शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

गाँधीमय

    एक प्राथमिक विद्द्यालय में गाँधी जयंती समारोह का आयोजन बड़े उत्साहपूर्वक भावपूर्ण रूप से मनाया जा रहा है, प्रांगण में बापू के चित्र के समक्ष सभी शिक्षक और विद्द्यार्थी खादी वस्त्र धारण किये हुए एक साथ करबद्ध खड़े विभोर हो प्रार्थना कर रहे हैं - वैष्णव जन तो....पीर पराई....मद्ध्यांह् भोजन तैयार हो रहा है, बच्चों के भोजन के लिए  टाट पर कतार से सभी थालियाँ सजाई गई हैं और कुछ थालियाँ प्रांगण से दूर अलग-थलग कोने में  रखी गई हैं, सारा वातावरण  गाँधीमय हो गया है |




रविवार, 28 सितंबर 2014

प्रतिमा

रघु का सारा शरीर ज्वर से तप रहा था | किसी तरह हिम्मत करके वह पोखर से मिट्टी तो ले आया पर अभी तक वह देवी की प्रतिमा नहीं बना पाया था | त्योहारों में प्रतिमाएँ बना कर उसे चार पैसे मिल जाते थे | मजदूरी करते हुए एक दुर्घटना में उसके बेटे और बहू की मृत्यु हो गई थी तब से रघु के बूढ़े कन्धों पर उसके दोनों पोते-पोती के पालन का बोझ आन पड़ा था |

रात काफी बीत गई थी | प्रतिमा बनाने के लिए किसी तरह से घिसटते हुए रघु अहाते में आ गया जहाँ उसने मिट्टी भिगो रखी थी | अचानक वहाँ एक सुन्दर सी लड़की को खड़ी देखकर वह सन्न रह गया | वह काफी भयभीत लग रही थी | उसने लड़की से पूछा कि इतनी रात में वह यहाँ क्या कर रही है तो वह बोली – “बाबा ! मेरे पीछे कुछ बदमाश पड़े हैं, वे मुझे पकड़ना चाहते हैं, मुझे कहीं छिपा दो |” तभी अचानक उन बदमाशों की गाड़ी अहाते के सामने आ कर रुकी | रघु के शरीर में न जाने कहाँ से बिजली सी फुर्ती आ गई उसने गीली मिट्टी उठा कर उस लड़की के ऊपर उड़ेल दिया और जल्दी-जल्दी मिट्टी लेपने लगा फिर ब्रश लेकर उसको आकार देने लगा | थोड़ी देर इधर-उधर देखने के बाद बदमाश वापस चले गए |

वह किसी उद्द्योगपति की बेटी थी | उसने अपना नाम प्रतिमा बताया और घर का पता दिया | सुबह रघु द्वारा सूचना देने पर लड़की के पिता आए | वे बेटी को सुरक्षित देखकर बहुत खुश हुए | उन्होंने रघु के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी लेने और उसे अपने फार्म हाउस पर रहने का आग्रह किया | सूर्य की किरणों में प्रतिमा दिव्य लग रही थी | रघु भावविह्वल हो उसे देखे जा रहा था और सोच रहा था कि आज उसकी गढ़ी इस प्रतिमा में साक्षात् ‘माँ’ के दर्शन हो गए |



मंगलवार, 23 सितंबर 2014

एक अनुभव - टीचर से राइडर, राइटर और फिर...

  मेरे भाई मयंक तिवारी की मोटर साईकिल से लेह-लद्दाख की यात्रा -वृत्तान्त का हिंदी अनुवाद                              
                                          
      इंसान अपने जीवन में अनगिनत सपने बुनता है, उनमें से कुछ पूरे भी होते हैं | इसी तरह से उसके जीवन में कभी-कभी  अचानक कुछ ऐसा घटता है जो इन सारे सपनों के ऊपर एक धुन, एक जूनून बनकर उसके व्यक्तित्व को एक अलग पहचान बना देता है |  ऐसे ही मेरे जीवन में एक ऐसा क्षण आया जिसने मेरे अपने काम, अपने व्यवसाय से हटकर कुछ अलग कर गुजरने  की प्रेरणा दी और वह क्षण था 20 जून 2013  का दिन, जब  मैं अपने 6 साथियों के साथ मोटर साईकिल से 4000 कि. मी. की लखनऊ से लेह तक 15  दिन की यात्रा करके वापस घर पहुँचा मैं शारीरिक रूप से तो घर आ गया था पर मानसिक रूप से लेह की बर्फीली पहाड़ियों, रास्तों में ही घूम रहा हूँ  | मुझे ऐसा लग रहा था जैसे 70 एम.एम. के परदे पर कोई रोमांचक फिल्म देख रहा था जिसका हीरो मैं खुद था |   गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं | दस दिन बाद कॉलेज खुलने वाला था |  

    अगले दिन सुबह उठने पर मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे कुछ खो गया है | मैं अपने को वापस समेटने की नाकाम कोशिश कर रहा था | लोगों ने मुझसे कहा कि मैं बदल गया हूँ | क्या वाकई ?? मैंने  अपने चेहरे को ध्यान से आईने में देखा, (फ्रोस्ट बाइट से रंगत बदल गई थी) मैं वही था लेकिन मुझमें कुछ बदल गया था | मैंने सुना था कि पहाड़ किसी को कुछ देना चाहते हैं तो उसे अपने पास बुलाते हैं |  मेरे अंदर जैसे कोई सैलाब उमड़ रहा था | मैंने अपने मन को किसी तरह स्थिर किया  और जो कुछ वहाँ देखा, अनुभव किया उसको लिखने बैठ गया |

    सबसे पहले,  मैंने यह क्यों किया ? जब मैं किशोरावस्था में था, मेरे पास बाइक नहीं थी, अरे बाइक तो दूर की बात स्कूल और कॉलेज के दिनों में  मेरे पास स्कूटर तक नहीं था (इसका मतलब यह नहीं कि मुझे टू-व्हीलर चलाना नहीं आता था ) हाँ मेरे पास एक साईकिल थी जो मेरे ग्रेजुएशन तक चली और मुझे इसका गर्व है | जब मेरा ग्रेजुएशन समाप्त होने वाला था तब अपने पिता जी की तरफ़ से उपहार स्वरुप मुझे एक बजाज चेतक स्कूटर मिली , बाइक फिर भी नहीं मिली कारण, पिता जी का (मेरे लिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से)  कहना था कि स्कूटर एक सभ्य और सुरक्षित गाड़ी है हालाँकि वे खुद अपने समय में मेरे जन्म से पहले तीन-तीन बुलेट ले चुके थे |

   मैंने अपनी नौकरी के शुरूआती चार साल उसी बजाज चेतक पर बिताए | नवम्बर 2010 में मैंने अपनी रॉयल एन्फील्ड इलेक्ट्रा 350 सी.सी. बुलेट खरीदी | शुरू में उसपर आस-पास की छोटी-मोटी दूरी तय की | पहली लम्बी यात्रा लखनऊ से मसूरी की, पर कुछ खास उपलब्धि नहीं मिली | बावजूद इसके मैं अपनी बुलेट के साथ हर मनपसंद काम करने में रूचि रखता था | एक बार सब्जी-मंडी सब्जी लेने गया तो सब्जी वाले बड़े ध्यान से मेरी बुलेट देख रहे थे, उनमे से एक बोला,  “ अरे ! ई राजा गाड़ी अहै “, सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई | सड़क पर, पेट्रोल पम्प पर और कॉलेज में  प्रायः सबकी नज़रें अपनी ओर पाता |

   मेरे मन में रह-रह कर सवाल उठता कि क्या मैं एक सशक्त, मजबूत राइडर हूँ ? मैंने पाया कि मेरे पास एक राइडर की फिटनेस और मिजाज़ दोनों हैं जो एक सबसे कठिन इलाके की एक सबसे कठिन यात्रा, जो ऊँचाई और बाधाओं की विभिन्नताओं दोनों दृष्टिकोण से कठिनतम है, को सफल और सुरक्षित पूरा करने की क्षमता है |    जी हाँ ! मैं बात कर रहा हूँ लेह-लद्दाख के इलाके की जो सामान्यतः “मोटरसाईकिल सवारों का मक्का” या यों कहें “मोटरसाईकिल सवारों का स्वर्ग “ के नाम से जाना जाता है | जहाँ बलुई कंकरीले-पथरीले-बर्फीले-कींचड़-पानी भरे  अँधेरे दुर्गम रास्ते, जहाँ बिना पूर्व सूचना के अचानक  मौसम में बदलाव आ जाता है यानि एक ऐसा क्षेत्र जहाँ अक्सर सड़कें भी बंद हो जाती हैं | वहाँ के बारे में लद्दाख के स्थानीय लोगों का कहना है कि – “ इस सबसे ऊँचे दुर्गम बंजर दर्रों में केवल दो ही तरह के लोग आना चाहते हैं - एक वह जो सच्चा दोस्त हो और एक वह जो कट्टर दुश्मन हो |”  

  अब, मैंने क्या किया ? मैंने यहाँ लखनऊ के स्थानीय राइडर्स से बात की जिनमें से एक मेरे स्कूल का दोस्त सोमेन्द्र बनर्जी भी था | और अंत में हमने विश्व के सबसे ऊँचाई पर स्थित ‘खर्दूंग-ला’ जाने का फैसला किया | 6  जून 2013  को लखनऊ से हम 6 मोटरसाईकिल सवारों ने अपनी सबसे रोमांचकारी यात्रा आरम्भ की | आम तौर पर राइडर्स दिल्ली-चंडीगढ़-मनाली मार्ग से खर्दुंग-ला जाते हैं पर  हमने अपनी  अधिक रोमांचक और कम ढलान वाले मार्ग को चुना जो -  लखनऊ-हरिद्वार-देहरादून-चकराता-रोहरू-नर्कुंडा-कुल्लू-मनाली-तांडी-केलोंग-जिस्पा-सरचू-रुम्प्त्से-लेह-पेंगोंग लेक-कारगिल-द्रास-सोनमर्ग-श्रीनगर-उधमपुर-जम्मू-लुधियाना-अम्बाला-पानीपत-सोनीपत-दिल्ली-आगरा-कानपुर-लखनऊ था |

   मैंने वहाँ जो कुछ भी देखा उसे शब्दों में बयान करना बहुत ही मुश्किल है | जलोरी पास- जिसे आम तौर पर पर्यटक नहीं जानते, जहाँ  राइड के लिए अपने कठिनतम तीखे ढलान मिलते हैं, रोहतांग पास-  जहाँ पर्यटकों का तांता लगा रहता है और हमेशा ट्रेफिक जाम मिलता है, खर्दुन्गला- 18380 फुट विश्व में सबसे ऊँचा और  तंगलांगला- विश्व में दूसरे स्थान पर  17800 फुट ऊँचा गाड़ी चलाने के लिए पास है | फोटूला- नाम के अनुरूप जहाँ सुन्दरतम दृश्य देखने को मिलते हैं, जोजिला- जिसका  हमने ‘गोडजिला’ नाम दिया जहाँ मोटरसाइकिल सवारों के लिए भयंकर चढ़ाई है | इन दर्रों के बीच छोटे-छोटे ढाबे मिले जहाँ हम छोटा विश्राम लेते थे और जहाँ हमें बर्फीली हाड़ तक कंपा देने वाली ठण्ड से राहत देने के लिए चाय पीने को मिल जाती थी | पहला मार्ग  चकराता से मिला जो उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों  से केलोंग और सरचू की ठंडी बर्फीली सड़कों की ओर ले जाता है जहाँ भव्य मूरी मैदान, कभी न खतम होने वाले गाता के मोड़, सुंदर रंगीन पहाड़ियों के बीच होती हुई डामरयुक्त सड़कें जो खारु और लेह को जाती हैं | जहाँ सड़कें समाप्त  हो जातीं हैं और जहाँ दिव्य, भव्य, शानदार मनोरम घाटियाँ हैं, वहाँ के तीखे ढलान, बर्फ़ से ढकी सफ़ेद दिव्य पहाड़ियां जो एक रक्षक की भांति तैनात हैं, उग्र सतलज नदी के साथ-साथ चलती घुमावदार सड़कें और फिर कश्मीर के हरे-भरे सुंदर पहाड़ों से होते हुए हम वापस गर्म उमस भरे लखनऊ के वातावरण में आ पहुँचे | इस दौरान हमने  लद्दाख के लज़ीज़ पकवान और ताज़गी भरी चाय और श्रीनगर के डल झील के स्वादिष्ट कबाब खाने का भी आनंद उठाया |  
  
   यात्रा के दौरान जब हम शारीरिक रूप से अत्यंत थके हुए अपने दुर्गम कठिनतम एक पड़ाव को समाप्त कर दूसरे तक पहुँच जाते तब हमें यह अनुभव होता कि वाकई में हममें  एक सशक्त राइडर छिपा हुआ था जिसका हमें ज्ञान नहीं था | जब हम वहाँ की सुन्दर वादियों के अत्यंत मनोरम दृश्य देखते तो हमें अपनी सारी थकान तुच्छ लगती | मैंने प्रायः देखा है कि जब कोई राइडर अपनी लेह-लद्दाख की यात्रा पूरी करता है तो उनमें से मुट्ठी भर हैं जो अपनी दुर्गम रोमंचक यात्रा को दूसरों के साथ बांटते हैं और ऐसी योजना बना पाते हैं  कि उनकी  मोटरसाइकिल उनकी यात्रा की सभी बाधाओं को किस प्रकार से दूर करके उनको सुरक्षित अपने पड़ाव तक पहुंचाए | यह यात्रा मनोरम दृश्यों के बीच किसी युद्ध के मैदान जैसा अनुभव देती है | मोटरसाइकिल आनंददायक सवारी  है अवश्य है इसमें कोई शंका नहीं परन्तु  हमने अपनी यात्रा के दौरान हमेशा  सभी छोटे से छोटे और बड़े से बड़े सारे सुरक्षा नियमों का कड़ाई से पालन किया जिसके कारण हमने अपनी इस रोमांचक यात्रा को सुरक्षित आनंददायक अंजाम दिया |

   इस यात्रा के बाद मैं रॉयल एन्फील्ड की दो पंक्तियों जो लेह-लद्दाख की यात्रा के लिए हैं से पूर्ण रूप से सहमत हूँ , एक - “Tiring-Testing-Tempting”  और दूसरी है -“The road to heaven is never a straight line”  जो वास्तविक और लाक्षणिक दोनों रूपों में सत्य है | कहते है वादे  स्वर्ग में किए जाते हैं इसलिए मैंने भी लेह-लद्दाख में एक वादा किया कि मै अपनी इस यात्रा की साथी मोटरसाइकिल के साथ  अगले साल दोबारा फिर आऊंगा |

                                                                      
                                   -मयंक तिवारी (हिंदी अनुवाद –अर्चना तिवारी )











          

गुरुवार, 29 मई 2014

रिश्ते यूज़ एंड थ्रो.....

खरीदा, प्रयोग किया, फेंका
“यूज़ एण्ड थ्रो पेन”
रख दो कहीं भी किसी कोने 
फिर मिल जाएगा कहीं पड़ा 
कोई दूसरा ऐसा “यूज़ एण्ड थ्रो पेन” 
क्योंकि बाज़ार में मिलते ही हैं 
रंगबिरंगे, लुभावने, नए-नए 
एक से बढ़कर एक “यूज़ एण्ड थ्रो पेन”
खो जाने का डर नहीं 
टूट जाने का भी भय नहीं 
क्या हुआ, फिर से खरीद लाएंगे
एक नया-नवेला “यूज़ एण्ड थ्रो पेन”
ठीक ऐसे ही तो अब हो गए हैं
रिश्ते सभी “यूज़ एण्ड थ्रो”
प्रयोग करो, बदलो नित नए-नए
“रिश्ते यूज़ एंड थ्रो”....
भावनाओं की परवाह नहीं
नहीं प्रेम का नामोनिशान इसमें
आकर्षण से फूलें-पनपें
क्षण में बनते-टूटते रहते
“रिश्ते यूज़ एंड थ्रो”

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

शीत विदा कर आया वसंत


नवल ऋतु का अभिवादन
शीत विदा कर आया वसंत
रंग-बिरंगे फूलों से
कुसुमित हुए बाग अत्यंत

भोर के मुख से सरकी
धुंधली चादर कोहरे की
फैलाए किरणों ने भी
सुनहरे पर सूरज की

धरती की दुल्हन ने ली
फिर उमंग भरी अंगड़ाई
प्रेम गीत से भंवरों ने भी
नव कलियाँ चटकाई

दृग भर उठे आमों के
बौराई डालों से
पवन हो गई चंचल
मदमाती सुगंध से

नव कोपलें देती हैं
तितलियों सा भान
पीली सरसों के खेत करें
ऋतुराज का आह्वान

श्री कृष्ण के कंठ से
माँ शारदे का उद्भूत हुआ
माघ शुक्ल पंचमी का
दिन पावन अभिभूत हुआ

हे ! माँ दूर करो हमारे
अज्ञानता के सारे तम
नमन करते आपका
हम सब भारत के जन

रविवार, 26 जनवरी 2014

सरहदें अपनी मिटा कर देखो


सभी देशवासियों को 65वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ |

26 जनवरी का  दिन हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है | आज ही के दिन 64 वर्ष पहले सन् 1950 में  दुनिया की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक,  जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है,  और जिसने अनेक रीति-रिवाजों और परम्‍पराओं का संगम देखा है, जो दुनिया में  समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है, ऐसे हमारे देश भारत ने स्वयं को  अंग्रेजों की दासता की जंजीरों से मुक्त कराकर दुनिया के सबसे विस्तृत संविधान को आत्मसात किया था और एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की थी |  इसी के साथ सबसे पहले डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद ने  भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ली  और  उन्‍होंने राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्‍म की घो‍षणा की थी |

गणतंत्र यानि रिपब्लिक शब्द की उत्पत्ति  लेटिन भाषा के 'रेस पब्लिका' से हुई है,  जिसका अर्थ है “पब्लिक अफेयर्स” | इस तरह से गणतंत्र होने का मूल अर्थ है कि उस देश का शासक अनुवांशिक राजा नहीं बल्कि जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि होगा | यह ऐसी प्रणाली है जिसमें राष्ट्र के मामलों को सार्वजनिक माना जाता है। यह किसी शासक की निजी संपत्ति नहीं होती है। राष्ट्र का मुखिया वंशानुगत नहीं होता है। उसको प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित या नियुक्त किया जाता है।

26 जनवरी का दिन इतिहास में पहले से ही विशेष स्थान रखता था. इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1930 के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था और प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवसके रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई थी | इसीलिए इस दिन को यादगार बनाने के लिए चुना गया और इसी दिन संविधान लागू किया गया |

 किसी भी देश के नागरिक के लिए उसका संविधान उसे जीने और समाज में रहने की आजादी देता है इस तरह गणतंत्र दिवस और संविधान की उपलब्धता महत्वपूर्ण  है |   क्या हमने कभी सोचा ? कि हम जिस स्वतंत्र वातावरण में सांस ले रहे हैं, जिस संविधान ने हमें हमारे मूल अधिकार प्रदान किए, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के साथ-साथ अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा  और अवसर की समता दिलाई, उसको प्राप्त करने के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेज सरकार की कितनी यातनाएं सहीं, जाने कितनों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया ?  भगत सिंह और उनके साथी  63 दिनों तक भूखे रहे ? लाला लाजपत राय ने सिर पर लाठियां खायीं?  जालियां वाला बाग में अनगिनत लोगों को गोलियों से भून दिया गया ? क्या कभी हमने सोचा कि जब हम सर्दी, गर्मी, बरसात में अपने घरों में सुरक्षित चैन से सो रहे होते हैं उस समय  हमारे वीर सैनिक अपने जान की परवाह किए बिना देश की सीमा की निगरानी कर रहे होते हैं ?

एक बड़ी ही महत्वपूर्ण  घटना आप सभी के साथ बाँटना चाहूंगी –  यह घटना नेहरु जी के देहांत से सम्बंधित है | एक दिन काम करते-करते अचानक उनके सीने में दर्द उठा और उन्होंने अपने डेस्क पर अपना सिर रख लिया | जब उन्हें हटाया गया तो उनकी मृत्यु हो चुकी थी और उनकी  डेस्क पर लिखा था -

The woods are lovely, dark and deep, 
 But I have promises to keep, 
 And miles to go before I sleep, 
 And miles to go before I sleep.

इस कविता के माध्यम से उन्होंने सभी देशवासियों को  संदेश दिया कि हमें अपने जीवन में अंतिम समय तक  निरंतर कर्म करते हुए कर्तव्य के मार्ग पर चलते रहना चाहिए |

हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमने आज़ाद भारत में जन्म लिया | हमें उपने पूर्वजों द्वारा प्रदान किये इस आज़ादी के उपहार को सुरक्षित और सम्मानित रखना होगा | हमें अपने संविधान की नीतियों का पालन करना होगा | देश की प्रभुता, एकता, अखंडता की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहना होगा |  एक अच्छे नागरिक के कर्तव्यों को निभाना  होगा | अपने देश के संसाधनों को बर्बाद होने से बचाना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढियां भी उसका उपभोग कर सकें |  तभी सही मायने में हमारा देश एक गणतंत्र राज्य कहलाएगा |   

और मैं अंत में  अपनी एक गज़ल  कहना चाहूंगी –

कर्म को देव बना कर देखो
सत्य के मार्ग पे जा कर देखो

 साथ में होंगे करोड़ों इक दिन
 पाँव तो पहले बढ़ा कर देखो

 सारे इंसान हैं इस दुनिया में 
सरहदें अपनी मिटा कर देखो 

 क्या है नफरत, ये अदावत क्या है
 प्रेम का राग तो गा कर देखो 

 मंजिलें साफ़ नज़र आएंगी
 ज्ञान के दीप जला कर देखो    


 -    जय हिंद
   

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

कहानी – विकल्प

शाम को मानव ट्यूशन कर के अपने मित्र दीपक के घर पहुंचा तो  दीपक को लेपटॉप लेकर बैठे देखा | लोकसेवा आयोग की वेबसाईट खुली पड़ी थी, परीक्षा परिणाम आ चुका था दीपक लिस्ट में अपना नाम देख रहा था उसने चहक कर कहा –“अरे ! यार मेरा सेलेक्शन हो गया |” दीपक का सेलेक्शन विकलांग कोटे में हो गया था |

 मानव लपककर लिस्ट में अपना नाम ढूंढने लगा | उसने कई-कई बार जनरल केटेगरी की सारी लिस्ट शुरू से अंत तक देख डाली परन्तु उसका नाम लिस्ट से नदारद था, मानव की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा वह पास रखे तख़्त पर बैठ गया | उसका सारा शरीर काँपने लगा था,  सिर में  झनझनाहट महसूस हो रही थी जैसे किसी ने बिजली का नंगा तार छुआ दिया हो | दिसम्बर की ठण्ड में भी उसके माथे पर पसीने की बूँदें छलछला आईं थीं | कमरे में मानव को घुटन सी होने लगी  वह एक झटके से उठा और बाहर चला गया |

 किस दिशा में जा रहा था ? कहाँ जा रहा था ? उसे कुछ होश नहीं था | उसकी आँखों के सामने बीमार माँ और बहनों के चेहरे नाचने लगे | क्या होगा अब ? कैसे करेगा अपनी बहनों का ब्याह ? दो भांजियां भी तो हैं, क्या होगा उनका ? इन सबकी जिम्मेदारी पिता की मृत्यु के बाद मानव पर ही आ गई थी |

 मानव से छोटी दो बहने हैं | उससे  बड़ी एक और बहन थी जिसका विवाह हो चुका था |  विवाह के एक साल बाद दो बच्चियों को जन्म दिया तो लड़की जन्मने पर ससुराल वालों  की उपेक्षा और तानों ने बीमार कर दिया और अंत में इस संसार से विदा हो ली | उसका पति किसी दूसरी औरत के साथ मुंबई भाग गया |  बिन माँ की बच्चियों की देखभाल करने वाला कोई नहीं था इसलिए  मानव के पिता उनको घर ले आए | पिता  बेचारे बेटी के दुःख से बिलकुल टूट गए थे, सो उन्होंने ऐसे  बिस्तर पकड़ा कि फिर कभी उठ न सके |  मानव के पिता दीनानाथ मिश्र प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर थे | उनके पास जो भी जमा पूँजी थी वह सब एक-एक करके उनकी बीमारी में लगती गई | घर गिरवी हो गया था और कई लोगों से क़र्ज़ भी लेना पड़ा था |  घर की चिंता और बीमार ने उन्हें खोखला बना ही दिया था जिससे उनका प्राणांत हो गया  |

पिता के देहांत के बाद मानव के परिवार पर जैसे दुःख का पहाड़ टूट पड़ा |  माँ को जो पेंशन मिलती उसमें से लोगों के  क़र्ज़ उतारने के बाद इतना  नहीं बच पाता था कि घर का खर्चा चल पाता इसलिए माँ घर पर लोगों के कपड़े सिलने लगी थी, उसी से जो कुछ मिलता था उसमें किसी तरह से उन लोगों का जीवन निर्वाह हो रहा था |

 उस समय मानव हाईस्कूल में था | पिता के देहांत के बाद से उस 14 साल के लड़के पर 40 साल के प्रौढ़ की सी जिम्मेदारी आ गई थी | सुबह मानव पेपर बांटता फिर स्कूल जाता दोपहर लौटकर  किराने की दुकान से सामान उठाकर लोगों के घर पहुंचाने का काम करता था, इससे जो पैसे मिलते उनसे मानव  और उसकी  बहनों की पढ़ाई की फीस और कापी-किताबों का खर्च निकलता | इसी तरह से उसने इण्टरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की | प्राइवेट स्नातक की परीक्षा पास कर मानव प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने लगा |

एक दिन उसकी मुलाकात दीपक से एक बुकस्टाल  पर हो गई  | मानव को जो पत्रिका चाहिए थी उसकी  केवल एक ही प्रति थी जो दीपक खरीद  चुका था | मानव को परेशान देख दीपक ने वह पत्रिका मानव को दे दी और अपना पता देते हुए कहा कि पढ़ने के बाद वह उसे वापस कर दे |  दीपक का एक पैर खराब था उसने अपने एक हाथ में छड़ी पकड़ रखी थी | मानव ने दीपक को अपनी साईकिल पर बैठा कर उसके घर छोड़ने का आग्रह किया | दीपक उसकी साईकिल पर आकर बैठ गया | तभी से दोनों में गहरी मित्रता हो गई थी |  

 बढ़ती उम्र, दिन-रात की कड़ी मेहनत, परिवार की चिंता और आभावों ने मानव की माँ को कमज़ोर कर दिया था, वह भी अक्सर बीमार रहने लगी थी उसकी सिलाई का काम भी बंद हो गया था | कर्जदार अक्सर तगादा करने आ जाते थे जिनके आगे  हाथ-पैर जोड़कर मानव को थोड़ी और मोहलत के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता था |

आनंद नगर जैसे छोटे से शहर में मानव को कोई ढंग का काम भी न मिल सका था और कोई काम मिलता भी था तो उसके पैसे कम शोषण अधिक था | ट्यूशन में भी इतने पैसे नहीं मिल पाते थे जिससे घर का गुज़ारा हो पाता | उसने एक सर्राफ के यहाँ रात में गार्ड की नौकरी कर ली थी | वहीँ साथ में रात भर आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पढ़ता रहता था |

यह नौकरी मानव के लिए सब कुछ थी जिसको पाने के लिए उसने दिन-रात जी तोड़ मेहनत की थी | आज मानव के जीवन में मानो तूफ़ान आ गया था |
वह  मन में ही मन सोचता जा रहा था-
“अब अगली परीक्षा पता नहीं कब होगी ?” “हर साल होती भी तो नहीं हैं |”
 मानव विच्छिप्त सा चलता जा रहा था, वह कब मेन रोड के बीचोबीच आ गया पता नही | अचानक उसके सामने तेजी से ट्रक आता दिखा, उसका सिर चकराने लगा,  तेज़ रोशनी के साथ ज़ोरदार आवाज़ हुई और फिर अँधेरा छा गया |

मानव की आँख खुली तो वह अस्पताल में था | उसके सारे बदन में भयंकर दर्द था | सामने  दीपक और उसके पिता खड़े थे  | उसने उठने की कोशिश की पर वह उठ नहीं सका | उसके पैरों में भयंकर दर्द उठा दोनों पैर ऐसे जकड़े थे जैसे उनपर किसी ने कोई भारी सी चीज़ रख दी हो | दुर्घटना में उसके दोनों पैर बुरी तरह से घायल हो गए थे जिनमें से एक पैर को घुटनों तक   काटना पड़ा | जब उसे यह पता चला तो वह जोर से चीखा, मानव के जीवन संघर्ष में ये ऐसी घटना थी जिसने उसकी सारी आशाओं पर कुठाराघात कर दिया था | परिवार का सहारा आज खुद सहारे का मोहताज था |

 इस घटना को छः महीने बीत गए थे |  मानव को  अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी | दीपक अपनी ट्रेनिंग पर चला गया था | इस दौरान मानव के  घर की दशा बहुत ख़राब हो गई थी | माँ ने बिस्तर पकड़ लिया था उनकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी, सरकारी अस्पताल से सारी दवाएं नहीं मिल पाती थीं जिससे उनका सही से इलाज हो पाता | घर में फाके चल रहे थे | दोनों छोटी बहनों की पढ़ाई भी छूट गई थी | जब मानव को इन सबका  पता चला तो उसका ह्रदय चीत्कार उठा |

दीपक के पिता ने थोड़े पैसों से मदद कर दी थी पर कोई किसी को कितने दिन मदद करता और घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि मानव कुछ दिन आराम कर पाता | उसे अस्पताल से  ट्राईस्किल मिल गई थी  उसे लेकर काम की तलाश में चल दिया  | इस अवस्था में उसे कोई काम भी नहीं मिल पा रहा था | कुछ दिन भटकने के बाद  उसके छूटे हुए कुछ ट्यूशन फिर मिल गए, दीपक के पिता ने उसको किसी सेठ के यहाँ हिसाब-किताब देखने का काम भी दिला दिया था | जीवन की गाड़ी किसी तरह से रेंगने लगी |

 दीपक छुट्टी आया था उसने आने वाली परीक्षाओं के फार्म मानव के विरोध के बावजूद समझा-बुझाकर जबरदस्ती भरवा दिए थे | मानव ने धीरे-धीरे फिर से पढ़ाई शुरू कर दी और  एक-एक कर सभी परीक्षाएं देने लगा |

एक दिन पोस्टमैन ने  दस्तक दी | मानव ने लेटर रिसीव कर के खोला, उसका सेलेक्शन गोरखपुर के किसी कॉलेज में प्रवक्ता के पद पर हो गया था | वह ख़ुशी से चीख उठा था |  उसकी आँखों में आंसू आ गए थे | उसने माँ का पैर छूते हुए उसे यह खबर सुनाई तो माँ ने प्यार से उसका माथा चूम लिया | सारे घर में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी | वह जल्दी से दीपक को खबर देने के लिए पीसीओ की ओर चल पड़ा |

मानव ने कॉलेज के आफिस में जाकर सारी औपचारिकताएं पूरी की | कॉलेज के क्लर्क ने उसे लेटर लेने के लिए अगले दिन बुलाया |  अगले दिन मानव आफिस पहुंचा तो काफी देर बाद क्लर्क ने उसे बड़े बाबू के पास भेज दिया |

बड़े बाबू ने चश्में के ऊपर से उसे ऊपर से नीचे तक देखा और सामने बैठने का इशारा किया |  फिर उसने मानव से कहा  – “ देखिये आपको तो नौकरी मिल ही गई है, देख रहा हूँ आपको इसकी सख्त ज़रूरत भी है, बस आपको थोड़ा ‘चढ़ावा’ चढ़ाना होगा....देखिये कुछ औपचरिकतायें तो  पूरी करनी ही होंगी  बस आपका लेटर मिल जाएगा | “

मानव कुछ समझा नहीं |  बाबू ने  धीरे से पास आकर दांत फैलाते हुए कहा – “ देखिये बड़े लोगों को खुश करना पड़ता है, 5 लाख देने होंगे, बस आपका काम हुआ समझिये |” इतना सुनते ही मानव बौखला गया | उसने कहा – “ ऐसा कैसे हो सकता है ? मेरा सेलेक्शन हुआ है, मैं रिश्वत क्यूँ दूँ ? “

बाबू ने कहा – “ये रिश्वत नहीं है ये तो चढ़ावा है | भगवान को मनोकामना पूर्ति के लिए चढ़ावा तो चढ़ाते ही हैं न भाई, और हम आपकी स्थिति देखकर आपको  डिस्काउंट दे रहे हैं, लोग 10-15 तक ख़ुशी-खुशी से दे जाते है और निश्चिन्त होकर नौकरी करते हैं फिर उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती |” 
 “बिना रूकावट नौकरी करने के लिए कुछ तो चढ़ावा देवताओं को देना ही पड़ेगा |”

मानव को सारी बात समझ में आ गई | वह परेशानी और बौखलाहट में आफिस के बाहर आ गया | उसके सामने अब यह एक नई मुसीबत आ गई थी |  क्या करे क्या न करे, पांच लाख कहाँ से लाये ? इतने पैसे तो उसने कभी देखे तक नहीं थे | कैसे मिलेगी उसे यह नौकरी ? उसे अपनी यह नौकरी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नज़र आ रही थी |

 मानव का मन रोने को हो रहा था | “...दीपक से पैसे मांगे...” एक बार उसे यह ख्याल आया... उसने फिर अपना सिर झटक दिया ...वह उससे पैसे कैसे मांग सकता है ? ...उसकी भी तो नई-नई नौकरी है... अभी उसके पास इतने पैसे कहाँ होंगे...और फिर दीपक के पहले से ही उस पर इतने एहसान हैं, उसके एक्सीडेंट के समय उसके पिता ने कितनी मदद की थी |

  “उसे यह नौकरी हर हाल में पानी है, इस नौकरी के सिवा उसके पास और कोई 'विकल्प' भी तो नहीं है ।“ - यह सोचते हुए उसने दीपक को फोन किया | दीपक ने कहा कि उसके पास इतने पैसे तो नहीं हैं अगले महीने उसकी बहन की शादी भी है | 

 मानव के ऊपर मानों बिजली गिर पड़ी थी | उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था |  वह थका, परेशान, टूटा, असहाय एक मंदिर के निकट पंहुचा | वहीँ एक चबूतरे के पास उसने अपनी ट्राईस्किल रोक दी और पेड़ की छाँव में सुस्ताने के लिए चबूतरे पर सरक आया और पेड़ से टेक लगा कर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं | 

उस चबूतरे पर त्रिशूल-डमरू आदि लगे थे पास में इमली के पेड़ पर घंटियाँ भी बंधीं थीं | तभी उसके पैरों के पास कुलबुलाहट सी महसूस हुई उसने चौंक कर अपनी आँखें खोल दी, देखा कपड़े में लिपटा एक बच्चा पड़ा था और पास ही  गहनों से लदी हुई एक महिला अपनी आँखें बंद किए हाथ जोड़े बैठी थी | बच्चा सरकते हुए चबूतरे से गिरने ही वाला था तभी मानव ने लपक कर बच्चे को उठा लिया, बच्चा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा |
अचानक महिला ने आँखें खोली और जोर-जोर से जयकारा  लगाने लगी | “...इमला बाबा जी की जय....चमत्कार हो गया-चमत्कार हो गया...मेरा बच्चा ठीक हो गया....”|
 मानव ने सकपका कर  देखा  आसपास भीड़ जमा होने लगी उस औरत ने चिल्ला कर कहा – “...मेरे बच्चे ने कई दिनों से रोना बंद कर दिया था...बाबा के आशीर्वाद से फिर से रोने लगा ....” उस महिला ने अपनी पर्स से नोटों की एक पोटली निकाल कर मानव के सामने रख दी और मानव के पैरों में सिर नवा दिया और उठ कर चली गई |
थोड़ी देर में उस महिला के साथ दस-बारह लोग और आ गए | वे सब भी मानव के पैरों में अपना सिर नवाने लगे और जयकारा लगाने लगे ।  
जब तक मानव  कुछ बोलता  "....इमला बाबा की जय...”   का जयकारा सारे मंदिर में गूंजने लगा  | देखते-देखते भीग बढ़ गई लोग उसके ऊपर फूल-मालाएं चढ़ाने लगे | मानव को माज़रा समझ नहीं आया | वह उठने की कोशिश कर ही रहा था तब तक और कई लोग  उसके सामने माथा टेकने और नोट  चढ़ाने लगे | देखते ही देखते उसके सामने नोटों का अम्बार लग गया | 

समय ने करवट बदली । इस घटना को हुए एक साल बीत गया था |  मंदिर के निकट एक आलीशान कोठी के बाहर चमचमाती  कारें खड़ी थीं | बाहर लॉन में एक बड़ा सा पंडाल लगा था   उसके सामने लोगों  की  भीड़  जमा थी | मानव श्वेत-वस्त्र धारण किए हुए एक ऊँचे से भव्य आसान पर ध्यान की मुद्रा में आँखें बंद किए हुए बैठा था | लोग लाइन में एक-एक करके उसके आगे माथा टेकते जा रहे थे | आसन के पास में बहुत सारे कीमती चढ़ावे, कई दान-पेटियाँ पड़ी थीं | दो आदमी लोगों से दान लेकर दानपेटी में डालते जा रहे थे और दो आदमी उसकी रसीद काट रहे थे | सारा लॉन “...इमला बाबा की  जय...” के जयकारे से गूंज रहा था |


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मंगलवार, 7 जनवरी 2014

कौन है भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक का जन्मदाता ?

भारत ने रविवार को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाकर नया इतिहास रच दिया। परीक्षण में सौ फीसद खरे उतरे स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के बूते रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का कमाल कर दिखाया है। इसरो ने देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के जरिये रॉकेट जीएसएलवी डी-5 का सफल प्रक्षेपण कर यह बेमिसाल उपलब्धि हासिल की है। 

इस लंबी छलांग के पीछे असल में कौन है ? कौन है भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक का जन्मदाता ? आज इस पूरी खबर में कहीं भी उस वैज्ञानिक का जिक्र तक नहीं किया गया | 

उस वैज्ञानिक का नाम है 'प्रोफेसर  एस. नम्बी नारायण' | 

 सबसे पहले 1970 में  भारत में तरल ईंधन रॉकेट तकनीक लाने वाले वैज्ञानिक नम्बी नारायण हैं | 





प्रोफ़ेसर नम्बी नारायण 1994 में इसरो में क्रायोजनिक विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे| जब वे इस प्रोजेक्ट पर काम करने लगे तब 1996 उनके ऊपर झूठा आरोप लगाया गया था  कि उन्होंने डाटा सैटेलाईट और रॉकेट की लॉन्चिंग से सम्बंधित जानकारियाँ करोड़ों रुपये में बेची हैं| इस झूठे आरोप लगाने के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ था | उन्हें डर था कि कहीं भारत उनके इस क्रायोजनिक इंजन के एकाधिकार को समाप्त न कर दे | 

सीबीआई को जांच में कुछ भी नहीं मिला और 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रो.नम्बी नारायण को सभी आरोपों से बरी कर दिया |इस दौरान उनके परिवार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । गिरफ़्तारी के दौरान प्रो नारायण को बहुत मानसिक आघात झेलना पड़ा । 

अगर ऐसा न होता तो यह उपलब्धि हमें काफी पहले मिल जाती | हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जो लोग देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज़बा रखते हैं उनको किसी न किसी तरह से हतोत्साहित कर उनके कार्य को रोक दिया जाता है ।