कल बाज़ार में देखा रंग-बिरंगी सुनहली-रुपहली एक से बढ़ कर एक राखियाँ दुकानों पर लहराती हुई अपनी तरफ ग्राहक का ध्यान आकर्षित करती हुई।
रक्षाबंधन का आरम्भ कब, कहाँ और कैसे हुआ मैं इसके बारे में आप सभी को बताने नहीं जा रही हूँ। ये सारी जानकारी तो आपको गूगल के एक सर्च पर द्रौपदी के चीर की तरह बेहिसाब मिल जाएगी। एक बार तो यही सोचा कि कुछ कतर-ब्योंत करूँ और उनको यहाँ चस्पा कर दूँ और बना डालूँ एक सलोना सा आलेख। परन्तु अंतरात्मा ने मुझे झकझोरा और कहा - ये तो ऐसे ही होगा जैसे किसी की उतरन पहन ली हो। सो मैंने ये विचार त्याग दिया ।
हाँ तो मैं बात कर रही थी बाज़ार में राखियों से सजी दुकानों की। ऐसे ही राखियों से सजी दुकानों की छटा देखते हुए एक दुकान पर पहुंची वहां किसी पुरानी फिल्म का गाना बज रहा था...." राखी धागे का त्यौहार....बंधा हुआ हर एक धागे में भाई बहिन का प्यार ..." सुनकर मन में भाई के लिए अपार स्नेह आंसुओं के रूप में उमड़ पड़ा। सचमुच कितना गहरा है ये रिश्ता, एक धागे में इतनी शक्ति है कि भाई आपनी बहिनों की रक्षा का वचन देते हैं बिना कोई नफा-नुक्सान सोचे और बहिनें उनकी लम्बी और खुशहाल आयु की कामना करती हैं । लेकिन इस गाने से मन में एक सवाल उठ खड़ा हुआ , क्या इन धागों में आज भी उतनी ही शक्ति है ? क्या आज भी इसकी लाज के लिए भाई मर मिटते हैं ? इस सवाल से मन अजीब सा हो उठा।
भाई कितना ही बुरा क्यों न हो वह बहिन की रक्षा के लिए जान लगा देता है। बुराई में सर्वोपरि रावण को ही लीजिये उसने अपनी बहिन सूर्पनखा के अपमान का बदला लेने के लिए भगवान् श्री राम से टक्कर ली। भाई का फ़र्ज़ अदा करने में उसने रत्ती भर भी कोताही नहीं की। खुद मिट गया, सारा राज्य तहस-नहस हो गया लेकिन झुका नहीं। भाई के रूप में देखें तो वह श्रेष्ठ भाई था।
महाभारत युग में दुर्योधन भी अपनी बहिन दुःशला के पति जयद्रथ का पांडवों द्वारा अपमान करने पर आगबबूला हो उठा और महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह रच कर जयद्रथ द्वारा अभिमन्यू को छल से मरवाया। उसने भी बहिन के सुहाग के अपमान का बदला लेकर एक भाई का फ़र्ज़ निभाया ।
यह तो रहा उन आतताई भाइयों का भातृत्व जज़्बा अपनी बहनों के लिए। अब थोडा शत्रु पक्ष की बहिनों की रक्षा करने वाले भाइयों की और चलें।
सिकंदर सारे विश्व को जीतता हुआ भारत आया यहाँ राजा पोरस से उसकी टक्कर हुई। पोरस की वीरता के किस्से सुनकर सिकंदर की पत्नी के होश उड़ गए। उसे कहीं से भारत में राखी बंधने की प्रथा के बारे में पता चला। उसने तुरंत पोरस को राखी बांध कर अपने पति सिकंदर की रक्षा के लिए वचन बद्ध कर लिया। जब युद्ध में पोरस की तलवार की नोक पर सिकंदर की गर्दन आई चट से राखी के धागे पोरस की आँखों के सामने लहराए और उसने अपनी मुँहबोली बहिन के सुहाग की रक्षा के लिए सिकंदर जैसे शत्रु को जीवनदान दे दिया और खुद बंदी बन गया। यहाँ भी एक भाई ने अपनी मुंहबोली बहिन जो एक शत्रु की पत्नी भी थी उसके लिए देश और अपने जीवन को संकट में डाल दिया।
यही नहीं इन धागों पर एक बहिन का इतना विश्वास है कि भाई चाहे शत्रु ही क्यों न हों उन्हें ज़रा भी डर नहीं लगता था । रानी कर्मवती भी ऐसी ही बहिन थी जिसने इन धागों के बंधन पर विश्वास कर एक शत्रु राजा हुमायूँ को अपने देश की रक्षा के लिए राखी भेजी और उस भाई ने उनके राज्य की रक्षा कर उन धागों की लाज रखी।
ये थी इन धागों की शक्ति , इन धागों में छिपा प्रेम एक भाई का अपनी बहिन के लिए
आज भी वही धागे हैं, भारत देश है, पर कहाँ चली गई उनकी शक्ति ? कहाँ चला गया वह जज़्बा जो एक दुश्मन बहिन के लिए भी सगी से बढ़कर था? कहाँ चले गए वो वचन ? जिसके लिए एक दुष्ट, आतताई रावण...एक जिद्दी, घमंडी दुर्योधन ने भी इन धागों के लिए अपने जान की भी परवाह नहीं की। क्या राह चलती लड़की आपकी बहिन नहीं हो सकती जिसकी इज्ज़त सरे आम लूटी जाती है ? क्या वह बहिन नहीं जिसके मासूम चेहरे पर अपनी हवस का तेज़ाब डाल कर उन्हें जीवन भर कुरूपता की पीड़ा झेलने पर मजबूर कर दिया जाता हैं ?
आये दिन ऑनर किलिंग की ख़बरें भाइयों की बहिनों के प्रति क्रूरता की कहानी कहती हैं। आज हम आधुनिक युग में हैं लेकिन अभी भी हमारे पैर उन्हीं मैली-कुचैली कुरीतियों में फँसे हैं। भाई तब बहिन के लिए मौत का फ़रमान जारी करता है जब बहिन अपने लिए मनपसंद वर चुन लेती है। क्या ये उसी देश के भाई हैं जिस देश में कृष्ण ने अपनी बहिन सुभद्रा के मनपसंद वर के लिए अर्जुन द्वारा सुभद्रा के हरण का आदेश दे डाला। समाज और मान -अपमान की चिंता किए बिना अपनी बहिन की ख़ुशी को सर्वोपरि रखा।
आज यह पावन पर्व एक प्रश्न खड़ा कर रहा है कि क्या आज भी इन रेशमी रिश्तों की कोमलता बरकरार नहीं रखी जा सकती ? क्या राखी सचमुच सिर्फ धागे का ही त्यौहार बन कर रह गया है ? उसमें रिश्तों के मोतियों, प्रेम के रंगों की कोई जगह नहीं ?
इन प्रश्नों का हल तो सोचना ही पड़ेगा तभी राखी की पवित्रता और चमक बनी रह सकेगी।
आप सभी को इस पवन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!