एक्सप्रेस हाईवे पर बस पैसेंजर जी हाँ ये हाल है हमारी सरकारी बस सेवा का। बस के सफ़र का कुछ ऐसा अनुभव हुआ कि मन खिन्न हो गया। कुछ अनुभव आपसे बाँट रही हूँ। होना कुछ नहीं कम से कम भड़ांस तो निकल जायेगी। आगे ऊपर वाला मालिक।
चार, छह, आठ लेन की सड़कों का जाल, तरक्की के मामले में हमारे देश की सड़कों ने खूब तरक्की की। क्या चौड़ी-चौड़ी सड़कें आपके मन मुताबिक़ स्पीड, गाड़ी दौड़ाइए फर्राटे से मिनटों का काम सेकेंडों में कहने की ज़रूरत नहीं है।
अपनी गाड़ी हो तो "हँसते-हँसते कट जाएँ रस्ते..." और अगर सरकारी बस से जाना हो तो "बहुत कठिन है सफ़र बस की..."। अचानक आपको कहीं दूसरे शहर मीटिंग के लिए जाना पड़े और आप सोचे कि बस से पहुँच कर, किराया अधिक देकर आप स्मार्टली गंतव्य पर पहुँच जायेंगे तो आप सपने में हैं। भूल जाइये ये ख्वाब … कारण… रफ़्तार वाली लेनें तो बनी परन्तु सरकारी बसों की खस्ता हालत उन्हें चियूँटिया चाल चलने को मजबूर कर देती हैं। अलग-अलग स्पीड वाली लेनों के अनुरूप बस अभी भी नहीं चल रहीं है।
सरकारी ड्राईवर इस काबिल नहीं हैं कि वो बसों को तेजी से चलाते हुए सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा सकें । साथ ही उनका व्यवहार यात्रियों के साथ बहुत बुरा होता है। ऐसा लगता है जैसे एयर इण्डिया विमान के पाईलेट हों । आखिर हो भी क्यों नहीं सरकारी सेवा में जो हैं कोई कुछ बोल के तो देखे। हमारे देश में सरकारी कर्मचारियों का रुतबा किसी महाराजा से कम नहीं है।
कन्डक्टर साहब भी क्यों पीछे रहें उनको यदि आपने बंधे रुपये दिए तो वह बाक़ी बचे रुपयों को तुरंत नहीं देते उसे टिकट के पीछे लिख देते हैं मांगने पर टालते रहते हैं और अक्सर ऐसा होता है लम्बे सफ़र के बाद गंतव्य स्थान आने पर उतरने की अफरा- तफरी में पैसा लेना रह जाता है। होता यह है आपको पड़ी चपत और कन्डक्टर की चाँदी।
इसके मुकाबले ट्रेन का सफ़र कम से कम सस्ता और सुविधजनक तो है ही साथ में आप अपने गंतव्य पर जल्दी पहुँच जाते हैं सामान्यतः। गई बीती हालत में भी ट्रेनों में पंखे , शौचालयों की सुविधाएँ तो मिलती ही हैं ।
दूसरी ओर बस का किराया ट्रेन के किराये से दो गुने से भी अधिक है और सुविधा के मामले में अगर आप कहीं अच्छी सेहत के मालिक हैं तो फँस के बैठिये बाद में घुटनों के लिए झंडू बाम है न.… बस के हिचकोले गेट वन फ्री …स्लिप डिस्क करवाने के लिए अच्छे हैं ।
इन सब के ऊपर टॉल टेक्स आपकी जेब से कटता है और फायदा उन्हें जो निजी एयरकंडीशन गाड़ियों में "सुहाना सफर और ये रास्ते हसीन..." की तर्ज़ पर मुंह चिढ़ाते, अंगूठा दिखाते आपको पीछे छोड़ते हुए फर्राटे से निकल जाते हैं । क्योंकि आप आम जनता हैं और आम जनता तो है ही 'जनार्दन' । सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ।
बड़ा बुरा हाल है.मुझे तो बस की सवारी से सख्त नफरत है..
जवाब देंहटाएंये शर्म की बात है आज भी ऐसे हालात हैं सरकारी बसों के ... एक तरफ सर्विस बढ़नी चाहिए ... इस सेवा में लगे लोगों को धेर्य होना चाहिए वहीं ये ज्यादा बेषम हैं सरकारी बस में तो खास कर के ...
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति बहुत खूब ,
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