सोमवार, 5 दिसंबर 2016

परिवेश (लघुकथा)

“देखिये ये बच्चों की तस्वीरों का कोलाज उनके कमरों के लिए बनवाया है!’
“बहुत अच्छा है।”
“और ये हमारी तस्वीरों का कोलाज, अपने बेडरूम के लिए।”
“अरे वाह, ये वाली तब की है ना जब ईशा होने वाली थी?”
“नहीं, ये हमारी शादी की पहली सालगिरह की है।”
“अरे हाँ याद आया, तुम साल भर में एकदम गोला बन गई थीं न...” कहते हुए विशाल ने बाईं आँख दबा दी।
“जनाब, मैं गोला नहीं हुई थी समझे, वो साड़ी ही फूली-फूली थी।” रुठते हुए नीना ने विशाल की बाँह में चिकोटी काटी।
“हा हा हा, नाराज़ हो गई मेरी नीनू।” कहते हुए विशाल उसके नज़दीक सरक आया।
“हटिये, मुझे अभी बहुत काम है।” कहते हुए नीना तस्वीर लेकर बच्चों के कमरे में चली गई।
‘’ईशा, ये तेरी और आशू के बचपन की तस्वीरों का कोलाज है, ज़रा इस दीवार पर टंगवाने में मेरी मदद कर।” नीना बोली।
“लेकिन मम्मा, उस दीवार पर तो मैं कुछ और लगाऊँगी।”
“अरे तो उसके लिए बगल वाली दीवार हैं ना।”
“नहीं, उस दीवार पर तो इसे बिल्कुल भी मत लगाना।” आशू बोल पड़ा।
“क्यों, तुझे इससे क्या तकलीफ़ है?”
“मम्मा, वहाँ मैं अपने फ़ेवरेट फ़ुटबाल प्लेयर्स का पोस्टर लगाऊँगा।”
“और इस दीवार पर मैं अपने फ़ेवरेट मॉडल्स का पोस्टर लगाऊँगी।”
नीना अपने कमरे में आकर निढाल सी बेड पर बैठ गई। मानो उसके उत्साह रूपी गुब्बारे में किसी ने सुई चुभो दी हो। विशाल ने कनखियों से नीना को देखा। नीना के हाथ में तस्वीर देख उसने माज़रा भाँप लिया।
वह बोला, “नीना, वो मैं कह रहा था कि बच्चों की तस्वीरों वाला एक कोलाज अपने बेडरूम में भी होता तो अच्छा रहता।”
“उम्म....हाँ...शायद आप ठीक कह रहे हैं ।” नीना ने पैर के अंगूठे से फ़र्श कुरेदते हुए जवाब दिया।
“क्या हुआ?” विशाल उसके निकट आकर बैठ गया।
“कुछ नहीं।”
“देखो नीना, जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तो उनका रहन-सहन, उनका पहनना-ओढ़ना उनके परिवेश के अनुसार ढलने लगता है। और ये होना भी चाहिए।”
“वो तो ठीक है, परन्तु ये तस्वीर उनका क्या बिगाड़ रही थी?”
“नीना, बात तस्वीर की नहीं है। यह पीढि़यों का अंतर है। उनकी पीढ़ी हमारी पीढ़ी से कुछ अलग सोचती है। क्या तुम चाहोगी कि इन छोटी-छोटी बातों को लेकर हमारे और बच्चों के बीच यह पीढि़यों का अंतर और बढ़े?”
“न ना, बिलकुल भी नहीं। मैं चाहती हूँ कि वे भी खुश रहें और हम भी।” नीना के अंदर जैसे चेतना लौट आई।
“ये हुई न बात, तो अब ये बताओ कि इस तस्वीर को कहाँ लगाना है?”
“एकदम हमारी नज़रों के सामने, उस दीवार पर।”
“ओके, योर हाइनेस।” विशाल ने इस अंदाज़ से सिर झुकाया कि नीना की सारी उदासी काफ़ूर हो गई।
दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े।

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