फ़ोटोग्राफ़ी और कहानी लिखना सोनाक्षी का सबसे पसंदीदा शौक था। यह शौक उसकी रोजी-रोटी का सहारा भी था। अक्सर उसकी निगाहें सड़कों पर कुछ तलाशती चलतीं। शायद कोई कहानी। कोई ऐसी कहानी, जो मास्टरपीस बन जाए। मोनालिसा की तरह।
कल भी वह इसी धुन में चली जा रही थी। ओवर ब्रिज के नीचे लगे नल पर कुछ बच्चे नहा रहे थे। उनकी किलकारियों ने सोनाक्षी का ध्यान आकर्षित किया। उसने अपनी एक्टिवा रोक दी। वह उनकी जल क्रीड़ाओं का आनंद लेने लगी। फिर बैग से कैमरा निकालकर वह उस दृश्य को शूट करने लगी।
शूट करते हुए उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी। वह बच्चों के हाथ-पैर झाँवे से रगड़ रही थी। उसके कपड़े पानी से सराबोर थे और बदन पर चिपके जा रहे थे। उसके साँवले चेहरे पर भीगी लटें बहुत मोहक लग रही थीं। वह हाथों से बार-बार उन्हें पीछे कर देती थी। सोनाक्षी ने लेंस का फ़ोकस ज़ूम कर दिया। अब लड़की के हाव-भाव कैमरे में शूट होने लगे।
फ़िल्म शूट करने की धुन में सोनाक्षी उनके निकट पहुँच गई थी। अचानक लड़की की निगाह सोनाक्षी पर पड़ी। वह थोड़ी असहज हो उठी। यह देख सोनाक्षी ने कैमरा हटा लिया।
“मोना दीदी! जल्दी आवो न... !” तभी ओवर ब्रिज के नीचे से किसी बच्चे ने पुकार लगाई।
“आ....रहे हैं !’’ लड़की ने जवाब दिया। और बच्चों को साथ लेकर वह ओवर ब्रिज के नीचे बनी झोपड़ियों की ओर चल दी।
थोड़ी देर सोनाक्षी उसे जाता हुआ देखती रही। पहले उसने सोचा उसके पीछे जाए, फिर कुछ देर पहले की घटना को याद कर एक अजीब से अपराधबोध से भर उठी।
हौले-हौले वह अपनी एक्टिवा की ओर बढ़ी और वापस चल दी।
सोनाक्षी पूरे समय उस लड़की के बारे में, उसकी असहजता के बारे में ही सोचती रही। रात भी उसने करवट बदलते काटी। जब उसने मन ही मन तय किया कि कल जाकर वह उस लड़की से माफी माँगेगी, तभी उसे नींद आई। आज दोपहर होते-होते वह फिर से ओवर ब्रिज के नीचे थी।
उसने देखा दस-बारह बच्चे ज़मीन पर बैठकर अपनी-अपनी कॉपी में कुछ लिख रहे थे। एक लड़की ओवर ब्रिज के पिलर पर कुछ लिख रही थी। जब वह पलटी तो उसका चेहरा देखकर सोनाक्षी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। यह तो वही लड़की है जो बच्चों को नहला रही थी।
“तुम...!”
“हाँ, हम।“ सोनाक्षी की बात पूरी होने से पहले लड़की ने जवाब दिया।
“यह सब...?” सोनाक्षी ने आश्चर्य प्रकट किया।
“हमारे बाबा सब्जी बेचते थे। बीमारी ने उनकी जान ले ली। उस समय हम आठ में पढ़ते थे। हमारी पढ़ाई छूट गई।“
“और माँ?”
“वो भी सब्जी बेचती हैं, लेकिन आजकल बीमार हैं।”
“ओह, तो फिर...?”
“दीदी, हम एक स्कूल में नर्सरी के बच्चों की कॉपी पर होमवर्क देने का काम करते हैं, और...।“
“...और फिर इन बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हो।”
“न ना...ट्यूशन नहीं, इनको पढ़ना-लिखना सिखाती हूँ बस यूँ ही।’’ कहते हुए लड़की का चेहरा आत्मविश्वास से चमक उठा।
आदतन सोनाक्षी का हाथ अपने कैमरे पर चला गया।
“रुको दीदी..., एक फ़ोटो बच्चों को पढ़ाते हुए।” कहकर वह खिलखिला पड़ी।
सोनाक्षी उसकी फुलझड़ी जैसी खिलखिलाहट को अपने कैमरे में कैद करते हुए बोली, "वाह! मेरी मोनालिसा..."
#विश्व_साक्षरता_दिवस
कल भी वह इसी धुन में चली जा रही थी। ओवर ब्रिज के नीचे लगे नल पर कुछ बच्चे नहा रहे थे। उनकी किलकारियों ने सोनाक्षी का ध्यान आकर्षित किया। उसने अपनी एक्टिवा रोक दी। वह उनकी जल क्रीड़ाओं का आनंद लेने लगी। फिर बैग से कैमरा निकालकर वह उस दृश्य को शूट करने लगी।
शूट करते हुए उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी। वह बच्चों के हाथ-पैर झाँवे से रगड़ रही थी। उसके कपड़े पानी से सराबोर थे और बदन पर चिपके जा रहे थे। उसके साँवले चेहरे पर भीगी लटें बहुत मोहक लग रही थीं। वह हाथों से बार-बार उन्हें पीछे कर देती थी। सोनाक्षी ने लेंस का फ़ोकस ज़ूम कर दिया। अब लड़की के हाव-भाव कैमरे में शूट होने लगे।
फ़िल्म शूट करने की धुन में सोनाक्षी उनके निकट पहुँच गई थी। अचानक लड़की की निगाह सोनाक्षी पर पड़ी। वह थोड़ी असहज हो उठी। यह देख सोनाक्षी ने कैमरा हटा लिया।
“मोना दीदी! जल्दी आवो न... !” तभी ओवर ब्रिज के नीचे से किसी बच्चे ने पुकार लगाई।
“आ....रहे हैं !’’ लड़की ने जवाब दिया। और बच्चों को साथ लेकर वह ओवर ब्रिज के नीचे बनी झोपड़ियों की ओर चल दी।
थोड़ी देर सोनाक्षी उसे जाता हुआ देखती रही। पहले उसने सोचा उसके पीछे जाए, फिर कुछ देर पहले की घटना को याद कर एक अजीब से अपराधबोध से भर उठी।
हौले-हौले वह अपनी एक्टिवा की ओर बढ़ी और वापस चल दी।
सोनाक्षी पूरे समय उस लड़की के बारे में, उसकी असहजता के बारे में ही सोचती रही। रात भी उसने करवट बदलते काटी। जब उसने मन ही मन तय किया कि कल जाकर वह उस लड़की से माफी माँगेगी, तभी उसे नींद आई। आज दोपहर होते-होते वह फिर से ओवर ब्रिज के नीचे थी।
उसने देखा दस-बारह बच्चे ज़मीन पर बैठकर अपनी-अपनी कॉपी में कुछ लिख रहे थे। एक लड़की ओवर ब्रिज के पिलर पर कुछ लिख रही थी। जब वह पलटी तो उसका चेहरा देखकर सोनाक्षी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। यह तो वही लड़की है जो बच्चों को नहला रही थी।
“तुम...!”
“हाँ, हम।“ सोनाक्षी की बात पूरी होने से पहले लड़की ने जवाब दिया।
“यह सब...?” सोनाक्षी ने आश्चर्य प्रकट किया।
“हमारे बाबा सब्जी बेचते थे। बीमारी ने उनकी जान ले ली। उस समय हम आठ में पढ़ते थे। हमारी पढ़ाई छूट गई।“
“और माँ?”
“वो भी सब्जी बेचती हैं, लेकिन आजकल बीमार हैं।”
“ओह, तो फिर...?”
“दीदी, हम एक स्कूल में नर्सरी के बच्चों की कॉपी पर होमवर्क देने का काम करते हैं, और...।“
“...और फिर इन बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हो।”
“न ना...ट्यूशन नहीं, इनको पढ़ना-लिखना सिखाती हूँ बस यूँ ही।’’ कहते हुए लड़की का चेहरा आत्मविश्वास से चमक उठा।
आदतन सोनाक्षी का हाथ अपने कैमरे पर चला गया।
“रुको दीदी..., एक फ़ोटो बच्चों को पढ़ाते हुए।” कहकर वह खिलखिला पड़ी।
सोनाक्षी उसकी फुलझड़ी जैसी खिलखिलाहट को अपने कैमरे में कैद करते हुए बोली, "वाह! मेरी मोनालिसा..."
#विश्व_साक्षरता_दिवस
बहुत ही प्रेरणादायक
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अजय जी।
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