कहती हैं लम्बी सूनसान राहें
हर पल राहों पे आते-जाते
दिखाती हूँ भटकते मुसाफिरों को मंजिल का रास्ता
करके खुद की गुमराह राहें
कहती हैं लम्बी .....
साथ देती हूँ राही का हर मोड़ पे पर
वो भूल जातें हैं खुद की मंजिलों को पा के
कहती हैं लम्बी.....
शिकवा नहीं है किसी से ना कोई गिला है
पर क्या कोई चलेगा ता उम्र साथ उसके
कहती हैं लम्बी......................
आते -जाते रास्ते पर मैंने देखा
नन्हा सा एक प्रौढ़ बचपन
नही था उसके जीवन में
माता-पिता का प्यार -दुलार
उठा रखा था उसने हाथों में
अपने ही जैसा इक बचपन
सिखा दिया था जीना उसको
साल चार के इस जीवन में
जूझ रहा था पर हिम्मत से
लिए जिम्मेदारियों का बोझ स्वयं
नही था उसे लगता कोई ग़म
देख के उसको आती मुझमें
दया नही जोश और ताकत वरन
दुआ करती हूँ उसको मिले
आने वाले इस जीवन
सुख-सफलता और प्रसिधी -पराक्रम
रे मानव ! उठ जाग निद्रा से
देख कराह रही ये धरा तेरी
पुकार रही ये माँ तेरी
उठ जा अब तो ओ मेरे लाल-नंदन
घायल करते लूटते इसका यौवन
चुन रहे पत्थरों में इसके
सुंदर, विशाल और कोमल तन
उसके हरियाले वसन का करते
चीर-हरण
कुछ दुःशासन -दुर्योधन
जो करते नाश इस धरनी का चैन-अमन
बन जा तू कृष्ण चला अब चक्र सुदर्शन
यदि अब न जागा तू तो जायेंगे चले
ये तेरी खुशहाली के दिन
फ़िर ना ले सकेगा
क्षण भर सुवास और दम
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मैंने देखा सुबह-सुबह
अपनी नन्ही सी बगिया में
नन्हें से पौधे पर
एक नन्हा सा फूल मुस्कुराता
समां रखा था अपने अन्दर
अनेक रंग, खुशियाँ और मुस्कान
नन्हें जीवन-काल में भी
गम न था मिट जाने का
वह नन्हा सा कोमल
सिखा रहा था हमें
रखना लक्ष्य जीवन का
बिखेरना मुस्कान सदा
हाय रे! हिंदी तू अपनों में ही पराई हुई......
तेरे देश में तेरे ही अपने तुझे बोलने पर शर्माते हैं
तुझे बोलने पर तेरे अपनों पर जुर्माना लगता है
तेरे नौनिहाल तुझे बोलने पर अपराधी बनते हैं
तुझे बोलने वाले जीविका के लिए भटकते हैं
क्यों किया तुझे पराया अपनों ने
तू महासागर है हिंद का
फिर भीहम दूसरों का पानी क्यों भरते हैं
हाय रे! हिंदी तू ........