रविवार, 28 जुलाई 2013

हीरे के गढ़ अपने इरादे, सूरज तू नया बना दे

  हीरे के  गढ़  अपने इरादे 
  मंज़िल  है तेरे आगे 
 अँधेरा तेरी चौखट पर  
 रख जाएगा धूप फैला के   

 कल की चिता  जलाकर 
 भूलों की राख उड़ा कर 
 हौसलों की चिंगारी   से 
 इरादों के शोले भड़का कर 

 कर्मों  की मशाल जला  दे 
 संघर्षों को   और हवा दे 
 जिस्म का फौलाद पिघलाकर 
 सूरज तू नया  बना दे 

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

जाएगा कहाँ रे तू गरीब भाई आगे कुआँ है पीछे खाई।


बिहार के सारण जिले में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल में मध्याहन भोजन खाने के बाद भोजन विषाक्तता के कारण 23 बच्चों की मौत। अब पहले मिड-डे-मील चखेंगे प्रिंसिपल साहब।  निगरानी समिति का गठन होगा। इस खाने को प्रिंसिपल द्वारा चखते हुए कौन देखेगा ??? CCTV  लगेगा क्या ?? प्रिंसिपल साहब के तो खाने पीने का बंदोबस्त हो गया। प्रिंसिपल साहब ही क्यों उनके  जितने नातेदार रिश्तेदार होंगे सभी ये नेक काम करेंगे। आखिर में जब गंगा बह रही है तो प्यासा क्यों मरना। एक और गरीब भ्रष्टाचार  समिति के खाने पीने का बंदोबस्त हो गया  । कुर्सी वाले दाता कितना भला है तू एकदम बोले तो दरिया दिल अपने भाइयों का कितना ख्याल रखता  है। गरीब रोज़-रोज़ खाने के लिए जिए  इससे अच्छा एक दिन में ही.......... भर दे उसका पेट ऐसा की तान के सो जाए।  फिर कभी खाने के लिए मरना  ना पड़े। ऐसा बंदोबस्त की  जाएगा कहाँ रे तू गरीब भाई आगे कुआँ है  पीछे खाई। 



रविवार, 7 जुलाई 2013

खाद्य सुरक्षा योजना


आसानी से भोजन उपलब्ध होने से गरीब लोग हो जाएंगे आलसी
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 फेडरेशन ऑफ कर्नाटक चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के प्रेसीडेंट पी शिवकुमार ने यह बात कही है।
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 शिवकुमार ने कहा कि खाद्य सुरक्षा योजना से सरकारी खर्च में भारी बढ़ोतरी होगी। इस रकम की जरूरत करदाताओं से ही पूरी की जाएगी। बेहतर रोजगार की कमी और मुफ्त राशन वितरण जैसी योजनाओं के कारण गरीबी रेखा के नीचे वाले लोग बेहद कम आय में गुजारा करने के आदी हो जाते हैं।  मुफ्त राशन जैसी योजनाओं के कारण लोगों के आलसी होने से यह स्थिति पैदा होती है। भारत जैसे विकासशील देश में कौशल निर्माण करना बेहद जरूरी है।बेहतर रोजगार की कमी और मुफ्त राशन वितरण जैसी योजनाओं के कारण गरीबी रेखा के नीचे वाले लोग बेहद कम आय में गुजारा करने के आदी हो जाते हैं। 
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ग़रीबों की इतनी चिन्ता अब तो शर्तियाँ देश में ग़रीबी और ग़रीब दोनों अंतर्धान हो जायेंगे। 
एक तरफ सरकार यह तय ही नहीं कर पाई कि  देश में ग़रीब कौन है ? उसने जो ग़रीबी का आधार तय किया उससे तो भारत में कोई गरीब है ही नहीं। 

इन आधुनिक सुखसुविधाओं से युक्त, ऐशो आराम से भरपूर, एयर कंडीशंड घरों में रहने वाले लोगों से पूछा जाए कि आखिरी बार इन लोगों ने कब काम किया ? ग़रीब आलसी हो जाएगा इसकी बड़ी चिंता है। इस देश में ग़रीब बेचारा ऐसा जंतु है जिसकी आड़ में सब ग़रीब हो गए। सरकार  जिसके लिए  भरपूर योजनायें चला रही है। क्या कभी उसने  ये सोचा कि इन योजनाओं के बारे में उन्हें पता भी है ? मैंने अपने यहाँ काम करने वाली से पूछा कि उसका राशन कार्ड बना है तो उसे राशन कार्ड के बारे में जानकारी तक नहीं थी। उसके जैसे ही कितने लोग यहाँ हैंजो जानते ही नहीं कि यह क्या है? और बनता कैसे है? राशन कार्ड बनवाने के लिए स्थाई पता चाहिए। कहाँ से ले आयें ये अपना स्थाई पता जिनको पता भी नहीं कि कल की रात किस भूमि पर बीतेगी। सरकार लोअर इनकम ग्रुप के लोगों के लिए मकान आवंटित कर रही है। लेकिन जिनकी कोई स्थाई इनकम ही नहीं उनका क्या?  सैकड़ों लुभावनी योजनायें चलाई गईं और भविष्य में भी चलाने की योजनायें हैं। पर इसका संज्ञान उन्हें नहीं है जिनके लिए ये बनाई गईं हैं। इन योजनाओं का लाभ तो हमारे देश के उन  बड़े-बड़े उच्च आय वर्ग के "गरीबों" की झोली में चला जाता है। 
हमारे देश में सबसे अधिक ग़रीब बड़े-बड़े अधिकारी और मंत्री हैं, ये इतने ग़रीब हैं कि इन  सारी  योजनाओं का धन भी इनको कम पड़  जाता है।