शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

प्रथम उड़ान






एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार
नील गगन को छूने की
चाह ह्रदय में लेकर आज
फुदक रही है डाली-डाली
पंख फैलाए पहली बार

एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार

 बलशाली खग नभ में उड़ते 
 तेज चले पवन उनचास
खोल रही दुर्बल-कोमल पर
ह्रदय में लिए भय और आस
देखे गगन विशाल विस्तार

एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार

शीर्ष चढ़ी ऊँचे द्रुम के
नभ पर उड़ान भरने आज
कभी गिरते और सँभलते
लगन लिए और दृढ़ विश्वास
उड़ गई नील अम्बर में आज
पंख फैलाए पहली बार

एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ..........सुंदर रचना....

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  2. एक गौरैया पहली बार... बहुत अच्छे ढंग से प्रथम उड़ान को कविता का स्वरूप प्रदान किया आपने. कविता में थोड़ी कसावट और बुनावट में कुछ कशीदाकारी की जरूरत है. यह निराश करने का प्रसंग नहीं बल्कि अगली रचना के लिए थोड़ी मेहनत और.
    आशा है आप मुफ्त के सुझाव का बुरा नहीं मानेंगी.
    *** जो चित्र आपने लगाया है वो गौरैया का नहीं, नर (गौरे) का है.

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  3. सर जी सुझाव पर जल्द अमल होगा ... धन्यवाद...अब तो चित्र ठीक है ना

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  4. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  5. बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…
    आज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति

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  6. अब तो ये लुप्त होती जा रही है । अच्छी रचना ।

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  7. बहुत खूबसूरती से विचारों को पिरोया...उत्तम प्रस्तुति..बधाई.
    ________________
    'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)

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  8. गौरैया के बहाने जीवन दर्शन.. सुंदर कविता !

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  9. बहुत सुंदर रचना ,
    कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
    अकेला या अकेली

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  10. पहली उड़ान सी नाजुक, लेकिन आत्‍म विश्‍वास भरी.

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