रवि ने जैसे ही आलमारी बंद की तो अंदर से फुसफुसाहट सुनाई दी, “य..यह किसकी दस्तक है? कौन हो सकता है?”
"कोई हमारी जगह लेने आ रहा है क्या!” अंदर से एक दूसरी आवाज़ आई।
“हुँह! किसकी मजाल है जो हमारी जगह ले?” पहली आवाज़ ठुनक कर बोली।
“शायद तुम भूल रही हो, तुमने भी तो आते ही मुझे एक तरफ सरका दिया था!” दूसरी ने ताना मारा।
“हाँआँ तो उस समय तुम अकेली थी!” पहली ने सफाई दी।
“क्या कहा, अकेली...यहाँ तुम दोनों से पहले मैं आई थी!” कोने में दुबकी खाँसती खखारती तीसरी आवाज़ आई।
“हह, पुरनियों का आगे-आगे कूदना शोभा देता है क्या!” पहली आवाज़ ने टोका।
“अँहँह! यहाँ कितनी बास भरी है!” एक नई आवाज़ ने मुँह बिचकाते हुए कहा जिसने अभी-अभी प्रवेश किया था।
“हाँ, पुरानी सीलन भरी, मुझे तो उबकाई आ रही है!” साथ ही दूसरी नई आवाज भी बोल उठी।
“कहीं इन दोनो का इशारा हमारी तरफ तो नहीं!” पुरानी आवाजें खुसपुसाईं, “सही कहती हैं ये नवेलियाँ! हम बीए , एम्मए, पीएचडी की डिग्रियों से अब बास ही तो आएगी!”
“त तुम लोग कौन हो?” तीनों ने सहमकर पूछा।
“हम महँगी, हाइटेक डिग्रियाँ हैं! हम इस रवि की बेरोजगारी मिटाने आई हैं!” दोनों नई आवाजें कड़कड़ाते हुए बोलीं।
“आओ बहना आओ, तुम दोनों भी बिस्तर जमा लो, आखिर सपने देखने का टैक्स थोड़े ही लगता है!" तीनों कोने में दुबकते हुए बोलीं।
अचानक रवि की तंद्रा टूटी। लैपटॉप पर इमेल खुला पड़ा था। कंपनी से रिजेक्शन का। जहाँ उसने नौकरी के लिए आवेदन किया था।
वह थकी उँगलियों से किसी दूसरी कंपनी के लिए आवेदन पत्र टाइप करने लगा।
कमरे में सन्नाटा पसरा था। उसे लगा जैसे आलमारी में पड़ी उसकी डिग्रियाँ भी थक कर शांत हो गई हैं।
बेहतरीन लघु कथा ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(4-7-21) को "बच्चों की ऊंगली थामें, कल्पनालोक ले चलें" (चर्चा अंक- 4115) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
गहरी लघुकथा...।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत अच्छी लघु कथा
जवाब देंहटाएंमार्मिक सत्य को उकेरती अत्यंत हृदयस्पर्शी रचना अर्चना जी।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
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