हीरे के गढ़ अपने इरादे, सूरज तू नया बना दे
हीरे के गढ़ अपने इरादे
मंज़िल है तेरे आगे
अँधेरा तेरी चौखट पर
रख जाएगा धूप फैला के
कल की चिता जलाकर
भूलों की राख उड़ा कर
हौसलों की चिंगारी से
इरादों के शोले भड़का कर
कर्मों की मशाल जला दे
संघर्षों को और हवा दे
जिस्म का फौलाद पिघलाकर
सूरज तू नया बना दे
कर्मों की मशाल जला दे
जवाब देंहटाएंसंघर्षों को और हवा दे
जिस्म का फौलाद पिघलाकर
सूरज तू नया बना दे
बहुत खूब ... जोश भरता गीत ... अपना सूरज वैसे भी खुद ही बनाना पड़ता है ... हिन्नत हो तो आसां होता है बनाना ...
आदरणीया ,
जवाब देंहटाएंबहुत हौंसला अफजाई करती कविता |
बधाई हों |