रास्ते पर मैंने देखा
नन्हा सा एक प्रौढ़ बचपन
नहीं था उसके जीवन में
माता-पिता का प्यार -दुलार
उठा रखा था उसने हाथों में
अपने ही जैसा इक बचपन
साल चार के इस जीवन में
सिखा दिया था जीना उसको
जूझ रहा था पर हिम्मत से
लिए जिम्मेदारियों का बोझ स्वयं
नहीं था उसे कोई ग़म
देख के उसको आती मुझमें
दया नहीं
जोश और ताकत वरन
दुआ करती हूँ उसको मिले
आने वाले इस जीवन में
सुख-सफलता
और
प्रसिद्धी पराक्रम
(पुरानी पोस्ट से)
(चित्र गूगल सर्च से साभार )
अत्यन्त प्रभावशाली रचना है
जवाब देंहटाएंदुआ करती हूँ उसको मिले
जवाब देंहटाएंआने वाले इस जीवन में
सुख-सफलता
प्रसिद्धी पराक्रम
अर्चनाजी तिवारी
बहुत सुन्दर।
आभार/शुभमगल
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
अच्छी रचना ........
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत खूबसूरत रचना/
जवाब देंहटाएंmarmik rachana,sahi daya se jyada himmat ki jarurat hai jeene ke liye.
जवाब देंहटाएंमार्मिक --
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली व सफल रचना
sachcha sahi najuk komal marmik our sahi shabdo me jammeer jhakajhod diya kawita ne........ham aaj kuchh bhi to nahi kar pa rahe bachapan bachane ke liye .....sirf apane liye jiye ja rahe hai
जवाब देंहटाएंरास्ते पर मैंने देखा
जवाब देंहटाएंनन्हा सा एक प्रौढ़ बचपन
नहीं था उसके जीवन में
माता-पिता का प्यार -दुलार
उठा रखा था उसने हाथों में
अपने ही जैसा इक बचपन
बहुत ही शसक्त पंक्तियाँ हैं...
समाज की भीषण सच्चाई को उकेर कर रख दिया आपने..
बहुत प्रभावित किया है मुझे आपकी इस कविता ने...
आपने एक रचना की याद दिला दी...दिल को छू लेनेवाली रचना भिक्षुक की....
जवाब देंहटाएं"पेट और पीठ दोनो मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को...वो आता दो टूक कलेजे के करता...पछताता पथ पर जाता"
काफी अच्छा चित्रण किया है...बचपन और गरीबी का...
खूबसूरत
जवाब देंहटाएंMan ko sochne par vivash kar diya.
जवाब देंहटाएंबचपन का सजीव चित्रण और सम्वेदना रखने के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंBachpan to bahut pyara hota hai.Apne is par achha likha.
जवाब देंहटाएंपाखी के ब्लॉग पर इस बार देखें महाकालेश्वर, उज्जैन में पाखी !!
Kripya ise updet kartee rahen.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
दुआ करती हूँ उसको मिले
जवाब देंहटाएंआने वाले इस जीवन में
सुख-सफलता
प्रसिद्धी पराक्रम!
बहुत सुंदर रचना!
एक बेहतरीन रचना.आभार
जवाब देंहटाएंगुलमोहर का फूल
जूझ रहा था पर हिम्मत से
जवाब देंहटाएंलिए जिम्मेदारियों का बोझ स्वयं
नहीं था उसे कोई ग़म
देख के उसको आती मुझमें
दया नहीं
जोश और ताकत वरन
दुआ करती हूँ उसको मिले
आने वाले इस जीवन में
सुख-सफलता
और
प्रसिद्धी पराक्रम
bahut achhi rachna
aapki dua bahut achhi lagi
waaqai mein prabhaavshaali rachna hai......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा आपने
जवाब देंहटाएंरास्ते पर मैंने देखा
नन्हा सा एक प्रौढ़ बचपन
bahot khub bhai
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
इस उमं में यह विचार हैं तो आपको आगे जाने से कोई नहीं रोक सकता ।
जवाब देंहटाएं