रविवार, 20 जनवरी 2008

लक्ष्य



मैंने देखा सुबह-सुबह


अपनी नन्ही सी बगिया में

नन्हें से पौधे पर

एक नन्हा सा फूल मुस्कुराता

समां रखा था अपने अन्दर

अनेक रंग, खुशियाँ और मुस्कान

नन्हें जीवन-काल में भी

गम न था मिट जाने का

वह नन्हा सा कोमल

सिखा रहा था हमें

रखना लक्ष्य जीवन का

बिखेरना मुस्कान सदा

2 टिप्‍पणियां:

  1. अर्चना जी ,
    आपका प्रयास अच्छा है काव्य परिवार मे आपका स्वागत है हमे आपकी और मौलिक कविताये पढने की भी जिज्ञासा है आशा है कि आप जल्द ही हमको अपनी लेखनी के काव्य रस का पान कराएंगी...हिन्दी की पीड़ा वास्तव मे बहुत भावपूर्ण ढंग से व्यक्त की आपने ..
    ढेरों शुभकामनाओ सहित ..
    डॉ. अजीत

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