा और पैडल मारते हुए फ़्लाईओवर की ढलान पर उतर गया। मदद करने का ख्‍़याल अदिति के मन में ही रह गया। वह रोमांचित लेकिन ठगी-सी उसे देखे जा रही थी। साइकिल सवार को छूकर आ रहे शीतल हवा के झोंके अदिति को एक अजीब-सा सुकून दे रहे थे।

('क्षितिज' 2018, अंक - 9 में प्रकाशित ) 

चित्र गूगल से साभार 

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