शनिवार, 30 मई 2009
तुलना
खिला फूल मदार का एक
मंदिर में हुई गुलाब से भेंट
बोला मदार गुलाब से नेक
होता तुमसे है अभिषेक
राजा हो या देवता अनेक
माली भी तुमको रखता है सहेज
तुमसे करें प्रदर्शन अपना प्रेम
प्रेमी युगल हों या दोस्त विशेष
महके चमन तुमसे हर एक
गुलाब तुम हो अति विशेष
नहीं ठिकाना मेरा एक
देते मुझको उखाड़ के फ़ेंक
भटकता रहता हूँ पथ पे अनेक
लिए निराशा मन में समेट
हुई न मेरी प्रेम से भेंट
ली गुलाब ने फिर अंगड़ाई
बोला मदार से मेरे भाई
नहीं है जीवन कोई व्यर्थ
जिसका हो न कोई अर्थ
प्रकृति ने की जो रचना अपनी
सबकी है विशेषता अपनी
तुम अपनी पहचान बनाओ
जीवन में कुछ नाम कमाओ
चढ़ते तुम हो उनके शीश
जो हैं सभी ईशों के ईश
तुमसे करते हैं उनका श्रंगार
फूल हो तुम भी विशेष मदार
करो न तुम किसी से तुलना
ढूंढो तुम भी वजूद अपना
जीवन में जिनके सुख होता है
काँटों पे उनको भी चलना होता है
मार्ग चिकने फिसलन लाते हैं
पथरीले मंजिल को पाते हैं
दो न तुम अपने को दोष
भरो जीवन में उमंग और जोश
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