वह तिराहे के एक किनारे खड़ा था। सिर पर अंगोछा लपेटे। जिसका एक सिरा नाक-मुँह से होता हुआ कान तक जाकर गायब हो गया था। कुछ भी नाम हो सकता है उसका किन्तु चेहरे के नाम पर एक जोड़ी आँखें थीं, जो सड़क पर सर्राटे से जाती गाड़ियों को टुकुर-टुकुर ताक रही थीं। पास में एक रिक्शा खड़ा था। रिक्शे और उसमें यह तुलना करना कठिन था कि दोनों में से कौन अधिक जर्जर है।
उसके सामने से जाते ई-रिक्शे टाई-कोट पहने साहब से प्रतीत हो रहे थे। सड़क पर जो भी सवारियाँ आती थीं सरसराती हुई साँप की भांति उसमें घुस जाती थीं, जैसे कि कोई बिल हो।
रिज़वान उनको निरीह सा देखता रह जाता। हाँ, ‘रिज़वान’ रिक्शे के पीछे यही नाम पेंट था।
एक युवती वहाँ अवतरित हुई। उसका चेहरा भी काले चश्में और दुपट्टे से चाकचौबंद था। उसकी गर्दन का इधर-उधर हिलना बता रहा था कि वह कुछ तलाश रही है।
“बिटिया किधर जाएँगी?” रिज़वान ने अंगोछा मुँह से सरकाते हुए पूछा।
“दादा मुझे ई-रिक्शे से जाना है।“ दुपट्टे के बंधन से युवती का मुख हिला।
रिज़वान रिक्शा लेकर निकट आ गया। उसने रिक्शे के पीछे खोंसी एक बोतल को खोलकर पानीनुमा द्रव एक कपड़े पर उलीच लिया और शीघ्रता से रिक्शे की गद्दी पोछने लगा।
“बिटिया हमने सब सनेट कर दिया है देखिए।“
“सेनेटाइज़!” युवती ने सुधारा।
“हाँ हाँ बिटिया जी वही।“
“लेकिन ये तो सेनेटाइज़र नहीं लग रहा है?”
“बिटिया, हम पूछे रहे मेडिकल में, सौ रुपिया का रहा, उधार देवै के तइयार नहीं हुए।“
“तो ये पानी है?”
“हह हाँ बिटिया पानी तो है लेकिन हम नमक डाले हैं इसमें। हमरी नतिनी कहीं सुन के आई थीं, वही बताईं कि पानी में नमक डालने से सब सनेट हो जाता है।“
“अरे दादा, सेनेटाइज़ बोलिए!”
“हाँ बिटिया जी वही, सब कर दिया है, आइए बैठिए।“
“लेकिन दादा, इससे सेनेटाइज़ नहीं होता है।“
“अ अ बिटिया जी...” रिज़वान की आवाज़ घिघियाने लगी।
उसी क्षण चील की भांति एक ई-रिक्शा युवती के निकट आया।
ई-रिक्शेवाले ने रिक्शे की गद्दी और आजू-बाजू पर फर्र-फर्र स्प्रे की फुहार की। युवती ने पर्स से एक शीशी निकाली। उसमें से द्रव की बूँदें हथेलियों पर गिराईं। दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए ई-रिक्शे में समा गई।
रिज़वान दूर तक ई-रिक्शे को जाता देखता रहा। उसके चेहरे के दो गोलों से कुछ बूँदें टपक कर जाने कहाँ गुम हो गईं।
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