मैं सुबह जल्दी-जल्दी स्नान कर राखी बंधवाने के लिए बैठक में आ कर छोटी बहन का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा। हमेशा राखी बाँधने के बाद उपहार के लिए उसका आँखों को नाच-नचा कर तकरार करना मुझे बड़ा भाता था, इसीलिए मैं हमेशा उपहार छिपा देता था। आज भी उसके मनपसंद उपहार को मेज के नीचे छिपा दिया। जब काफ़ी देर हो गई और वह राखी लेकर नहीं आई तो मैंने उसे आवाज़ दी।
“छोटी !”
“भैया, छोटी तो मझले भैया के यहाँ गई है, राखी बांधने ।” छोटा भाई तैयार होते हुए बोला।
टाई बांधते हुए छोटे की कलाई पर बंधी राखी देख मुझे थोड़ी मायूसी हुई।
“ओह, हमेशा सबसे पहले मुझे राखी बांधती थी ना इसलिए मैने सोचा कि उसे आवाज़ दे दूँ ।” मैंने अपने को संयत करते हुए कहा।
“बेटा, छोटे और मझले को ऑफिस जाना है न।” माँ समझाते हुए बोली।
माँ के ये शब्द सुनकर मुझे थोड़ा आघात सा लगा। मुझे याद आया कि हां सही बात है मुझे कौन सा ऑफिस जाना है। बेरोजगारी का ख्याल आ गया। मैं अपनी सूनी कलाई को देख होठों पर फीकी सी मुस्कान लाते हुए मन ही मन बुदबुदाया
"कुछ दिन पहले तक मुझे भी ऑफिस जाने की जल्दी रहती थी।"
मैं वापस बैठक में आकर मेज के नीचे छिपाए उपहार को उठाने के लिए झुका ही था कि तभी -
“भैया !” पीछे से छोटी की पुकार ने मुझे चौंका दिया ।
छोटी सामने खड़ी खिलखिला रही थी। मैं हक्का-बक्का मामला समझने की कोशिश करने लगा। वह अपनी गोल-गोल आँखों को नचाते हुए बोली –
“भैया, हमेशा मैं सबसे पहले आपको राखी बांधती थी न, इस बार मैंने सोचा क्यों न उलटा किया जाए। पहले छोटे भैया, फिर मंझले और फिर मेरे प्यारे बड़े भैया।’’
उसी समय माँ, मझले और छोटे भी बैठक में आ गए। छोटा बोला -
“भैया इस छोटी की बच्ची के ड्रामे ने इस बार हम सब को भी चक्कर में डाल दिया। यह मानी ही नहीं।’’
‘’लाओ अब जल्दी से अपनी कलाई आगे करो।’’ छोटी ने अपनी आंखे नचाते हुए कहा।
बैठक में गूंज रहे ठहाकों के बीच मैंने अपनी संकीर्ण सोच को जैसे-तैसे छिपाते हुए छोटी की नाक पकड़ कर जोर से हिला दिया।
“छोटी !”
“भैया, छोटी तो मझले भैया के यहाँ गई है, राखी बांधने ।” छोटा भाई तैयार होते हुए बोला।
टाई बांधते हुए छोटे की कलाई पर बंधी राखी देख मुझे थोड़ी मायूसी हुई।
“ओह, हमेशा सबसे पहले मुझे राखी बांधती थी ना इसलिए मैने सोचा कि उसे आवाज़ दे दूँ ।” मैंने अपने को संयत करते हुए कहा।
“बेटा, छोटे और मझले को ऑफिस जाना है न।” माँ समझाते हुए बोली।
माँ के ये शब्द सुनकर मुझे थोड़ा आघात सा लगा। मुझे याद आया कि हां सही बात है मुझे कौन सा ऑफिस जाना है। बेरोजगारी का ख्याल आ गया। मैं अपनी सूनी कलाई को देख होठों पर फीकी सी मुस्कान लाते हुए मन ही मन बुदबुदाया
"कुछ दिन पहले तक मुझे भी ऑफिस जाने की जल्दी रहती थी।"
मैं वापस बैठक में आकर मेज के नीचे छिपाए उपहार को उठाने के लिए झुका ही था कि तभी -
“भैया !” पीछे से छोटी की पुकार ने मुझे चौंका दिया ।
छोटी सामने खड़ी खिलखिला रही थी। मैं हक्का-बक्का मामला समझने की कोशिश करने लगा। वह अपनी गोल-गोल आँखों को नचाते हुए बोली –
“भैया, हमेशा मैं सबसे पहले आपको राखी बांधती थी न, इस बार मैंने सोचा क्यों न उलटा किया जाए। पहले छोटे भैया, फिर मंझले और फिर मेरे प्यारे बड़े भैया।’’
उसी समय माँ, मझले और छोटे भी बैठक में आ गए। छोटा बोला -
“भैया इस छोटी की बच्ची के ड्रामे ने इस बार हम सब को भी चक्कर में डाल दिया। यह मानी ही नहीं।’’
‘’लाओ अब जल्दी से अपनी कलाई आगे करो।’’ छोटी ने अपनी आंखे नचाते हुए कहा।
बैठक में गूंज रहे ठहाकों के बीच मैंने अपनी संकीर्ण सोच को जैसे-तैसे छिपाते हुए छोटी की नाक पकड़ कर जोर से हिला दिया।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/08/2019 की बुलेटिन, "प्रथम पुण्यतिथि पर परम आदरणीय स्व॰ अटल बिहारी वाजपाई जी को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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