बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

जीवन के रंग


आते जाते कितने मौसम
रंग बदलते रहते हरदम
कभी गर्मी के तीखे तेवर
कभी सर्दी की धूप मद्धम
कभी बरखा की झिर-झिर बूँदें
छेड़ रही हों जैसे सरगम

आते जाते कितने मौसम
रंग बदलते रहते हरदम

कभी कठिनाई की आंधी आए 
कभी आशाओं की किरणें चम-चम
कभी दुःख के बादल छाए
कभी खुशियों की बरखा छम-छम
धूप-छाँव, बदली, बरखा
सुख-दुःख, आंसू, खुशियाँ
जाने कितने बदले मौसम
जीवन भी कुछ ऐसा ही है
रूप बदलते इसके हरदम

आते जाते कितने मौसम
रंग बदलते रहते हरदम


(चित्र  गूगल   सर्च  से साभार )

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

प्रथम उड़ान






एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार
नील गगन को छूने की
चाह ह्रदय में लेकर आज
फुदक रही है डाली-डाली
पंख फैलाए पहली बार

एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार

 बलशाली खग नभ में उड़ते 
 तेज चले पवन उनचास
खोल रही दुर्बल-कोमल पर
ह्रदय में लिए भय और आस
देखे गगन विशाल विस्तार

एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार

शीर्ष चढ़ी ऊँचे द्रुम के
नभ पर उड़ान भरने आज
कभी गिरते और सँभलते
लगन लिए और दृढ़ विश्वास
उड़ गई नील अम्बर में आज
पंख फैलाए पहली बार

एक गौरैया नन्ही सी
नीड़ से निकली पहली बार



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

बुधवार, 23 जून 2010

सृजन रुका नहीं करता है...



चाहे जितने झंझा आये
पर्वत डिगा नहीं करता है
जीवन  की कठिन परीक्षा  से
कर्मठ  हटा नहीं करता है

 एक कलम जो जाए टूट 

सृजन रुका नहीं करता है
कुछ पन्नों के फट  जाने से

लेख मिटा नहीं करता है 

दुःख के जब भी बदल छाए 
तब-तब  सुख की वर्षा लाये
काँटों की संगत पाकर भी 
गुलाब मुस्काया ही  करता है 

 तीखी गाली सुनकर  भी
सज्जन बुरा नहीं करता है 
कितने ही विषधर लिपटे हों
चन्दन मरा नहीं करता है 
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

आया महीना माघ और पूस


आया महीना माघ और पूस
आग भी तापे हरदम फूस
कोहरा ओढ़े सूरज निकले

उसको भी अब लगती सर्दी
पंद्रह दिन कि छुट्टी कर दी

सर्द हवाओं ने ली सब ऊर्जा चूस

आया महीना माघ और पूस

जब तापमान का पारा गिरता
ब्लोवर हीटर सब लग जाता
नहाने में मन करे आना-कानी
नल का देख के ठंडा पानी
लगे जवानी अब गई रूस

आया महीना माघ और पूस

निकली सलाई और ऊन के गोले
माँ स्वेटर बुनती हौले-हौले
पहने स्वेटर ओढ़े कम्बल रजाई
दांत कटकटाए फिर भी भाई

भरी चाय की प्याली को चूस

आया महीना माघ और पूस

(चित्र गूगल सर्च से साभार )

बुधवार, 20 जनवरी 2010

वसंत आया


शीत विदा कर धरती झूमी लो वसंत आया
नव सिंगार रूप का प्रकृति सुंदरी ने करवाया

उतार फेंकी धुंधली चादर भोर ने कोहरे की
ओढ़ लिए सुनहले पर सूरज के किरणों की

उमंग लिए धरती की दुल्हन ने ली अंगड़ाई
प्रेम गीत से भ्रमरों ने नव कलियाँ चटकाई

दृग भरे बलखाती आमों की बौराई डालों  से
कर दिया  पवन को सुवासित अपनी सुगंध से

नव कोपलें देती नन्ही तितलियों सा भान
पीत सरसों के खेत करते ऋतुराज का आवाहन

श्री कृष्ण के कंठ से माँ शारदे का उद्भूत हुआ
माघ शुक्ल पंचमी का दिन अति पावन हुआ

हे माँ ! दूर करो अज्ञानता के सारे तम
शत-शत करते आपको नमन हम सब जन


(चित्र गूगल सर्च से साभार)