पहली बारिश.....
बरखा के मौसम में जब
बादल घिर-घिर आता है
ठंडी हवाओं के झोंकों से
आँचल उड़-उड़ जाता है
नन्हीं चंचल बूंदों का जब
धरती पर रेला आता है
तन निर्मल धारों को पकड़
आसमान चढ़ जाता है
आसमान में रंगों का जब
सतरंगी मेला आता है
इन्द्रधनुष के झूलों में चढ़
मन ऊँचे पेंग लगाता है
बरखा की टिप-टिप जब
सुर मधुर गुंजाता है
हर मुख मस्ती में आकर
मेघ-मल्हार गुनगुनाता है
कविता में अद्भुत सौन्दर्य है।
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
मेघ आ ही गए !
जवाब देंहटाएंbahut Khub,ab to aa jao megha
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है !!
जवाब देंहटाएंwaah ! bahut accha laga padkar...
जवाब देंहटाएंbahut accha likhte hain aap....
aapne apne bhavon se alag hi rang bhar diya rachna main......
pata hai aaj maine bhi is masti bhari barish par likha hai.....
dekhiyega ummid hai aapko pasand aayegi.....
man-darpan par.....
kya baat hai? Achha laga jaanakar ki baarish lucknow bhi pahunch gayi hai??
जवाब देंहटाएंवाह,बहुत सुन्दर! वर्षा में बिल्कुल ऐसा ही होता है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
अभी जब मै आपकी सुन्दर कविता पढ रहा हू यहा दिल्ली मे बादल आ गये है. शायद वर्षा होगी. कही यह किसी के आंचल उडने के कारण तो नही है?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
ati sundar
जवाब देंहटाएंatyant umda rachna !
बरखा का सुन्दर काव्यात्मक स्वागत पसंद आया.
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें.
चन्द्र मोहन गुप्त