शनिवार, 17 सितंबर 2016

रौनक : लघुकथा

“शाल, नी कैप, बाम, हेल्थ ड्रिंक्स, बिस्किट्स ये सब चीज़ें तो दिल्ली में भी मिलती हैं। फिर यहाँ से लाद कर ले जाने की क्या ज़रूरत है ?” स्नेहा को चीज़ें बैग में डालते देख शिखर ने पूछा।

“मिलती हैं, लेकिन ऑफिस में काम के बाद मैं ये सब चीज़ें खरीदने लगूँगी तो आधा दिन बर्बाद हो जाएगा। बहुत दिनों बाद माँ से मिल रही हूँ। इसलिए मैं चाहती हूँ कि कम से कम आधा दिन तो उनके साथ गुज़ारूँ, न कि शॉपिंग करते हुए।“

“तो ऑनलाइन ही भेज देतीं।” शिखर ने तर्क दिया।

“ हाँ, भेज सकती थी श्रीमान शिखर जी। और पिछली बार भेजी भी थीं। लेकिन सारे ड्रिंक्स पड़े-पड़े एक्सपायर हो गए थे। माँ ने उनके पैक भी नहीं खोले थे।”

“हो सकता है माँ को उसका फ़्लेवर ना पसंद आया हो।”

“अच्छा, लेकिन पिछली बार जो मैंने बाज़ार से लाकर दिया था, सेम फ़्लेवर। उसे तो माँ ने तुरंत खोल कर पिया था।”

“ऐसा क्यों ?” शिखर ने पूछा।

“ऐसा इसलिए कि ये सारी चीज़ें देखने में भले ही मामूली हों लेकिन इनके साथ जुड़े प्यार के एहसास ऑनलाइन नहीं मिलते।” स्नेहा ने शिखर की नाक पकड़कर हिलाते हुए जवाब दिया।

“ओके ओके, योर हाइनेस।” कहते हुए शिखर ने सिर से कैप उतार कर झुकने का अभिनय किया। फिर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े।

स्नेहा ने माँ को फ़ोन पर बताया कि वह दो दिन के लिए दिल्ली आ रही है। खबर सुनते ही घुटने पकड़ कर चलने वाली आशा के शरीर में बिजली की सी स्फूर्ति आ गई।

“सुन रज्जो, स्नेहा का कमरा ठीक कर देना। वह दो दिन के लिए आ रही है।” आशा ने काम करने वाली को निर्देश दिया।

“जी मेम साब।”

“और सुन साब आएँ तो उन्हें चाय पिला देना। मैं सुपरमार्केट जा रही हूँ।” कहकर आशा सुपर मार्केट चली गईं।

काउन्टर पर बिल चुका वे जैसे ही मुड़ीं तो सामने उनकी सहकर्मी शीला मिल गईं।

“अरे, आप यहाँ?” शीला ने आश्चर्य प्रकट किया।

“हाँ कुछ सामान लेना था।” आशा ने जवाब दिया।

“कोई आने वाला है क्या ?” शीला जी ने पूछा।

“हाँ, हमारे घर की रौनक आने वाली है।”

“अच्छा तो बिटिया आ रही है !”

“हां शीला, हमारी बहूरानी स्नेहा आ रही हैं।” कहते हुए आशा का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।

('साहित्य अमृत' 2017 के लघुकथा विशेषांक में प्रकाशित)

(चित्र गूगल साभार )


6 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत एहसास बिटिया घर की रौनक ही होती है | मैं समझ सकता हूँ उस बूढ़ी माँ की खुशी ..और बेटी के भावों को भी बखूबी पिरोया आपने , सुन्दर व् प्रभावी कहानी अर्चना जी

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  2. रिश्तों की बुनियाद, आपसी विश्वास और सामन्जस्य से मज़बूत होती है! ऐसे में सास बहु का रिश्ता डेली सोप से इतर ऐसा भी हो सकता है, जैसा स्नेहा और उसकी सास के बीच है! बहुत मधुर लघु कथा!!

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  3. रिश्तों की बुनियाद, आपसी विश्वास और सामन्जस्य से मज़बूत होती है! ऐसे में सास बहु का रिश्ता डेली सोप से इतर ऐसा भी हो सकता है, जैसा स्नेहा और उसकी सास के बीच है! बहुत मधुर लघु कथा!!

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "छोटा शहर, सिसकती कला और १४५० वीं ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. बहु बेटी से कम नहीं होती ! कई मायने में बहु बेटी से बढ़कर होती है ! लेकिन यह एहसास कुछ एक को होता है, सबको नहीं !
    JAI HIND

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