एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार
नील गगन को छूने की
चाह ह्रदय में लेकर आज
फुदक रही है डाली-डाली
पंख फैलाए पहली बार
एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार
बलशाली खग नभ में उड़ते
तेज चले पवन उनचास
खोल रही दुर्बल-कोमल पर
ह्रदय में लिए भय और आस
देखे गगन विशाल विस्तार
एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार
शीर्ष चढ़ी ऊँचे द्रुम के
नभ पर उड़ान भरने आज
कभी गिरते और सँभलते
लगन लिए और दृढ़ विश्वास
उड़ गई नील अम्बर में आज
पंख फैलाए पहली बार
एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ..........सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंएक गौरैया पहली बार... बहुत अच्छे ढंग से प्रथम उड़ान को कविता का स्वरूप प्रदान किया आपने. कविता में थोड़ी कसावट और बुनावट में कुछ कशीदाकारी की जरूरत है. यह निराश करने का प्रसंग नहीं बल्कि अगली रचना के लिए थोड़ी मेहनत और.
जवाब देंहटाएंआशा है आप मुफ्त के सुझाव का बुरा नहीं मानेंगी.
*** जो चित्र आपने लगाया है वो गौरैया का नहीं, नर (गौरे) का है.
अच्छा मानवीकरण ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव..बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंसर जी सुझाव पर जल्द अमल होगा ... धन्यवाद...अब तो चित्र ठीक है ना
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…
जवाब देंहटाएंआज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
Archna ji....
जवाब देंहटाएंtareef ke liye shabd nahi hai mere passs...
बहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंअब तो ये लुप्त होती जा रही है । अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से विचारों को पिरोया...उत्तम प्रस्तुति..बधाई.
जवाब देंहटाएं________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
गौरैया के बहाने जीवन दर्शन.. सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ,
जवाब देंहटाएंकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
पहली उड़ान सी नाजुक, लेकिन आत्म विश्वास भरी.
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