शाम को मानव ट्यूशन कर के अपने मित्र दीपक के घर पहुंचा तो दीपक को लेपटॉप लेकर बैठे देखा | लोकसेवा आयोग की वेबसाईट खुली पड़ी थी, परीक्षा परिणाम आ चुका था दीपक लिस्ट में अपना नाम देख रहा था उसने चहक कर कहा –“अरे ! यार मेरा सेलेक्शन हो गया |” दीपक का सेलेक्शन विकलांग कोटे में हो गया था |
मानव लपककर लिस्ट में अपना नाम ढूंढने लगा | उसने कई-कई बार जनरल केटेगरी की सारी लिस्ट शुरू से अंत तक देख डाली परन्तु उसका नाम लिस्ट से नदारद था, मानव की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा वह पास रखे तख़्त पर बैठ गया | उसका सारा शरीर काँपने लगा था, सिर में झनझनाहट महसूस हो रही थी जैसे किसी ने बिजली का नंगा तार छुआ दिया हो | दिसम्बर की ठण्ड में भी उसके माथे पर पसीने की बूँदें छलछला आईं थीं | कमरे में मानव को घुटन सी होने लगी वह एक झटके से उठा और बाहर चला गया |
किस दिशा में जा रहा था ? कहाँ जा रहा था ? उसे कुछ होश नहीं था | उसकी आँखों के सामने बीमार माँ और बहनों के चेहरे नाचने लगे | क्या होगा अब ? कैसे करेगा अपनी बहनों का ब्याह ? दो भांजियां भी तो हैं, क्या होगा उनका ? इन सबकी जिम्मेदारी पिता की मृत्यु के बाद मानव पर ही आ गई थी |
मानव से छोटी दो बहने हैं | उससे बड़ी एक और बहन थी जिसका विवाह हो चुका था | विवाह के एक साल बाद दो बच्चियों को जन्म दिया तो लड़की जन्मने पर ससुराल वालों की उपेक्षा और तानों ने बीमार कर दिया और अंत में इस संसार से विदा हो ली | उसका पति किसी दूसरी औरत के साथ मुंबई भाग गया | बिन माँ की बच्चियों की देखभाल करने वाला कोई नहीं था इसलिए मानव के पिता उनको घर ले आए | पिता बेचारे बेटी के दुःख से बिलकुल टूट गए थे, सो उन्होंने ऐसे बिस्तर पकड़ा कि फिर कभी उठ न सके | मानव के पिता दीनानाथ मिश्र प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर थे | उनके पास जो भी जमा पूँजी थी वह सब एक-एक करके उनकी बीमारी में लगती गई | घर गिरवी हो गया था और कई लोगों से क़र्ज़ भी लेना पड़ा था | घर की चिंता और बीमार ने उन्हें खोखला बना ही दिया था जिससे उनका प्राणांत हो गया |
पिता के देहांत के बाद मानव के परिवार पर जैसे दुःख का पहाड़ टूट पड़ा | माँ को जो पेंशन मिलती उसमें से लोगों के क़र्ज़ उतारने के बाद इतना नहीं बच पाता था कि घर का खर्चा चल पाता इसलिए माँ घर पर लोगों के कपड़े सिलने लगी थी, उसी से जो कुछ मिलता था उसमें किसी तरह से उन लोगों का जीवन निर्वाह हो रहा था |
उस समय मानव हाईस्कूल में था | पिता के देहांत के बाद से उस 14 साल के लड़के पर 40 साल के प्रौढ़ की सी जिम्मेदारी आ गई थी | सुबह मानव पेपर बांटता फिर स्कूल जाता दोपहर लौटकर किराने की दुकान से सामान उठाकर लोगों के घर पहुंचाने का काम करता था, इससे जो पैसे मिलते उनसे मानव और उसकी बहनों की पढ़ाई की फीस और कापी-किताबों का खर्च निकलता | इसी तरह से उसने इण्टरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की | प्राइवेट स्नातक की परीक्षा पास कर मानव प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने लगा |
एक दिन उसकी मुलाकात दीपक से एक बुकस्टाल पर हो गई | मानव को जो पत्रिका चाहिए थी उसकी केवल एक ही प्रति थी जो दीपक खरीद चुका था | मानव को परेशान देख दीपक ने वह पत्रिका मानव को दे दी और अपना पता देते हुए कहा कि पढ़ने के बाद वह उसे वापस कर दे | दीपक का एक पैर खराब था उसने अपने एक हाथ में छड़ी पकड़ रखी थी | मानव ने दीपक को अपनी साईकिल पर बैठा कर उसके घर छोड़ने का आग्रह किया | दीपक उसकी साईकिल पर आकर बैठ गया | तभी से दोनों में गहरी मित्रता हो गई थी |
बढ़ती उम्र, दिन-रात की कड़ी मेहनत, परिवार की चिंता और आभावों ने मानव की माँ को कमज़ोर कर दिया था, वह भी अक्सर बीमार रहने लगी थी उसकी सिलाई का काम भी बंद हो गया था | कर्जदार अक्सर तगादा करने आ जाते थे जिनके आगे हाथ-पैर जोड़कर मानव को थोड़ी और मोहलत के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता था |
आनंद नगर जैसे छोटे से शहर में मानव को कोई ढंग का काम भी न मिल सका था और कोई काम मिलता भी था तो उसके पैसे कम शोषण अधिक था | ट्यूशन में भी इतने पैसे नहीं मिल पाते थे जिससे घर का गुज़ारा हो पाता | उसने एक सर्राफ के यहाँ रात में गार्ड की नौकरी कर ली थी | वहीँ साथ में रात भर आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पढ़ता रहता था |
यह नौकरी मानव के लिए सब कुछ थी जिसको पाने के लिए उसने दिन-रात जी तोड़ मेहनत की थी | आज मानव के जीवन में मानो तूफ़ान आ गया था |
वह मन में ही मन सोचता जा रहा था-
“अब अगली परीक्षा पता नहीं कब होगी ?” “हर साल होती भी तो नहीं हैं |”
मानव विच्छिप्त सा चलता जा रहा था, वह कब मेन रोड के बीचोबीच आ गया पता नही | अचानक उसके सामने तेजी से ट्रक आता दिखा, उसका सिर चकराने लगा, तेज़ रोशनी के साथ ज़ोरदार आवाज़ हुई और फिर अँधेरा छा गया |
मानव की आँख खुली तो वह अस्पताल में था | उसके सारे बदन में भयंकर दर्द था | सामने दीपक और उसके पिता खड़े थे | उसने उठने की कोशिश की पर वह उठ नहीं सका | उसके पैरों में भयंकर दर्द उठा दोनों पैर ऐसे जकड़े थे जैसे उनपर किसी ने कोई भारी सी चीज़ रख दी हो | दुर्घटना में उसके दोनों पैर बुरी तरह से घायल हो गए थे जिनमें से एक पैर को घुटनों तक काटना पड़ा | जब उसे यह पता चला तो वह जोर से चीखा, मानव के जीवन संघर्ष में ये ऐसी घटना थी जिसने उसकी सारी आशाओं पर कुठाराघात कर दिया था | परिवार का सहारा आज खुद सहारे का मोहताज था |
इस घटना को छः महीने बीत गए थे | मानव को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी | दीपक अपनी ट्रेनिंग पर चला गया था | इस दौरान मानव के घर की दशा बहुत ख़राब हो गई थी | माँ ने बिस्तर पकड़ लिया था उनकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी, सरकारी अस्पताल से सारी दवाएं नहीं मिल पाती थीं जिससे उनका सही से इलाज हो पाता | घर में फाके चल रहे थे | दोनों छोटी बहनों की पढ़ाई भी छूट गई थी | जब मानव को इन सबका पता चला तो उसका ह्रदय चीत्कार उठा |
दीपक के पिता ने थोड़े पैसों से मदद कर दी थी पर कोई किसी को कितने दिन मदद करता और घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि मानव कुछ दिन आराम कर पाता | उसे अस्पताल से ट्राईस्किल मिल गई थी उसे लेकर काम की तलाश में चल दिया | इस अवस्था में उसे कोई काम भी नहीं मिल पा रहा था | कुछ दिन भटकने के बाद उसके छूटे हुए कुछ ट्यूशन फिर मिल गए, दीपक के पिता ने उसको किसी सेठ के यहाँ हिसाब-किताब देखने का काम भी दिला दिया था | जीवन की गाड़ी किसी तरह से रेंगने लगी |
दीपक छुट्टी आया था उसने आने वाली परीक्षाओं के फार्म मानव के विरोध के बावजूद समझा-बुझाकर जबरदस्ती भरवा दिए थे | मानव ने धीरे-धीरे फिर से पढ़ाई शुरू कर दी और एक-एक कर सभी परीक्षाएं देने लगा |
एक दिन पोस्टमैन ने दस्तक दी | मानव ने लेटर रिसीव कर के खोला, उसका सेलेक्शन गोरखपुर के किसी कॉलेज में प्रवक्ता के पद पर हो गया था | वह ख़ुशी से चीख उठा था | उसकी आँखों में आंसू आ गए थे | उसने माँ का पैर छूते हुए उसे यह खबर सुनाई तो माँ ने प्यार से उसका माथा चूम लिया | सारे घर में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी | वह जल्दी से दीपक को खबर देने के लिए पीसीओ की ओर चल पड़ा |
मानव ने कॉलेज के आफिस में जाकर सारी औपचारिकताएं पूरी की | कॉलेज के क्लर्क ने उसे लेटर लेने के लिए अगले दिन बुलाया | अगले दिन मानव आफिस पहुंचा तो काफी देर बाद क्लर्क ने उसे बड़े बाबू के पास भेज दिया |
बड़े बाबू ने चश्में के ऊपर से उसे ऊपर से नीचे तक देखा और सामने बैठने का इशारा किया | फिर उसने मानव से कहा – “ देखिये आपको तो नौकरी मिल ही गई है, देख रहा हूँ आपको इसकी सख्त ज़रूरत भी है, बस आपको थोड़ा ‘चढ़ावा’ चढ़ाना होगा....देखिये कुछ औपचरिकतायें तो पूरी करनी ही होंगी बस आपका लेटर मिल जाएगा | “
मानव कुछ समझा नहीं | बाबू ने धीरे से पास आकर दांत फैलाते हुए कहा – “ देखिये बड़े लोगों को खुश करना पड़ता है, 5 लाख देने होंगे, बस आपका काम हुआ समझिये |” इतना सुनते ही मानव बौखला गया | उसने कहा – “ ऐसा कैसे हो सकता है ? मेरा सेलेक्शन हुआ है, मैं रिश्वत क्यूँ दूँ ? “
बाबू ने कहा – “ये रिश्वत नहीं है ये तो चढ़ावा है | भगवान को मनोकामना पूर्ति के लिए चढ़ावा तो चढ़ाते ही हैं न भाई, और हम आपकी स्थिति देखकर आपको डिस्काउंट दे रहे हैं, लोग 10-15 तक ख़ुशी-खुशी से दे जाते है और निश्चिन्त होकर नौकरी करते हैं फिर उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती |”
“बिना रूकावट नौकरी करने के लिए कुछ तो चढ़ावा देवताओं को देना ही पड़ेगा |”
मानव को सारी बात समझ में आ गई | वह परेशानी और बौखलाहट में आफिस के बाहर आ गया | उसके सामने अब यह एक नई मुसीबत आ गई थी | क्या करे क्या न करे, पांच लाख कहाँ से लाये ? इतने पैसे तो उसने कभी देखे तक नहीं थे | कैसे मिलेगी उसे यह नौकरी ? उसे अपनी यह नौकरी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नज़र आ रही थी |
मानव का मन रोने को हो रहा था | “...दीपक से पैसे मांगे...” एक बार उसे यह ख्याल आया... उसने फिर अपना सिर झटक दिया ...वह उससे पैसे कैसे मांग सकता है ? ...उसकी भी तो नई-नई नौकरी है... अभी उसके पास इतने पैसे कहाँ होंगे...और फिर दीपक के पहले से ही उस पर इतने एहसान हैं, उसके एक्सीडेंट के समय उसके पिता ने कितनी मदद की थी |
“उसे यह नौकरी हर हाल में पानी है, इस नौकरी के सिवा उसके पास और कोई 'विकल्प' भी तो नहीं है ।“ - यह सोचते हुए उसने दीपक को फोन किया | दीपक ने कहा कि उसके पास इतने पैसे तो नहीं हैं अगले महीने उसकी बहन की शादी भी है |
मानव के ऊपर मानों बिजली गिर पड़ी थी | उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था | वह थका, परेशान, टूटा, असहाय एक मंदिर के निकट पंहुचा | वहीँ एक चबूतरे के पास उसने अपनी ट्राईस्किल रोक दी और पेड़ की छाँव में सुस्ताने के लिए चबूतरे पर सरक आया और पेड़ से टेक लगा कर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं |
उस चबूतरे पर त्रिशूल-डमरू आदि लगे थे पास में इमली के पेड़ पर घंटियाँ भी बंधीं थीं | तभी उसके पैरों के पास कुलबुलाहट सी महसूस हुई उसने चौंक कर अपनी आँखें खोल दी, देखा कपड़े में लिपटा एक बच्चा पड़ा था और पास ही गहनों से लदी हुई एक महिला अपनी आँखें बंद किए हाथ जोड़े बैठी थी | बच्चा सरकते हुए चबूतरे से गिरने ही वाला था तभी मानव ने लपक कर बच्चे को उठा लिया, बच्चा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा |
अचानक महिला ने आँखें खोली और जोर-जोर से जयकारा लगाने लगी | “...इमला बाबा जी की जय....चमत्कार हो गया-चमत्कार हो गया...मेरा बच्चा ठीक हो गया....”|
मानव ने सकपका कर देखा आसपास भीड़ जमा होने लगी उस औरत ने चिल्ला कर कहा – “...मेरे बच्चे ने कई दिनों से रोना बंद कर दिया था...बाबा के आशीर्वाद से फिर से रोने लगा ....” उस महिला ने अपनी पर्स से नोटों की एक पोटली निकाल कर मानव के सामने रख दी और मानव के पैरों में सिर नवा दिया और उठ कर चली गई |
थोड़ी देर में उस महिला के साथ दस-बारह लोग और आ गए | वे सब भी मानव के पैरों में अपना सिर नवाने लगे और जयकारा लगाने लगे ।
जब तक मानव कुछ बोलता "....इमला बाबा की जय...” का जयकारा सारे मंदिर में गूंजने लगा | देखते-देखते भीग बढ़ गई लोग उसके ऊपर फूल-मालाएं चढ़ाने लगे | मानव को माज़रा समझ नहीं आया | वह उठने की कोशिश कर ही रहा था तब तक और कई लोग उसके सामने माथा टेकने और नोट चढ़ाने लगे | देखते ही देखते उसके सामने नोटों का अम्बार लग गया |
समय ने करवट बदली । इस घटना को हुए एक साल बीत गया था | मंदिर के निकट एक आलीशान कोठी के बाहर चमचमाती कारें खड़ी थीं | बाहर लॉन में एक बड़ा सा पंडाल लगा था उसके सामने लोगों की भीड़ जमा थी | मानव श्वेत-वस्त्र धारण किए हुए एक ऊँचे से भव्य आसान पर ध्यान की मुद्रा में आँखें बंद किए हुए बैठा था | लोग लाइन में एक-एक करके उसके आगे माथा टेकते जा रहे थे | आसन के पास में बहुत सारे कीमती चढ़ावे, कई दान-पेटियाँ पड़ी थीं | दो आदमी लोगों से दान लेकर दानपेटी में डालते जा रहे थे और दो आदमी उसकी रसीद काट रहे थे | सारा लॉन “...इमला बाबा की जय...” के जयकारे से गूंज रहा था |
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दिन-रात मेहनत के बाद चढ़ावा पर गाडी रुक जाय ..सच कितनी बिडंबना है हमारे समाज की ..आज भी जाने कितने ही पढ़े-पढ़े नौजवान इस कुव्यवस्था के शिकार हो जाते हैं..
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बहुत-बहुत आभार आपका...आपने कहानी के मर्म को समझा
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