शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

एलेक्सा , एक रोबोट कथा :

"मम्मा! मेरा ब्रेकफ़ास्ट दो ना प्लीज़!"

"बेटा टेबल पर लगा है!"

"एलेक्सा! प्ले डांस म्यूजिक!" 

'ओके...नाच मेरी जान, फटा-फट फट...'


"अपर्णा, सुनती हो, एक कप और  गरमागरम चाय मिल जाती तो मज़ा आ जाता!"

"आपकी चाय टेबल पर पहले से रख दी है!"

"एलेक्सा! ओपेन टुडेज़ न्यूज़!" 

'ओके...आज पूरे देश में नवरात्र पवित्रता के साथ मनाया जा रहा है...गैंगरेप के बाद उन्होंने उस लड़की को जला दिया..'


"बहू, मेरे लिए अदरक-तुलसी का काढ़ा बनाया या नहीं, आज दुर्गा सप्तशती का पाठ लंबा चलेगा!"

"माँ जी, आपका काढ़ा सामने तिपाई पर रखा है, देखिए!" 

"एलेक्सा! प्ले भक्ति संगीत!"

'ओके...या देवी सर्वभूतेषु दुर्गा रूपेण संस्थिता...'


"मम्मा तौलिया!"

"सुनों, मेरी टाई नहीं मिल रही!"

"बहू, दीपक के लिए घी देना!"

"मम्मा?"

"अपर्णा?"

"बहू?"

"एलेक्सा?"

"एलेक्सा?" 

"एलेक्सा?"

"लगता है सिग्नल नहीं आ रहा है!"

"कैसे आएगा, मैंने पावर स्विचऑफ जो कर दिया है।"

"क्यों दादू?"

"क्यों पापा?"

"क्यों जी?" 

"क्यों? जब मेरी बहू सुबह से बिना खाए-पिए तुम लोगों के लिए काम कर सकती है तो तुम्हारी ऐलेक्सा बिना पावर के क्यों नहीं काम कर सकती? 


(नवरात्र की शुभकामनाएँ!)

अर्चना तिवारी 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

तख्त पलट : लघुकथा

जगन, छगन, गगन। मध्यावकाश की घंटी बजी नहीं कि इनकी गेंद तड़ी चालू।

"जगन हमें दे! जगन हमें दे!"

चूँकि गेंद जगन की है तो वह जिसको चाहता पहली चाल उसी की होती। ऐसे में छगन नंबर मार जाता। यह कमाल उसकी जेब का है। जो कभी अंबियों, तो कभी जामुनों से फूली रहती है। 

"ओ छगन, एक अंबी दे ना!" 

भाव तय था। एक अंबी या तीन जामुनों पर एक चाल।

कुछ गेंद की आस में तो खड़े रहते लेकिन जामुन देखकर स्वाद हावी हो जाता। इस तरह से वे अपनी चाल भी छगन को दे देते। 

"छगन हमें भी! छगन हमें भी!"

कभी-कभी तो लगता है कि गेंद का मालिक जगन नहीं छगन है। 

और गगन,  जिसे न अंबियों की चाहत है न जामुन की। वह तो बस अपनी चाल की प्रतीक्षा में गेंद को टुकुर-टुकुर देखता रहता है। कभी चाल मिलती भी है तो मध्यावकाश समाप्त की घंटी बज जाती है। 

अधिकांशतः वह सूखी टहनियों से अकेले ही खेलता रहता है।

आज मौसम बदला-बदला दिख रहा है और आठवाँ आश्चर्य भी दिखा। आज मध्यावकाश में गेंद तड़ी नहीं खेली जा रही है! जगन गुमसुम-सा दिख रहा है। छगन की जेब भी पोपट-सी दिख रही है। अब हर मौसम में अंबियाँ और जामुन तो फलने से रहे। 

बल्कि आज तो गगन रानी मधुमक्खी बना बच्चों से घिरा हुआ दिख रहा है। 

"कैसे बनाई, हमें भी बनाना सिखा ना!" ऐसी कई आवाज़ें उसके इर्द-गिर्द से आ रही हैं।

गगन के हाथ में एक गेंद दिख रही है। आखिर बच्चे कहाँ बैठनेवाले। गेंद तड़ी फिर चालू।