भारत ने रविवार को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाकर नया इतिहास रच दिया। परीक्षण में सौ फीसद खरे उतरे स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के बूते रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का कमाल कर दिखाया है। इसरो ने देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के जरिये रॉकेट जीएसएलवी डी-5 का सफल प्रक्षेपण कर यह बेमिसाल उपलब्धि हासिल की है।
इस लंबी छलांग के पीछे असल में कौन है ? कौन है भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक का जन्मदाता ? आज इस पूरी खबर में कहीं भी उस वैज्ञानिक का जिक्र तक नहीं किया गया |
उस वैज्ञानिक का नाम है 'प्रोफेसर एस. नम्बी नारायण' |
सबसे पहले 1970 में भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक लाने वाले वैज्ञानिक नम्बी नारायण हैं |
इस लंबी छलांग के पीछे असल में कौन है ? कौन है भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक का जन्मदाता ? आज इस पूरी खबर में कहीं भी उस वैज्ञानिक का जिक्र तक नहीं किया गया |
उस वैज्ञानिक का नाम है 'प्रोफेसर एस. नम्बी नारायण' |
सबसे पहले 1970 में भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक लाने वाले वैज्ञानिक नम्बी नारायण हैं |
प्रोफ़ेसर नम्बी नारायण 1994 में इसरो में क्रायोजनिक विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे| जब वे इस प्रोजेक्ट पर काम करने लगे तब 1996 उनके ऊपर झूठा आरोप लगाया गया था कि उन्होंने डाटा सैटेलाईट और रॉकेट की लॉन्चिंग से सम्बंधित जानकारियाँ करोड़ों रुपये में बेची हैं| इस झूठे आरोप लगाने के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ था | उन्हें डर था कि कहीं भारत उनके इस क्रायोजनिक इंजन के एकाधिकार को समाप्त न कर दे |
सीबीआई को जांच में कुछ भी नहीं मिला और 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रो.नम्बी नारायण को सभी आरोपों से बरी कर दिया |इस दौरान उनके परिवार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । गिरफ़्तारी के दौरान प्रो नारायण को बहुत मानसिक आघात झेलना पड़ा ।
अगर ऐसा न होता तो यह उपलब्धि हमें काफी पहले मिल जाती | हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जो लोग देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज़बा रखते हैं उनको किसी न किसी तरह से हतोत्साहित कर उनके कार्य को रोक दिया जाता है ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन शहीद लांस नायक सुधाकर सिंह, हेमराज और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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